आधुनिक बिहार 111 साल पुराना है। 22 मार्च 1912 को बंगाल से अलग कर अंग्रेजों ने इसका गठन किया था। मगर प्रचीन इतिहास अथर्व वेद के काल से है। तब इस भू-भाग का नाम ‘बिहार’ न हो कर, ‘मगध’ हुआ करता था। इसकी राजधानी पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) थी। भारत के इतिहास में स्वर्ण युग का गौरव मगध के शासकों के नाम है। मगर ये मगध से बिहार कैसे बना?
तब न तो ‘विहार’ को ‘बिहार’ कहा जाता था और ना ही ‘पाटलिपुत्र’ को ‘पटना’। हालांकि, जब आप प्राचीन भारत का इतिहास पढ़ेंगे तो ये दोनों नाम आपको खूब देखने और पढ़ने को मिलेंगे। कई बार सोच लिया जाता है कि आखिर नाम में क्या रखा है? मगर जन्म के समय से मिला नाम ही आगे चल कर पहचान बनती है, जिससे वो आजीवन बंधा रहता है। आज के हिसाब से देखें तो उसे ही कथित तौर पर ‘ब्रांड’ कह दिया जाता है। इसलिए नाम बड़ा ही अहम चीज है। इसे हल्के में लेने की कोशिश न करें। ऐसे में ‘विहार’ और ‘पाटलिपुत्र’ के ‘बिहार’ और ‘पटना’ बनने की कहानी भी उतार-चढ़ाव से भरी है।
‘विहार’ से ‘बिहार’ तक की सफर
मगध से ‘विहार’ और फिर ‘बिहार’ की सफर भी कम दिलचस्प नहीं है। भारत के इतिहास में मगध की तो खूब चर्चा है, मगर ‘विहार’ कहां से आया? फिर ये ‘बिहार’ कैसे हो गया? मौर्य वंश के शासनकाल में मगध और पाटलिपुत्र भारत की सत्ता का केंद्र बन गया। अफगानिस्तान से लेकर बंगाल की खाड़ी तक साम्राज्य फैला हुआ था। पाटलिपुत्र से इसे कंट्रोल किया जाता था। अशोक (268-232 ईसा पूर्व) के शासनकाल में ‘विहार’ शब्द का जिक्र मिलता है। ऐसे में ये जानना जरूर हो जाता है कि ‘विहार’ क्या है? ‘विहार’ शब्द का अर्थ ‘मठ’ होता है। चूंकि अशोक ने बौद्ध धर्म अपना लिए थे तो इसके प्रचार-प्रसार करने वालों को बौद्ध भिक्षु कहा गया। उनके रूकने और प्रार्थना के स्थान को ‘विहार’ के नाम से जाना गया। अशोक के शासन काल में मगध के कई हिस्सों में ‘विहार’ बनवाए गए। धीरे-धीरे मगध साम्राज्य का पतन हुआ और तुर्कों ने आक्रमण किया। उनको ‘विहार’ का उच्चारण करने में दिक्कत होती थी तो उन्होंने ‘बिहार’ कहना शुरू कर दिया। कभी मगध क नाम से पहचान रखनेवाला साम्राज्य ‘विहार’ से आधुनिक ‘बिहार’ बन गया।
खिलजी से बदला मगध का इतिहास
वैसे, आधुनिक बिहार में तुर्क सता की स्थापना का श्रेय इख्तियारदीन मोहम्मद इब्ने बख्तियार खिलजी को दिया जाता है। वो बनारस और अवध क्षेत्र के सेनापति मलिक हसमुद्दीन का सहायक था। 12वीं शताब्दी के आखिर में कर्मनाशा नदी के पूर्वी छोर (आधुनिक बिहार) पर हमला किया। तब यहां सेन वंश के लक्ष्मण सेन और पाल वंश के इंद्रधनु पाल शासक थे। पटना से सटे मनेर को इख्तियारदीन मोहम्मद इब्ने बख्तियार खिलजी ने अपना ठिकाना बनाया। 1198-1204 ईस्वी के बीच मगध और आसपास के शासकों ने युद्ध में आत्मसमर्पण कर दिया। यहीं से ‘मगध’, ‘विहार’ और ‘पाटलिपुत्र’ शब्द पर प्रहार शुरू हुए।
‘पाटलिपुत्र’ कैसे बन गया ‘पटना’?
