-सनत जैन
केंद्र सरकार ने राजकोषीय घाटा कम करने के लिए केंद्र की, जो 37 कल्याणकारी योजनाएं चल रही हैं, उनमें से 26 योजनाओं में कटौती कर दी है। समग्र शिक्षा अभियान में लगभग 10 फ़ीसदी की कटौती की गई है। वहीं एसटी-एससी विकास के कार्यक्रमों के लिए लगभग 27 फ़ीसदी की कटौती की गई है। पीएम आवास योजना में भी 28 फ़ीसदी की कटौती की गई है।
पीएम श्री योजना में 32 फ़ीसदी, स्वच्छ भारत अभियान में 49 फ़ीसदी, आयुष्मान इंफ्रा मिशन में 50 फ़ीसदी, कृषि एवं सिंचाई की योजनाओं में 19 फ़ीसदी, अमृत योजना में 17 फ़ीसदी और कृषि विकास योजना में लगभग 14 फ़ीसदी की कटौती की गई है। वर्ष 2023-24 के बजट में 4.69 लाख करोड़ का आवंटन केंद्र सरकार द्वारा किया गया था। संशोधित बजट के अनुसार अब वेलफेयर स्कीम का आवंटन ओवरऑल 6 फीसदी घटा दिया गया है। केंद्र सरकार द्वारा 2024-25 के लिए जो अंतरिम बजट पेश किया गया है, उसमें भी सरकार ने फूड फर्टिलाइजर और फ्यूल सब्सिडी में कटौती की है। अंतरिम बजट में खाद्य सब्सिडी में 3.3 फ़ीसदी, उर्वरक सब्सिडी में 12.77 फ़ीसदी तथा ईंधन सब्सिडी में 8.33 फ़ीसदी की कमी की है।
कुछ महीने के बाद ही लोकसभा के चुनाव होना हैं, ऐसे समय में अंतरिम बजट में आम मतदाताओं को राहत देने के स्थान पर, केंद्र सरकार द्वारा जो कटौती की गई है, उससे आम मतदाता आश्चर्य चकित है।
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बड़े-बड़े सपने दिखाए थे। भारत को दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बताया था। महिलाओं को नगद राशि ट्रांसफर करने की बात कही गई थी। रसोई गैस 450 रुपए में उपलब्ध कराने की बात कही गई थी। किसानों की भी राशि को 6000 से बढ़ाकर 12000 रूपये प्रति वर्ष करने का भरोसा दिलाया गया था। अंतरिम बजट में वह सब गायब है।
जिस तरीके से महंगाई बढ़ी है, उसके बाद यह माना जा रहा था कि मतदाताओं को टैक्स में छूट देने का काम सरकार करेगी। यह भरोसा भी आम मतदाताओं का टूट गया है। केंद्र सरकार दावा कर रही है, भारत की आर्थिक स्थिति बड़ी तेजी के साथ बढ़ रही है। हम जल्द ही तीसरी अर्थव्यवस्था बन जाएंगे। लेकिन अंतरिम बजट में जो प्रावधान सरकार ने किए हैं। वह सरकार की वास्तविक आर्थिक स्थिति को बता रहे हैं। सरकार कह कुछ रही है और वास्तविक स्थिति कुछ और है। अंतरिम बजट आने के बाद जिस तरह से अर्थशास्त्रियों द्वारा कहा जा रहा है, भारत सरकार के ऊपर लगभग 2 लाख करोड रुपए का कर्ज हो चुका है।
सरकार की आमदनी का लगभग 40 फ़ीसदी राशि पुराने कर्ज और ब्याज को चुकाने में खर्च होगी। लोगों की बचत कम हो गई है। उस बचत की राशि से भी बजट के राजकोषीय घाटे की पूर्ति के लिए सरकार को राशि नहीं मिल पा रही है। जीएसटी तथा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर के माध्यम से आम जनता पर सर्वाधिक टैक्स लगाया जा चुका है। सरकार की आय भी टैक्सों से बढ़ी है। सरकार के खर्चे भी तेजी के साथ बढे हैं। आय ओर व्यव के बीच में सरकार संतुलन नहीं बना पा रही है। सरकार ने बड़ी-बड़ी परियोजनाएं संचालित कर रखी हैं। कैपिटल इन्वेस्टमेंट के रूप में जो राशि सरकार द्वारा खर्च की जा रही है।
धन की कमी से परियोजनाएं समय पर पूर्ण नहीं हो पा रही हैं। घाटे वाली परियोजनाएं होने के कारण सरकार का वित्तीय समीकरण पूरी तरीके से गड़बड़ा गया है। सरकार के पास विदेशी कर्ज लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। ऐसी स्थिति में इंटरनेशनल मॉनिटरिंग फंड ने भारत सरकार के ऊपर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का कहना है, भारत सरकार ने जीडीपी की तुलना में यदि अपना खर्च नहीं घटाया, और राजस्व को नहीं बढ़ाया। ऐसी स्थिति में भारत सरकार को विदेशी कर्ज मिलना भी मुश्किल होगा।
कुछ महीने पश्चात लोकसभा का चुनाव होना है। सरकार मतदाताओं को राहत देना चाहती थी। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के दबाव में सरकार को राजकोषीय घाटा कम करने और कर्ज की राशि को घटाने का दबाव है। भारत सरकार की आर्थिक स्थिति का खाका अंतरिम बजट में स्पष्ट रूप से दिख रहा है।
भारत सरकार, वित्तीय संस्थाओं पर मनमाना नियंत्रण कर सकती है। सरकार के विभिन्न विभागों की रिपोर्ट अपने अनुसार बनवा सकती है। अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएं भारत के आंकड़ों पर विश्वास न करके, स्वयं आंकड़े तैयार करती हैं। अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं किसी तरह के दबाव में नहीं आती हैं। अंतर्राष्ट्रीय निवेशक भी यदि भारत में निवेश करेंगे, तो वह आर्थिक रूप से पूरा अध्ययन करने के बाद ही निवेश करने के लिए तैयार होते हैं। आईएमएफ द्वारा भारत सरकार को पहले भी चेतावनी दी जा चुकी है। सरकार अपने कर्ज को कम करे, खर्चों को घटाए। यदि भारत सरकार ने आर्थिक स्थिति को तुरंत नहीं संभाला, तो भारत की स्थिति भी पाकिस्तान, श्रीलंका, वेनेजुएला और अर्जेंटीना की तरह हो जाएगी।
केंद्र सरकार ने अर्थव्यवस्था को लेकर जो फुग्गा फुला कर रखा हुआ था, सरकार के अंतरिम बजट ने ही सरकार की आर्थिक स्थिति के फुग्गे की हवा निकालने का काम किया है। केंद्रीय वित्त मंत्री का यह कहना, कि जुलाई के बजट में सभी स्थितियों पर विचार करके बजट प्रस्तुत करेंगे। इसका मतलब यह निकाला जा रहा है, कि जब संपूर्ण बजट प्रस्तुत किया जाएगा, उस समय सरकार को अपनी आय बढ़ाने के लिए भारी टैक्स लगाना होंगे। लोक लुभावन योजनाओं को बंद करना पड़ेगा। इसके अलावा कोई भी विकल्प केंद्र सरकार के पास नहीं होगा। आने वाला समय भारत के लिए आर्थिक दृष्टि से सबसे खराब समय होगा। यह अर्थशास्त्री कहने लगे हैं।