अलमिना खातून
राष्ट्रीय राजधानी की लंबे समय से उपेक्षित और अब लगभग नाला बन चुकी यमुना नदी एक भव्य धार्मिक अनुष्ठान के लिए तैयार हो रही है, बल्कि इसकी सफाई होने से भी पहले. धार्मिक बुखार से ग्रस्त भारत स्वच्छता अभियान का इंतज़ार नहीं कर सकता, जिसमें नदी के पानी को साफ करने में दशकों लग जाते हैं, लेकिन वो सच में कभी शुरू ही नहीं हो पाते हैं.
हरिद्वार, ऋषिकेश और वाराणसी की तर्ज पर यमुना के तट पर भव्य आरती आयोजित करने की योजना के तहत कश्मीरी गेट के पास यमुना के वासुदेव घाट पर दो लाल बलुआ पत्थर के हाथी, 300 किलोग्राम की घंटी और एक राम मंदिर की प्रतिकृति पहले ही आ चुकी है. मज़दूर, सीढ़ियों, छोटे बगीचों और प्रवेश द्वार के निर्माण में जुटे हैं, लेकिन यह बदलाव यमुना की उथली सतह पर तैरने वाले कचरे और औद्योगिक अपशिष्टों को छिपा नहीं सकता है.
यमुना कार्यकर्ता विमलेन्दु झा ने बताया, “इस समय, यमुना को जिस चीज़ की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है वो एक उचित और व्यवस्थित सफाई प्रक्रिया है, न कि आरती. हर सरकार इस मुद्दे पर बात करती है, लेकिन आज तक ज़मीन पर कुछ भी काम नहीं किया गया है. कोई भी पूजा या आरती नदी में की जाती है, नाले में नहीं. अभी तो यमुना पूरी तरह नाला है. पहली ज़रूरत इस नाले को नदी में बदलने की है.”
कालक्रम का प्रश्न – नदी को साफ करें या इसे एक जीवित नदी बनाएं – उचित है, लेकिन इसकी कभी शुरुआत नहीं हुई है.
दशकों तक सामुदायिक लामबंदी, सफाई की गतिविधियों, समितियों और सिफारिशों के बाद भी, न तो दिल्ली में अधिकारी और न ही नदी कार्यकर्ता यमुना को पुनर्जीवित करने का कोई समाधान ढूंढ पाए हैं. अब, जैसे-जैसे मोदी सरकार भारतीय शहरों में रिवरफ्रंट और मंदिर अर्थव्यवस्थाओं को विकसित करने पर जोर दे रही है, दिल्ली की यमुना भी एक भव्य बदलाव के लिए तैयार है.
स्वच्छता के स्थान पर सौंदर्यीकरण
एक कार यमुना ब्रिज पर रुकती है. एक आदमी उसमें से निकलता है, अपने दाएं-बाएं देखता है, अपनी कार से एक नीले रंग का कूड़े का थैला निकालता है और सीधे नदी में डाल देता है. नदी के पास यह काफी सामान्य नज़ारा है.
यमुना भारत की सबसे पवित्र नदियों में से एक है. हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, नदी को देवी यमुना, सूर्य देव की बेटी और मृत्यु के देवता यम की बहन माना जाता है इसलिए, इसकी पूजा की जाती है, लेकिन नदी को पूजा स्थल के रूप में इस्तेमाल करने की हालिया पीढ़ी की यादें हर साल उच्च फॉस्फेट स्तर के कारण उत्पन्न होने वाले जहरीले झाग में घुटनों तक खड़े छठ व्रतियों तक ही सीमित हैं. विमलेंदु ने कहा, “इसलिए, सबसे पहले सरकार को नदी की सफाई के व्यवस्थित तरीके के बारे में सोचना चाहिए.”
दिल्ली के उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना के प्रिय प्रोजेक्ट, वासुदेव घाट के पुनर्विकास की योजना का नेतृत्व दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) कर रहा है.
पहले कुदसिया घाट के नाम से जाना जाने वाला वासुदेव घाट नदी के पश्चिमी तट पर वज़ीराबाद और पुराने रेलवे पुल के बीच विकसित किया जा रहा है. साइट पर काम करने वाले मज़दूरों में से एक अशोक भारती ने कहा, काम 2023 में शुरू हुआ था, लेकिन दिसंबर में फिर से शुरू होने से पहले यमुना में बाढ़ के कारण बाधित हो गया था.
