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कितना औचित्यपूर्ण है ‘राष्ट्रपति’ में ‘पति’ शब्द

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दिव्यांशी मिश्रा 

हमारे देश की राष्ट्रपति को एक सांसद ने पहले राष्ट्रपति कहा, फिर उनके मुँह से ‘राष्ट्रपत्नी’ शब्द निकल गया. पितृसत्ता इतनी ज़बरदस्त है कि आपके शायद न चाहते हुए भी वह अपनी अभिव्यक्ति आपसे करवा लेती है।

     अंग्रेज़ी के व्यापक असर में लोग मानकर चलते हैं कि ‘हज़बेंड’ {husband} का हिन्दी प्रतिशब्द, अनुवाद या समानार्थी शब्द है पति, जबकि ऐसा हरगिज़ नहीं है।

     नागरी प्रचारिणी सभा से प्रकाशित शब्दकोश ‘संक्षिप्त हिंदी शब्दसागर’ के मुताबिक़ ‘किसी स्त्री के लिए वह पुरुष, जिससे उसका विवाह हुआ हो’ ‘पति’ शब्द का केवल एक अर्थ है। 

मूलतः ‘पति’ एक वैदिक शब्द है, जिसका अर्थ है : स्वामी, मालिक, अधिपति, शासक, यहाँ तक कि ‘पाशुपत दर्शन’ के अनुसार महेश्वर। इसीलिए आप देख सकते हैं कि इसके मिलन से हमारे दैनिक राष्ट्रीय जीवन में न जाने कितने शब्द बनते रहे हैं और बराबर प्रचलन में हैं, जैसे : राष्ट्रपति, नृपति, भूपति, सभापति, कुलपति, पशुपति, ग्रामपति इत्यादि।

     किसी स्त्री से विवाहित पुरुष उसके लिए बेशक पति होता है, मगर भारतीय परम्परा की दृष्टि अथवा अभिप्राय से वह जीवनसाथी से ज़्यादा उसका स्वामी ही है।

     भाषा में बद्धमूल इसी पुरुषसत्ता को लक्ष्य कर प्रसिद्ध आलोचक मैनेजर पाण्डेय ने ‘अश्लीलता और स्त्री’ शीर्षक निबन्ध में लिखा है :  ‘….पति शब्द का अर्थ श्रेष्ठता का ही नहीं, सत्ता का भी सूचक है।’

    इस हिसाब से स्त्री भी पुरुष के लिए एक सम्पत्ति की तरह है, जिसका पति पतित होने पर भी पति (स्वामी) बना रहता है। यह सारी शब्दावली लोकमत का भी अभिन्न हिस्सा है। (चेतना विकास मिशन)

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