किसी भी देश, प्रदेश, संस्कृति और कला का ‘स्वर्ण युग’ होता है। मतलब उस वक्त वो अपनी महत्ता की पराकाष्ठा पर हो। भारतवर्ष के इतिहास में गुप्तकाल को स्वर्ण युग माना जाता है, जो तीसरी से छठी शताब्दी ईसा पूर्व के बीच रहा। तब भी ‘बिहार’ की उत्पति नहीं हुई थी। इसे ‘मगध’ और ‘पाटलिपुत्र’ के नाम से जाना गया। तब मगध साम्राज्य की राजधानी राजगृह (आधुनिक नालंदा जिले का राजगीर) हुआ करती थी। बाद में हर्यक वंश के शासक अजातशत्रु (492-460 ईसा पूर्व) ने अपनी राजधानी राजगृह से पाटलिपुत्र में स्थापित की। 16वीं शताब्दी में अंग्रेजों की एंट्री की हुई तो ‘पाटलिपुत्र’ से ‘पत्तन’ होते हुए आज का आधुनिक ‘पटना’ नाम पड़ा।
आधुनिक बिहार और पटना को जानिए
अब सवाल उठता है कि आधुनिक बिहार और पटना कहां से आया? 16वीं शताब्दी में अंग्रेजों की भारत में एंट्री हुई। 17वीं शताब्दी में कारोबार अब शासन का शक्ल लेने लगा। इस दरम्यान 22 अक्टूबर 1764 में ईस्ट इंडिया कंपनी और मुगल-नवाबों के बीच कर्मनाशा नदी के पास बक्सर में युद्ध हुआ था। ईस्ट इंडिया कंपनी की जीत हुई। बंगाल (आधुनिक बांग्लादेश भी शामिल) और बिहार (झारखंड और उड़ीसा) पूरी तरह अंग्रेजों के कब्जे में आ गया। दोनों को मिलाकर ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल प्रेसीडेंसी की स्थापना की। बाद में 22 मार्च 1912 को बंगाल से बिहार को अलग कर दिया। बिहार नाम से नए राज्य का गठन किया गया। इसकी राजधानी पटना बना। आगे के दिनों में 1935 में बिहार से अलग होकर उड़िसा (ओडिशा) और 2000 में झारखंड नाम से नए राज्य बने। आधुनिक बिहार 111 साल का हो गया। हर साल 22 मार्च को बिहार दिवस के तौर राज्य सरकार एक महोत्सव का आयोजन करती है। इस दौरान संस्कृति, कला और गौरव पूर्ण इतिहास को प्रदर्शित किया जाता है।
‘नगर का भविष्य उज्ज्वल होगा, मगर बाढ़, आग या आपसी संघर्ष के कारण ये बर्बाद हो जाएगा।’ पाटलिपुत्र (पटना) को लेकर भगवान बुद्ध ने भविष्यवाणी की थी। खैर, करीब 2800 साल बाद भी आधुनिक पटना आबाद है। अनुमान के मुताबिक 30 लाख से ज्यादा लोग रहते हैं। 1500 वर्षों तक अखंड भारत की सत्ता का केंद्र रहा पाटलिपुत्र अब पटना के नाम से मशहूर है। फिलहाल बिहार राज्य की राजधानी है। इस ऐतिहासिक शहर ने पाटलिपुत्र से पटना तक का सफर तय किया है।
पाटलिपुत्र से पटना का सफर
पटना का वैसे तो कोई खास अर्थ नहीं होता है। मगर ये जानना दिलचस्प है कि पाटलिपुत्र से ये ऐतिहासिक शहर पटना कब हो गया? मौजूदा बिहार की राजधानी पटना कभी पाटलिपुत्र के नाम से जाता था। ऐसा कहा जाता है कि आधुनिक पटना करीब तीन हजार साल पहले जब एक गांव था तो यहां बहुत सारे पाटलि वृक्ष थे। इन पाटलि वृक्षों (औषधीय पौधा) के कारण ही इसका नाम पहले पाटलिग्राम और फिर नगर बनने पर पाटलिपुत्र बन गया। गंगा नदी के किनारे और राजधानी होने की वजह से इसका व्यारिक महत्व हमेशा बना रहा। गंगा के बड़े और चौड़े घाटों के कारण यहां बड़े-बड़े जहाजों से माल की ढुलाई होती थी। ये एक बंदरगाही शहर था तो ‘पत्तन’ (पत्तन का निर्माण किया जाता है, ये प्राकृतिक नहीं होते) शब्द इसके साथ जुड़ गया। इसे पाटलिपत्तन या पाटलिपट्टन नाम से भी जाना जाता था। जानकारों के अनुसार ‘पटना’ शब्द ‘पत्तन’ से बना है। ‘पत्तन’ शब्द अपभ्रंश होकर पटना हो गया और इसमें से पाटलि शब्द पीछे छूट गया। 1704 ईस्वी में इसका नाम बदलकर अजीमाबाद भी किया गया, मगर बाद के वर्षों में इसका नाम पटना ही रहा।
जानकारों के अनुसार ‘पटना’ शब्द ‘पत्तन’ से बना है। ‘पत्तन’ शब्द अपभ्रंश होकर पटना हो गया और इसमें से पाटलि शब्द पीछे छूट गया।
रिसर्च
राजा पत्रक से अजातशत्रु तक