उपराज्यपाल ने 22 जनवरी की शाम को वासुदेव घाट पर एक धार्मिक कार्यक्रम में भाग लिया और तट पर नव निर्मित अयोध्या राम मंदिर की प्रतिकृति के सामने प्रार्थना की.
दीयों और रोशनी की सजावट से गुजरते हुए, एल-जी सक्सेना शंख, मंत्रों और जय श्री राम के नारों की ध्वनि के बीच विशाल घंटी के पास गए. उपराज्यपाल ने राम मंदिर की प्रतिकृति की पूजा की और वहां एकत्रित लोगों को प्रसाद वितरण किया, जिसके साथ पूजा समाप्त हुई.
अधिकारियों ने नदी की ओर सीढ़ियां बनाने की योजना बनाई है, ताकि लोग आरती के साथ नज़ारों का आनंद ले सकें. घाट के प्रवेश द्वार पर स्थापित घंटी के अलावा, किनारे पर कई मंडप हैं. अधिकारियों के मुताबिक, करीब दो से तीन महीने में घाट पर आरती शुरू हो जाएगी.
एक कार्यकर्ता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “यहां कई मिनी गार्डन विकसित बनाएं जाएंगे जहां लोग बैठ कर आराम कर सकेंगे. पैदल रास्तों को फूलों से सजाया जाएगा. परियोजना पूरी होने के बाद पूरा घाट बिल्कुल अलग दिखेगा.”
वासुदेव घाट के पास रहने वाले 65-वर्षीय सुखवारा ने कहा, “मैं शाम और सुबह दोनों आरती में शामिल होऊंगा, यह दिल्ली के लोगों के लिए वास्तव में एक अच्छा अनुभव होगा.”
नदी की राजनीति
धार्मिक अनुष्ठान अक्सर स्वच्छता और साफ-सफाई से मेल खाते हैं, जो पूजा की भावना को पवित्र रखते हैं, लेकिन काला पानी, किनारों पर कूड़ा-कचरा और नाक ढकने पर मजबूर कर देने वाली बदबू को देखते हुए, यमुना घाट की आरती एक जल्दबाजी वाली परियोजना लगती है.
सुखवारा ने दिप्रिंट को बताया, “पानी बहुत लंबे समय से ऐसा ही है. शायद आरती की तारीख घोषित होते ही सफाई प्रक्रिया शुरू हो जाएगी.”
नजफगढ़ नाला पहला प्रमुख प्रदूषक है जो दिल्ली के वज़ीराबाद में यमुना में मिलता है और नदी के प्रदूषण में सबसे अधिक योगदान देने के लिए जाना जाता है.
विमलेंदु ने कहा, “पूजा या आरती नदी में की जाती है, किसी नाले में नहीं. अभी तो यमुना पूरी तरह से नाला बन चुकी है. इसलिए, पहली ज़रूरत इस नाले को नदी में बदलने की है और फिर हम आरती के बारे में सोच सकते हैं.”
नदियों को बचाने का अभियान — चाहे उन्हें आपस में जोड़ना हो, या उन्हें टेम्स का रूप देने के लिए सफाई करना हो — भारतीय राजनीति में एक लंबे समय से अधूरी परियोजना रही है. नागरिक बुनियादी ढांचे में धर्म का तड़का होने से हालात बदलने की संभावना नहीं है. बनारस जैसे वीवीआईपी निर्वाचन क्षेत्रों के वीवीआईपी घाट भी नदियों की किस्मत नहीं बदलते.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने फरवरी 2025 तक नदी को साफ करने के लिए 18 नवंबर 2021 को छह सूत्री कार्य योजना की घोषणा की थी. इस योजना में एसटीपी का निर्माण और उन्नयन, 100 प्रतिशत सीवर कनेक्टिविटी, सीवर नेटवर्क से गाद निकालना, नालों को रोकना शामिल है. जेजे क्लस्टर, औद्योगिक प्रदूषकों को नियंत्रित करते हैं और प्रदूषण फैलाने वाली नालियों और उप-नालियों को मोड़ते हैं.
उन्होंने कहा था कि यमुना में गिरने वाले चार प्रमुख नालों — नजफगढ़, बादशाहपुर, सप्लीमेंट्री और गाजीपुर — के अपशिष्ट जल का यथास्थान उपचार किया जा रहा है.
