पुष्पा गुप्ता
मुम्बई ऐसा शहर है यहां जो रह लेता है, कहीं और उसका मन नहीं लगता।
मूलतः मराठी और कोंकणी बोलने वाले कोली आगरी मछुआरों की मुम्बई, मुम्बादेवी कुलदेवी जिसकी।
पुर्तगालियो ने जीत लिया। अंग्रेजों को दहेज में दिया। अंग्रेजों ने ईस्ट इंडिया कम्पनी को 10 पौंड सालाना किराए पर दिया। कोलाबा से माहिम तक खाड़ियों को पाटकर द्वीप को आज के उपनगर से जोड़ा गया।
पश्चिम से अरब सागर के रास्ते आनेवाले जहाजों पर नज़र रखने के लिए बैंड स्टैंड और वर्ली तट पर टूटे फूटे पुर्तगाली किले आज भी अपनी अहमियत की याद दिलाते हैं।
यहां से कुछ 30 किलोमीटर दूर बुद्ध के समय का विश्व व्यापार केंद्र सोपारा बंदरगाह आज का नालासोपारा है। कहते हैं बुध्द का शिष्य पूर्णो सोपारा का था और बुद्ध को यहाँ लाया था।
सोपारा से कल्याण बंदरगाह कॉरिडोर बनाया गया, बीच रास्ते में बोरीवली कृष्णागिरी पहाड़ पर बौद्ध गुफाएं बनीं जो कान्हेरी के नाम से विश्व प्रसिद्ध हुईं।
अंग्रेजों द्वारा सामरिक और व्यापारिक महत्व का केंद्र बनाने के बाद पारसियों ने अफ़ीम का व्यापार यहां से शुरू किया।
लक्ष्मी जी की आराधना के लिए उत्तर में कानपुर, पूर्व में कलकत्ता, दक्षिण में चेन्नई ,पश्चिम में मुंबई उभरने लगा। सूरत भी कुछ ही दूरी पर था।
1854 में पारसी व्यापारी कोवासजी डावर ने 5 लाख रुपये की पूंजी लगाकर टेक्सटाइल क्रांति की शुरुआत की, जो आगे चलकर कुछ ही समय मे 10 लाख लोगों को रोज़गार देने वाली थी।
सिंधी, भाटिया और पारसियों का वर्चस्व स्थापित हुआ इस कारोबार पर।
साथ ही झवेरी बाजार,शेख मेनन स्ट्रीट भारत के सबसे बड़े बुलियन मार्केट बने।
पानी के जहाजों द्वारा ही उस समय ज्यादातर विदेश यात्राएं होती थी। अपनी लोकेशन के कारण और देश भर से जुट रहे विभिन्न प्रांतों के लोग , जिसमें ज़्यादातर मज़दूर थे, मुम्बई धीरे धीरे भारत के सभी लोगों को अपने अंदर समेटने लगी।
इस क्रांति के एक साल पहले 1853 में एशिया की सबसे पहली रेलवे शुरू हुई , बोरी बंदर (बाद में वीटी और अब सी एस टी) और ठाणे के बीच।
मुम्बई जब बंबई कही जाती थी तब के बम्बई में नाना शंकरशेट उर्फ़ जगन्नाथ सेठ का जन्म 1803 में में हुआ था तब नाना सेठ की पारिवारिक जमापूंजी 5 लाख रुपये थी।
जिसे उन्होंने अंग्रेज़ी हुकूमत से लोहा लेने के लिये बम्बई के विकास के साथ यहाँ के बम्बई वासियों का शिक्षित होना जरूरी है ऐसी सोच विचारधारा के साथ इंग्लिश /संस्कृत वह हिंदी स्कूल खोलने वाले मराठी_मानुष थे,
1852 में नाना शंकर सेठ ने बंबई के रईसों व्यपारीयों, बुद्धजीवि लोगो की एक सभा का आयोजन करके गुलाम भारत के नागरिकों खासकर बम्बई के विकासशील से विकसित करने की रणनीति बनाने शुरू किये थे।
उसी समय शंकरशेट के सभापतित्व में बंबई के नागरिकों की एक सभा में बांबे एसोसिएशन की स्थापना हुई, इस प्रकार देश में पहली राजनीतिक आंदोलन की जन्मदात्री संस्था की स्थापना हुई,, तब के उनके सहयोगी रहे फिरोजशाह मेहताजी, बदरुद्दीन तय्यबजी आदि नेताओं ने आगे चलकर उसे “बांबे प्रेसीडेंसी एसोसिएशन” के नाम से संगठित किये।
इसी संस्था के प्रयत्न से 1885 में इंडियन_नेशनल_काँग्रेस का बम्बई में जन्म हुआ…!
“समयकाल के साथ बम्बई से मुम्बई हो गई है, लेकिन बम्बई तब भी आर्थिक नगरी थी औऱ आज भी है औऱ आगे भी होगी” क्योंकि मारवाड़ी, गुजराती, यूपी, बिहारी, मद्रासी, बंगाली वह अन्य प्रदेशवासियों ने बम्बई से लेकर मुम्बई तक के सफर में उसके आर्थिक विकास में अपना योगदान दिया है…!
एकता सबलता सर्वधर्म समभाव वाले “मुंबई में भारत बसता है” औऱ हर मुंबईकर के दिल में मराठी संस्कृति के लिए गौरव है, मुंबईकरों को बांटने की कोशिश भारत की अनेकता में एकता पर प्रहार है।
संक्षेप में बता दूं कि मुम्बई न केवल आर्थिक बल्कि इस देश की विविधता को दर्शाती एक सांस्कृतिक राजधानी भी है। इस देश में जितनी संस्कृतियाँ और भाषाएं हैं, आप को कोलाबा से दहिसर , मुलुंड से वीटी के बीच मिल जाएगी।
इस फेब्रिक को उखाड़ कर मुम्बई को केंद्रशासित प्रदेश बनाने की मंशा न केवल मुम्बई बल्कि देश के लिए खतरा है।
नेहरू भी चाहते थे मुम्बई केन्द्र शासित रहे लेकिन वे समझदार थे और मुम्बई को उसके मूल महाराष्ट्र में रहने दिया।
मोरारजी देसाई के सपने चूर हो गए। मोरारजी देसाई बाद में जनता पार्टी के शासन में प्रधानमंत्री बनकर तहखाने के संदूक में मृतप्राय कट्टरवाद और उसके पुरोधा जनसघियों को बाहर निकाल कर जीवित कर देश को बर्बादी की ओर ले गए।