लोककथाओं में राजा पत्रक को आधुनिक पटना का जनक कहा जाता है। राजा पत्रक ने अपनी रानी पाटलि के लिए जादू से इस नगर का निर्माण किया था। ऐसा माना जाता है कि इसी वजह से इसका नाम पाटलिग्राम पड़ा। बाद में पाटलिपुत्र के नाम से जाना गया। पुरातात्विक अनुसंधानों की मानें तो पटना का इतिहास 490 ईसा पूर्व (आज से करीब 2800 साल पहले) से शुरू होता है। हर्यक वंश के शासक अजातशत्रु (492-460 ईसा पूर्व) ने अपनी राजधानी राजगृह से पाटलिपुत्र में स्थापित की। वैशाली के लिच्छवी वंश से संघर्ष के दौरान राजगृह की अपेक्षा पाटलिपुत्र सामरिक दृष्टि (Strategically) से अधिक रणनीतिक स्थान पर था। गंगा, सोन और पुनपुन नदी से घिरे इस भू-भाग पर अपमा दुर्ग स्थापित किया। पाटलिपुत्र का असली इतिहास अजातशत्रु के शासनकाल से मिलता है।
मौर्य शासन काल पटना का स्वर्ण युग
मौर्य साम्राज्य के उत्थान के बाद पाटलिपुत्र सत्ता का केंद्र बन गया। चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य बंगाल की खाड़ी से आधुनिक अफगानिस्तान तक फैला हुआ था। शुरुआती पाटलिपुत्र लकड़ियों से बना था, मगर सम्राट अशोक ने यहां शिलाओं की संरचना खड़ी की। चीन के फाहियान और युनानी इतिहासकार मेगास्थनीज ने पाटलिपुत्र का लिखित विवरण दिया। ज्ञान की खोज में कई विदेशी यात्री यहां आए। कई राजवंशों ने पाटलिपुत्र से शासन को संभाला। मौर्य वंश के शासन के वक्त जो, गौरव इस शहर को हासिल हुआ, वो फिर बाद में किसी वंश के सत्ता के दौरान नहीं मिला। गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद पटना का भविष्य काफी अनिश्चित रहा। 12वीं सदी में बख्तियार खिलजी ने बिहार पर अपना अधिपत्य जमाया। कई आध्यात्मिक प्रतिष्ठानों को नष्ट कर डाला। उसके बाद से पटना देश का सांस्कृतिक और राजनैतिक केंद्र नहीं रहा।
12वीं सदी में बख्तियार खिलजी ने बिहार पर अपना अधिपत्य जमाया। कई आध्यात्मिक प्रतिष्ठानों को नष्ट कर डाला। उसके बाद से पटना देश का सांस्कृतिक और राजनैतिक केंद्र नहीं रहा।
रिसर्च
सूरी का पटन, अंग्रेजों का पटना बना
शेरशाह सूरी (1540-1545 ईस्वी) के शासनकाल में पाटलिपुत्र को ‘पटन’ कहा जाने लगा था, बाद में ब्रिटिश शासन काल में ‘पटन’ ही ‘पटना’ हो गया। शेरशाह सूरी ने पटना को पुनर्जीवित करने की कोशिश की। उसने गंगा के किनारे एक किला बनाने की सोची। मगर सफलता नहीं मिली। अफगान शैली में बना एक मस्जिद अब भी मौजूद है। अकबर के राज्य सचिव और आइन-ए-अकबरी के लेखक (अबुल फजल) ने कागज, पत्थर और शीशे का संपन्न औद्योगिक केंद्र तौर पर इसकी चर्चा की है। मुगल बादशाह औरंगजेब ने अपने पोते मोहम्मद अजीम की गुजारिश पर 1704 में इसका नाम अजीमाबाद कर दिया। अजीम उस वक्त पटना का सूबेदार था।
1912 में बिहार की राजधानी बना पटना
मुगल साम्राज्य के पतन के साथ ही बंगाल के नबाबों के अधीन पटना आ गया। 17वीं शताब्दी में पटना अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का केंद्र बन गया। 1620 में अंग्रेजों ने रेशम और कैलिको (भारत से जानेवाले सफेद सूती कपड़े को इंग्लैंड में कैलिको कहा जाता था) के व्यापार के लिए यहां फैक्ट्री खोली। जल्द ही ये सॉल्ट पीटर (पोटेशियम नाइट्रेट) के व्यापार का केंद्र बन गया, जिसके कारण फ्रेंच और डच से प्रतिस्पर्धा तेज हो गई। बक्सर के युद्ध (1764) के बाद पटना ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन हो गया। मगर व्यापार का केंद्र बना रहा। 1912 में बंगाल के विभाजन के बाद ओडिशा और बिहार की राजधानी बना। फिर बिहार से अलग कर 1935 में ओडिशा को राज्य बना दिया गया। उसके बाद साल 2000 में बिहार से अलग कर झारखंड राज्य बनाया गया। मगर बिहार की राजधानी पटना बनी रही, जो आज भी कायम है।