भाजपा के ब्रह्मास्त्र नारे “बटोगे तो कटोगे” को संघ ने भी मूक सहमति दे ही दी है। साफ है चुनाव में पार्टी इसी मुद्दे को लेकर आगे बढ़ेगी और इसमें भी कोई दो-राय नहीं है कि भाजपा को इससे बड़ा लाभ होने की संभावना है, क्योंकि हिंदुत्व का चेहरा बन चुके योगी आदित्यनाथ इस नारे के साथ आगे बढ़ते हैं, तो नतीजे काफी हद तक भाजपा के पक्ष में होंगे।
लेकिन सवाल ये है कि फिलहाल केंद्र की मोदी सरकार की दो महत्वपूर्ण बैसाखियां यानि चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार इस मुद्दे पर भाजपा के साथ रहेंगे? इससे भी बड़ा सवाल ये है कि क्या भाजपा के नेता खुद को भी बंटने से रोक सकेंगे? क्योंकि अब तक जो हालात भाजपा में देखे गए हैं, उनमें भाजपा के नेताओं में भी अंदरखाते विवादों की खबरें छनकर बाहर आती सुनाई पड़ रही हैं।
दरअसल, जल्द ही आंध्र प्रदेश में जमीयत उलमा-ए-हिंद एक बड़ा जलसा करने जा रहा है, जिसमें वो चंद्रबाबू नायडू से यह सवाल करेगा कि अगर वक्फ संशोधन बिल पास होता है, तो उसके जिम्मेदार चंद्रबाबू नायडू होंगे। स्थिति ये है कि नीतीश और नायडू अगर मुस्लिम समाज को इग्नोर करके वक्फ संसोधन विधेयक का समर्थन करते हैं, तो उनका वोट बैंक घटेगा और उनकी पार्टी कमजोर होगी, जो कि भाजपा भी जरूर चाहेगी। और अगर वो मुसलमानों को साधने की कोशिश करते हैं, तो उन्हें भाजपा की नाराजगी का सामना करना पड़ेगा।
इस प्रकार ये फांस हर तरह से नीतीश और नायडू के गले में फंसती नज़र आ रही है। तो क्या इतने बड़े वर्ग से सियासी नाराजगी मोल लेने के लिए नीतीश और नायडू तैयार हैं? क्योंकि मदनी ने एनडीए सरकार की स्थिरता पर सवाल उठाते हुए चेतावनी दी है कि अगर यह विधेयक पारित हुआ, तो दोनों बैसाखियां (नीतीश-नायडू) इसके परिणाम से बच नहीं सकेंगी। तो क्या भाजपा के इस ब्रह्मास्त्र बटोंगे तो कटोगे के नारे के सामने नीतीश-नायडू धराशाही हो जाएंगे या कोई बड़ा निर्णय लेंगे? यह देखने के लिए हमें आगामी शीतकालीन सत्र का इंतजार करना होगा।
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