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सुशील मोदी की अपमान जनक स्थिति

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शिवानन्द तिवारी ,पूर्व सांसद

सुशील मोदी जी को राजनीति करते आधी सदी गुजर गई. संभवतः 1973 में बस विश्वविद्यालय छात्र संघ के महासचिव चुने गए थे. संयोग है कि उसी वर्ष लालू जी उसी छात्र संघ के अध्यक्ष बने थे. लालू यादव से सुशील जी का राजनीतिक टकराव स्वभाविक था. दोनों दो विपरीत विचारधारा के संगठनों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे. तब से अब तक लालू जी से सुशील का टकराव लगातार जारी रहा है. 

लेकिन दोनों की राजनीतिक हैसियत में बहुत बड़ा फ़ासला है. सबकुछ के बावजूद लालू यादव आज भी राष्ट्रीय राजनीति में दखल रखते हैं. लेकिन सुशील जी का दुर्भाग्य यह है कि बिहार की राजनीति में इतने दिनों बाद भी तीसरे स्थान से उपर नहीं चढ़ पाए.

इस बीच सुशील जी के लिए राजनीतिक स्थिति और अपमान जनक हो गई है. लालू जी के पुत्र तेजस्वी, जिनकी उम्र बत्तीस तेंतीस वर्ष है की राजनीतिक हैसियत आधी सदी से राजनीति के अखाड़े में पसीना बहाने वाले सुशील मोदी से उपर हो गई है. विधायकों की संख्या और वोट के प्रतिशत के हिसाब से बिहार की सबसे बड़ी पार्टी के वे स्वभाविक नेता हो गए हैं . स्वभाविक इसलिए कि विधानसभा के पिछले चुनाव में तेजस्वी ने न सिर्फ़ अपनी पार्टी के चुनाव अभियान का नेतृत्व किया बल्कि संपूर्ण गठबंधन का स्वभाविक नेतृत्व भी उनके ही कंधों पर था. परिणाम सबके सामने है. 

इससे सुशील मोदी की मनःस्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है. हमारे समाज में जिस प्रकार पुण्य हीन, लाचार और बेबस पुरनिया खीज में श्राप देता है. आज वही स्थिति सुशील मोदी की हो गई है. आधी सदी तक बाप से लड़ते लड़ते बिहार की राजनीति में सुशील जी की राजनीतिक हैसियत तीन नम्बर से उपर नहीं पहुँच पाई ! आज बेबस और लाचार वही सुशील मोदी तेजस्वी को जेल जाने का श्राप दे रहे हैं. लेकिन श्राप भी उसी का फलता है जिसमें पुण्य की ताक़त होती है.

सुशील मोदी की इस अपमान जनक स्थिति को देखकर पीड़ा होती है. लंबे अरसे तक हमलोगों ने साथ काम किया है. इसलिए सुशील जी को मेरी मित्रवत् सलाह होगी. राजनीति की मुख्य धारा से अलग राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का कई क्षेत्रों में काम है. उन्हीं में से किसी एक क्षेत्र को चुनकर सुशील राजनीति की सक्रिय धारा से किनारे हो जांए

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