वासुदेव घाट के पास रहने वाले ट्रक ड्राइवर अगस्तेन ने कहा, “केजरीवाल ने केवल वादे किए हैं, लेकिन (गीता घाट पर) जो भी काम हुआ है, वो मोदी सरकार और एलजी सक्सेना की वजह से हुआ है.”
आप सरकार ने यमुना में कचरा प्रवाहित करने वाले उद्योगों को बंद करने का भी वादा किया था.
68-वर्षीय अगस्तेन ने कहा, “जब मैं 30 या 40 साल पहले दिल्ली आया था, तब यमुना इतनी गंदी नहीं थी. पहले इसका पानी काफी साफ था, हम लोग इसका पानी पीते भी थे, लेकिन जैसे-जैसे आबादी बढ़ी, यमुना और भी गंदी होती गई.”
‘वाराणसी की तरह ही यमुना को भी पीएम की ज़रूरत’
विहिप सदस्य सुबोधकांत ने कहा, “नदियां हमारी सांस्कृतिक विरासत हैं और अगर गंगा की तरह यमुना में भी आरती शुरू हो जाए, तो लोग इसे साफ रखने के लिए निश्चित रूप से जागरूक होंगे, क्योंकि जब लोग आरती में शामिल होने और इसकी पूजा करने लगेंगे, तो वे गंदगी फैलाने से पहले ज़रूर सोचेंगे.”
लेकिन अगर वाराणसी में घाट कोई संकेत हैं, तो कांत का तर्क सच नहीं है. वाराणसी में असाई और वरुणा ऐसे उदाहरण हैं जो साबित करते हैं कि देवताओं का डर भी पानी को साफ नहीं रख सकता.
अरविंद केजरीवाल ने 2015 में गीता घाट पर पहली यमुना आरती की थी.
दिल्ली के मुख्यमंत्री ने कहा था, “हम पांच साल के भीतर यमुना को पुनर्जीवित करेंगे और मैं दिल्ली की मां और मुख्य जल स्रोत, यमुना नदी की संस्कृति और विरासत को बढ़ावा देने का वादा करता हूं.”
सुबोध ने कहा, “हमें इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है, लेकिन अगर आरती शुरू होती है तो यह लोगों को जागरूक करने की बहुत अच्छी पहल होगी और हम इस पहल में ज़रूर शामिल होंगे.”
और लोग पहले से ही वासुदेव घाट पर जाकर मंडपों और राम मंदिर की प्रतिकृति के पास सेल्फी ले रहे हैं, जिससे मैदान पर उत्साह है.
राजेश शुक्ला ने कहा, जो वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर रहते हैं और नमामि गंगे परियोजना में प्रांत संयोजक हैं, “मैं पिछले दस साल से गंगा की सफाई में लगा हुआ हूं और मैंने देखा है कि जब भी किसी नदी की आरती की जाती है, तो अधिक से अधिक लोग इसमें शामिल होते हैं और इसकी पूजा करते हैं और लोगों में इसे साफ रखने की भावना विकसित होती है. जिस प्रकार वाराणसी की आरती लोगों को गंगा को स्वच्छ रखने का एहसास दिलाती है. जब यमुना में भी आरती शुरू हो जाएगी, तो लोग निश्चित रूप से इसे साफ रखेंगे.”
वाराणसी में आरती करते हुए मोदी की छवि भी निर्वाचन क्षेत्र द्वारा लिए गए स्वच्छता संकल्प को परिभाषित करती है. यमुना भी इंतज़ार कर रही है.
शुक्ला ने कहा, “ना मैं यहां आया हूं ना मुझे किसी ने भेजा है, मुझे तो मां गंगा ने बुलाया है’ — यह कहकर और अपने प्रमुख नमामि गंगे के साथ कार्यक्रम में पीएम मोदी ने जनता को नदी को साफ रखने का बड़ा संदेश दिया. ऐसे ही अगर पीएम मोदी यमुना आरती में शामिल होते हैं और वहां से संदेश देते हैं तो इससे बड़ी बात कुछ नहीं हो सकती और अगर यमुना साफ रहेगी तो गंगा भी साफ रहेगी क्योंकि दोनों का संगम प्रयागराज में होता है.”
उन्होंने कहा, “हर नदी किसी न किसी बिंदु पर एक दूसरे से मिलती है. इसलिए अगर हम एक नदी को साफ कर रहे हैं तो हम कई नदियों को बचा सकते हैं.”