पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय मनमोहन सिंह को देश आज जब पीछे मुड़कर याद कर रहा है, तो इसका सबसे ज्यादा असर मौजूदा नरेंद्र मोदी सरकार पर पड़ रहा है। मनमोहन सिंह को मौन-मौन सिंह कह कर खिल्ली उड़ाने वाले आज सोशल मीडिया पर लोगों की प्रतिक्रिया को देखकर बेहद असहज महसूस कर रहे हैं। पूरा देश आज जिस आत्मीयता के साथ अपने पूर्व प्रधानमंत्री को याद कर रहा है, उसे देखकर सहसा विश्वास नहीं होता कि यूपीए सरकार के अंतिम समय के दौरान यही देश उसे कितने नकारात्मक ढंग से देखता था।
इसका अंदाजा सोशल मीडिया पर एक टिप्पणी से सहज ही लगाया जा सकता है, जिसमें एक X यूजर का कहना है, “इसका सारा श्रेय नरेंद्र मोदी को जाता है। अगर वे भारत के प्रधानमंत्री नहीं बनते, तो हमें यह पता ही नहीं चलता कि डॉ. मनमोहन सिंह कितने अच्छे प्रधानमंत्री थे।”
अचानक से देश में मनमोहन सिंह और मौजूदा पीएम नरेंद्र मोदी के 10 वर्षों के शासनकाल की तुलना होने लगी है। इससे भी बड़ी बात, जब दुनियाभर से स्वर्गीय सिंह को याद करते हुए राष्ट्राध्यक्षों, पूर्व प्रधानमंत्रियों के भावपूर्ण शोक संदेश आ रहे हैं, तो उन्हें देखकर आम भारतीयों को अहसास हो रहा है कि उन्होंने क्या खो दिया है।
शायद यही वजह है कि मोदी सरकार, जो कल सुबह तक इस बात पर अड़ी हुई थी कि स्वर्गीय पूर्व पीएम का अंतिम संस्कार निगमबोध घाट पर ही किया जायेगा, और उनके लिए अलग से स्मारक स्थल बनाने के बजाय राष्ट्रीय राजधानी के समाधि परिसर में ‘राष्ट्रीय स्मृति’ का निर्माण किया जायेगा।
कल 27 दिसंबर शाम 7 बजे तक सरकार का रुख अपनी जगह पर कायम बना हुआ था। पीटीआई ने गृह मंत्रालय के हवाले से ट्वीट किया था कि “पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का अंतिम संस्कार शनिवार को दिल्ली के निगमबोध घाट पर सुबह 11:45 बजे किया जाएगा: गृह मंत्रालय।”
लेकिन देश के मूड और कांग्रेस, अकाली दल सहित तमाम हलकों से सरकार के रुख से आहत प्रमुख नेताओं के निरंतर दबाव के चलते ऐसा लगता है कि सरकार को मनमोहन सिंह के लिए स्मारक स्थल के निर्माण की मांग को स्वीकार करना पड़ा है।
इससे पहले कांग्रेस अध्यक्ष, मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को टेलीफोन और बाद में लिखित पत्र के माध्यम से अनुरोध किया था कि स्वर्गीय प्रधानमंत्री के दाह संस्कार और स्मारक स्थल के बारे में सरकार फैसला करे। लेकिन केंद्र सरकार ने निगमबोध घाट पर ही अंतिम संस्कार का फैसला सुना दिया।
शुक्रवार को शाम तक केंद्र सरकार की ओर से यही फीड आ रही थी कि राष्ट्रीय राजधानी के समाधि परिसर में ‘राष्ट्रीय स्मृति’ के निर्माण के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई है। इसमें मौजूदा एवं पूर्व राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री सहित अन्य राष्ट्रीय नेताओं के अंतिम संस्कार किए जाएंगे, जैसा कि कैबिनेट द्वारा तय किया जाएगा। यह फैसला पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के निधन के एक दिन बाद लिया गया है, जिसके बारे में केंद्र सरकार का कहना है कि पहले राजघाट के पास दिवंगत राष्ट्रीय नेताओं के लिए अलग-अलग स्मारक बनाए जाते थे, जिससे काफी जगह घिर जाती थी। वर्ष 2000 में कैबिनेट द्वारा लिए गए निर्णय के अनुसार, “अब से सरकार किसी भी दिवंगत नेता के लिए कोई समाधि नहीं बनाएगी” और समाधि परिसर क्षेत्र में भूमि की कमी को देखते हुए, ‘राष्ट्रीय स्मृति’ का विकास किया जा रहा है ताकि वहां दिवंगत राष्ट्रीय नेताओं के अंतिम संस्कार किए जा सके।
सूत्रों के हवाले से सरकार के इस रुख से कांग्रेस नेता, विशेषकर सांसद प्रियंका गांधी बेहद खफ़ा थीं। उन्होंने यहां तक कहा कि यदि सरकार के पास स्मारक स्थल के लिए जगह की कमी है और उन्हें सूझ नहीं रहा है तो वह चाहे तो उनकी दादी, इंदिरा गांधी या पिता राजीव गांधी के शक्ति स्थल या वीर स्थल पर ही डॉ. मनमोहन सिंह के लिए स्थान तय कर सकती है।
कल दिनभर सरकार के इस कदम पर देशभर में जमकर थू-थू होती रही। देर रात 11:45 बजे प्रेस इन्फोर्मेशन ब्यूरो के माध्यम से गृह मंत्रालय की ओर से एक बयान जारी किया जाता है कि कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष के पत्र में मेमोरियल का हवाला दिया गया था, उसके बारे में तत्काल कैबिनेट की बैठक के बाद गृह मंत्री अमित शाह ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और स्वर्गीय मनमोहन सिंह के परिवार को सूचित कर दिया था कि सरकार मेमोरियल के लिए स्थान का आवंटन करेगी। इस बीच अंतिम संस्कार एवं अन्य कार्य संपन्न किया जाये क्योंकि मेमोरियल के लिए ट्रस्ट का निर्माण और भूमि का आवंटन की औपचारिकता पूरी करनी होगी।
अब यहां पर सवाल उठता है कि सुबह जो सूचना गृह मंत्रालय ने जारी की थी, उसमें मेमोरियल की तो बात ही सिरे से गायब थी। दूसरा, निगमबोध घाट पर आज तक किसी भी पूर्व प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति का दाह संस्कार नहीं किया गया है। और सबसे बड़ी बात, जब गांधी परिवार ही शक्ति स्थल और वीर भूमि में स्वर्गीय मनमोहन सिंह के मेमोरियल के लिए तैयार है तो सरकार को क्या दिक्कत हो सकती है?
