धर्मेंद्र शुक्ला
मोदी है तो सब मुमकिन है यह कहावत हर जगह काम आती है । राजनीति में एक दिन भी काफी लंबा समय हो सकता है, लेकिन विदेश नीति में एक दशक को भी अक्सर गंभीर मूल्यांकन के लिहाज से पर्याप्त नहीं माना जाता। हालांकि, पिछला दशक इस मामले में अपवाद रहा है। इस दौरान वैश्विक राजनीति में आए बदलावों की प्रकृति तो खास है ही, इनका दायरा भी व्यापक रहा है। ऐसे में भारतीय विदेश नीति में भी बुनियादी बदलाव आना स्वाभाविक है। लेकिन विदेश नीति में आए इन बदलावों पर वैश्विक हालात और समीकरणों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की व्यक्तिगत भागीदारी की भी अमिट छाप नजर आती है।
‘इंडिया फर्स्ट’ का मंत्र : याद किया जा सकता है कि मोदी जब 2014 में सत्ता में आए थे तो उन्हें एक ऐसा क्षत्रप बताया जा रहा था जिसे विदेशी नीति का कोई अनुभव नहीं था। ‘हिंदू राष्ट्रवादी नेता’ की उनकी छवि को भी खास तौर पर इस्लामी राष्ट्रों के साथ अच्छे रिश्तों की राह में बाधा माना जा रहा था। लेकिन मोदी ‘इंडिया फर्स्ट’ के मंत्र को केंद्र में रखते हुए एक व्यावहारिक विदेश नीति को अपनाकर विरोधियों और समर्थकों दोनों को चौंकाने में कामयाब रहे। इन दस वर्षों में उन्होंने भारतीय विदेश नीति को ऐसा रूप दिया, जिसके बारे में पहले शायद ही किसी ने कल्पना की हो।
को आकार देने में भारत की बढ़ती दिलचस्पी नई वास्तविकता की ओर संकेत करती हैं। भारत अब अपने लिए बड़ी वैश्विक और क्षेत्रीय भूमिका सुनिश्चित करना चाहता है। इसलिए उसे पीछे हटना मंजूर नहीं।
जैसे को तैसा : पिछले कुछ वर्षों में भारत, विरोधियों को चुनौती देने और वैचारिक पृष्ठभूमि की चिंता किए बगैर दोस्तों को साथ लाने में सफल रहा है। चाहे शी चिनफिंग के बेल्ट एंड रोड इनीशटिव का 2014 से विरोध करने की बात हो या उसकी सैन्य आक्रामकता का उसी की शैली में जवाब देने की। चाहे किसी औपचारिक गठबंधन में गए बगैर ही अमेरिका से करीबी स्थापित करने की बात हो या यूरोपीय देशों के सहयोग से अपनी घरेलू क्षमता बढ़ाने की। भारत ने इस दौरान गजब की व्यावहारिकता दिखाई है।
वैक्सीन मैत्री पहल : अतीत में सिद्धांत को लेकर उलझे रहने वाला भारत आज विश्व मंच पर एक जिम्मेदार स्टेकहोल्डर के तौर पर मौजूद है। कोरोना महामारी के दौरान उसकी वैक्सीन मैत्री पहल के जरिए दुनिया इस नई भूमिका में उसके आत्मविश्वास की झलक देख चुकी है। भारत अब वैश्विक समस्याएं हल करने में दिलचस्पी ले रहा है। नेतृत्वहीनता के दौर से गुजर रही दुनिया में मोदी के नेतृत्व ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी एक अलग छाप छोड़ी है। इसका ताजा उदाहरण है भारत की G20 अध्यक्षता।
महत्वाकांक्षी नजरिया : वैश्विक राजनीति के इस चुनौतीपूर्ण दौर में मोदी ने भारत को एक अनोखी और विशेष आवाज दी है। आज किसी भी अन्य बड़ी शक्ति के मुकाबले भारतीय अपने भविष्य को लेकर ज्यादा महत्वाकांक्षी नजरिया रखते हैं और यही चीज उनके विदेशी संबंधों को तय करने में सबसे अहम भूमिका निभा रही है। मोदी का नेतृत्व उस भावना को न केवल समझ रहा है बल्कि उसका प्रभावी इस्तेमाल भी कर रहा है। मोदी की खासियत है कि वह इस राष्ट्रीय आकांक्षा को अपनी विदेश नीति में गूंथने के साथ-साथ अपनी छवि से भी जोड़ने में सफल रहे हैं।