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कैसे पाटेंगे खाई…साधन और सुविधाओं के मुकाबले में सरकारी स्कूल पिछड़े हुए हैं

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तकनीक के इस दौर में जब इंटरनेट व कम्प्यूटर हर बच्चे की अहम जरूरत बन गए हैं, पिछले दिनों लोकसभा में सरकार की ओर से दिए गए जवाब में आए ये तथ्य बताते हैं कि साधन और सुविधाओं के मुकाबले में सरकारी स्कूल किस तरह से पिछड़े हुए हैं।

ये आंकड़े चौंकाने वाले हैं कि देश के करीब साढ़े दस लाख सरकारी स्कूलों में से 90 फीसदी में बच्चों को सिखाने के लिए कम्प्यूटर ही नहीं हैं। इतना ही नहीं बल्कि देश के करीब सवा लाख सरकारी स्कूलों में बिजली भी नहीं है। तकनीक के इस दौर में जब इंटरनेट व कम्प्यूटर हर बच्चे की अहम जरूरत बन गए हैं, पिछले दिनों लोकसभा में सरकार की ओर से दिए गए जवाब में आए ये तथ्य बताते हैं कि साधन और सुविधाओं के मुकाबले में सरकारी स्कूल किस तरह से पिछड़े हुए हैं। वह भी ऐसे दौर में, जब अध्ययन-अध्यापन के सारे नवाचार इंटरनेट और कम्प्यूटर के माध्यम से ही फल-फूल रहे हैं। साथ ही हर बच्चा ब्लैक बोर्ड युग से आगे निकल कम्प्यूटर पर पढ़ाई को अपनाना चाह रहा है।

इंटरनेट और कम्प्यूटर की उपलब्धता हो भी जाए तो बड़ा सवाल यह भी है कि जब स्कूलों में बिजली ही नहीं होगी तो इनका इस्तेमाल बच्चे कैसे कर पाएंगे? इंटरनेट की सुविधा से वंचित स्कूल 66 प्रतिशत हैं। जिन दस फीसदी स्कूलों में कम्प्यूटर उपलब्ध हैं, उनसे भी आम तौर पर यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि सरकारी स्कूलों के विद्यार्थी आधुनिक साधन-सुविधाओं से सुसज्जित निजी स्कूलों की पढ़ाई का मुकाबला कर सकेंगे। शिक्षण संस्थाओं का विस्तार और उनमें सुविधाएं जुटाना सरकारों की जिम्मेदारी है। बिजली जैसी बुनियादी सुविधा भी सरकारी स्कूलों की पहुंच से दूर हो तो जिम्मेदारों की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठता ही है। यह बात भी सही है कि सभी सरकारी स्कूलों में बिजली पहुंचाने के लिए हजारों करोड़ रुपए की जरूरत है। लोकसभा की ही रिपोर्ट है कि सरकार ने पिछले साल महज 60 करोड़ रुपए ही इसके लिए आवंटित किए। समझा जा सकता है कि सभी स्कूलों में बिजली पहुंचाने में ही कितने साल लग जाएंगे। सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी पहले ही समस्या बनी हुई है। इसके चलते ही अभिभावक अपने बच्चों के दाखिले के लिए निजी स्कूलों का रुख करते हैं। साधन-सुविधाओं का इस कदर अभाव होगा, तो बच्चे इन स्कूलों से और दूर जाने लगेंगे।

सरकार चाहे केन्द्र की हो या फिर राज्य की, सरकारी स्कूलों के हालात बेहतर हों इस दिशा में काम करना ही होगा। शिक्षकों की कमी तो दूर हो ही, तकनीक के दौर में कम्प्यूटर व इंटरनेट जैसी सुविधाओं से बच्चों को वंचित करना उनके साथ अन्याय ही है। उन राज्यों को अपने नवाचारों को दूसरी सरकारों से साझा भी करना चाहिए जो अपने यहां सरकारी स्कूलों को निजी स्कूलों के मुकाबले खड़ा करने में कामयाब रहे हैं।

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