अकाली दल के नेता सुखबीर सिंह बादल ने अपनी टिप्पणी में कहा है, “यह बेहद चौंकाने वाला और अविश्वसनीय कदम है! यह अत्यंत निंदनीय है कि केंद्र सरकार ने डॉ. मनमोहन सिंह जी के परिवार के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया है कि वे अत्यंत प्रतिष्ठित नेता का अंतिम संस्कार उस स्थान पर करें, जहां राष्ट्र के प्रति उनकी अद्वितीय सेवाओं को याद करने के लिए एक उपयुक्त और ऐतिहासिक स्मारक बनाया जा सकता है। यह स्थान राजघाट होना चाहिए। यह अतीत में अपनाई गई स्थापित प्रथा और परंपरा के अनुरूप होगा। यह पूरी तरह से समझ से परे है कि सरकार उस महान नेता के प्रति इतना अनादर क्यों दिखा रही है, जो सिख समुदाय के एकमात्र सदस्य थे, जो प्रधानमंत्री बने।”
“फिलहाल, अंतिम संस्कार निगमबोध घाट पर सामान्य श्मशान घाट पर किया जाना है। मैं यह विश्वास करने में असमर्थ हूं कि भाजपा सरकार का पक्षपात इस हद तक जाएगा कि वह डॉ. मनमोहन सिंह जी की वैश्विक प्रतिष्ठा की अनदेखी करेगी, जो उन्हें हासिल थी और हमेशा प्राप्त रहेगी। डॉ. मनमोहन सिंह ने देश को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महान ऊंचाइयों पर पहुंचाया।”
“कांग्रेस के साथ हमारे राजनीतिक मतभेदों को अलग रखते हुए, हमने हमेशा डॉ. मनमोहन सिंह को सर्वोच्च सम्मान दिया है क्योंकि वे राजनीति और राजनीतिक संबद्धताओं से परे हैं। वे पूरे देश के हैं। डॉ. साहब ने सिख और पंजाब के मुद्दों पर शिरोमणि अकाली दल के साथ अपने व्यवहार में बहुत संवेदनशीलता और करुणा दिखाई। मैं प्रधानमंत्री @narendramodi जी से आग्रह करता हूं कि वे सरकार के इस निंदनीय निर्णय को बदलने के लिए व्यक्तिगत रूप से हस्तक्षेप करें।”
लेकिन कुल मिलाकर नतीजा यही निकला कि स्वर्गीय मनमोहन सिंह के पार्थिव शरीर को पहले उनके आवास से कांग्रेस पार्टी के मुख्यालय लाया गया, जहां कांग्रेस पार्टी के सभी बड़े नेताओं और मुख्यमंत्रियों सहित स्वर्गीय मनमोहन सिंह के परिवार और सगे-संबंधियों ने श्रद्धांजलि अर्पित की।
इसके बाद उनके पार्थिव शरीर को राजकीय सम्मान के साथ निगमबोध घाट ले जाया गया, जहां पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू सहित उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री, गृहमंत्री सहित तमाम हस्तियों ने श्रद्धा सुमन अर्पित किये।
इस दौरान, पूरे समय गांधी परिवार का हर सदस्य और पार्टी अध्यक्ष, मल्लिकार्जुन खड़गे स्वर्गीय मनमोहन सिंह के परिवार के साथ मजबूती से खड़े दिखे, जो बताता है कि कांग्रेस और गांधी परिवार के लिए मनमोहन सिंह की क्या अहमियत थी।
ऐसा जान पड़ता है कि मनमोहन सिंह की शख्सियत जो उनके जीवित रहते देशवासियों की नजरों से ओझल बनी हुई थी, उनकी मौत के बाद मौजूदा पीएम के साथ तुलना करते हुए इतनी अज़ीज़ लगने लगी, जिसके बारे में मौजूदा सरकार ही नहीं खुद कांग्रेस को भी अहसास नहीं था।
फ़िलहाल सरकार ने मेमोरियल बनाने की बात स्वीकार कर ऐसे संवेदनशील मौके पर अपयश से बचने का रास्ता निकाल लिया, लेकिन 7 दिन के राजकीय शोक और निगमबोध घाट पर पूरी सरकार को खड़ा कर देने के बावजूद वह पूरी तरह से ख़ामोशी की चादर ओढ़ चुके मनमोहन सिंह के कृत्रित्व के बोझ तले दबी जा रही है, जिसकी एक बानगी देश के प्रमुख राष्ट्रीय समाचार-पत्रों की सुर्ख़ियों में देखी जा सकती है।
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