लक्ष्मी कुमावत
दोपहर का समय था। ममता जी के घर में आज अच्छी खासी चहल-पहल थी। पर कुछ अच्छे के लिए नहीं बल्कि घर की बहू ने बवाल खड़ा कर दिया था। इस कारण से ममता जी के परिवार वाले और नई बहू मानसी के मायके वाले सब मौजूद थे। सब के सब सुलह कराने के लिए यहां आए थे।
आखिर पाँच महीने पहले आई बहू को अपनी अलग गृहस्थी बसानी है। वो अपने सास-ससुर के साथ नहीं रहना चाहती इसलिए कोई बीच का रास्ता ढूंढा जा रहा था।सब अपनी अपनी बात ही किए जा रहे थे, वही एक तरफ बैठे ममता जी और उनके पति प्रवीण जी एक दूसरे की शक्ल देख रहे थे और चुपचाप सब की बातें सुन रहे थे।
जबकि बहू मानसी रो रोकर अपने मम्मी पापा को बता रही थी कि कैसे उसके सास-ससुर उसे परेशान करते हैं। बात-बात पर टोकते हैं।
बेटा समीर भी अपनी तरफ से बात कहने की कोशिश कर रहा था लेकिन उसकी कोई सुन ही नहीं रहा। भला ऐसे मामलों में लड़कों की कोई सुनी जाती है क्या?
ममता जी आंखों में आंसू लिए सिर्फ अपने घर का तमाशा होते देख रही थी और साथ ही सोच रही थी कि कैसे उन्होंने ये घर बनाया था। ममता जी जब शादी होकर आई थी, तब प्रवीण जी की स्थिति भी अच्छी नहीं थी। घर में सास, दो ननद सब थे और कमाने वाले सिर्फ प्रवीण जी और घर के नाम पर दो टिनशेड के कमरे। एक में सास और ननद रहती थी तो दूसरे कमरे में प्रवीण जी और ममता जी। उनका कमरा ही रसोईघर की तरह इस्तेमाल किया जाता था।लेकिन ममता जी के संस्कार ऐसे थे कि उन्होंने उन टीन शेड के कमरों को ही अपना महल समझा। हालांकि अरमान तो थे कि कभी उनके सिर पर भी ढंग की छत जरूर होगी। और इसके लिए उन्होंने प्रवीण जी का पूरा साथ दिया।
प्रवीण जी की कमाई ज्यादा तो नहीं थी पर इतनी तो थी कि घर का खर्चा आराम से निकल जाता था और दोनों बहनों की पढ़ाई का खर्चा हो जाता था। पर उन दोनों की शादी भी करनी थी, इसके लिए कुछ सेविंग भी चाहिए थी इसलिए ममता जी भी सिलाई का काम जानती थी तो उन्होंने घर में ही लोगों के कपड़े सिलना शुरू कर दिये। पर अपनी जिम्मेदारी से कभी मुंह नहीं मोड़ा। यहां तक कि अपनी इच्छाओं को भी कहाँ दबा दिया, उन्हें खुद पता नहीं चला।
मां की दवाई, दोनों बहनों की पढ़ाई, उनकी शादियां, समीर का जन्म, सब कुछ उन्हीं दो टिनशेड के कमरों में हुआ। आधी उम्र निकल गई लेकिन अपना घर बनाने का सपना सपना ही रह गया। समीर की पढ़ाई पर पूरा ध्यान देने के बाद दोनों पति-पत्नी इतना तो बचत करने लगे कि कैसे भी करके इन दो कमरों पर तो ढंग की छत बन ही जाए। पर फिर भी कभी बहनों के ससुराल में कोई काम आ जाता तो कभी हारी बीमारी। पर फिर भी दोनों ने हिम्मत नहीं हारी।
जैसे जैसे पैसे एकतित्र होते गये, वैसे वैसे एक-एक कमरे की छत बनती गई। और फाइनली समीर की पढ़ाई पूरी होने तक मकान अपने पूरे नक्शे पर आ चुका था। एक-एक कमरे करके पूरा घर तैयार हो चुका था। आज घर में दो कमरे, एक हॉल, किचन सब कुछ था।
समीर की पढ़ाई पूरी होने के बाद उसकी नौकरी लग गई। अब तो दोनों को लगा था कि उनकी मेहनत रंग ले आई। बस अब घर में बहू लाने की तैयारी होने लगी। आखिर इकलौता लड़का है, अपना खुद का घर है, अच्छी नौकरी करता है, इसलिए मानसी का रिश्ता समीर के लिए खुद आगे से चलकर आया था। देखने में भी वो सबको भली लगी थी इसलिए समीर की शादी मानसी से पक्की कर दी।
कुछ महीने बाद दोनों की शादी भी हो गई लेकिन मानसी को अपने सास-ससुर के साथ रहना रास नहीं आया। आजकल की जनरेशन का परिवार से मतलब पति पत्नी और बच्चो से होता है। यही सोच मानसी की भी थी। उसे सास ससुर के साथ रहना किसी बंदिश से कम नहीं लगता। ममता जी प्रवीण जी कुछ कहते तो उसे लगता है कि ये लोग मुझे टोक रहे हैं। घर के काम करने में उसे वैसे ही रोना आता था, जिसमें तो आधे से ज्यादा काम तो ममता जी ही कर लेती थी। बाहर से सब्जी भाजी और सामान लाने का काम प्रवीण जी कर लेते थे।
कहीं आने जाने पर भी कोई रोक टोक नहीं थी। जब भी समीर और मानसी कही घूमने जाते, ममता जी खुद अपने और प्रवीण जी के लिए खाना बना लेती, पर मानसी से कुछ ना कहती। पर फिर भी उसे समस्या थी। अब तो आए दिन वो समीर से झगड़ा करने लगी थी कि उसे अलग रहना है। अपनी अलग गृहस्थी बसानी है। उससे सास-ससुर के साथ रहते नहीं बनता और ना ही उनकी सेवा होती है। पर प्रवीण हर बार समझा कर बात को टाल देता था।
लेकिन अभी पिछले दो महीने से तो वो बात-बात पर बतंगड़ बनाने लगी थी। घर की सुख शांति पूरी तरह से भंग हो चुकी थी। और आज सुबह बात कुछ भी नहीं थी।
सुबह के 9:00 बज चुके थे, पर मानसी अभी तक कमरे से उठकर नहीं आई थी। जबकि समीर ऑफिस जा चुका था। ममता जी को लगा शायद बहू की तबीयत खराब हो गई इसलिए वो उसके कमरे में बिना दस्तक दिए चली गई और वहां जाकर उससे पूछने लगी,
” क्या हुआ बहू, तुम उठी नहीं आज। क्या तुम्हारी तबीयत खराब है?”
बस मानसी ने इसी बात को पकड़ लिया,
” आप मेरे कमरे में बिना पूछे कैसे आ गई? आपको इतनी भी तमीज नहीं है कि बेटे बहू के कमरे में जाते हैं तो दरवाजा नाॅक करना चाहिए”
ममता जी ने समझाने की कोशिश भी की,
” बहू बुरा क्यों मान रही हो। मुझे लगा कि तुम्हारी तबीयत खराब है, इसलिए चली आई”
पर मानसी तो सुनने को तैयार ही नहीं थी। अपनी ही धुन में बोले जा रही थी,
“हां ये तो सब बहाने हैं। भला बहू किस को सुखी अच्छी लगती है। मेरी कोई जिंदगी नहीं है क्या? जब देखो टोका टाकी करते रहते हो। थोड़ा लेट उठ जाऊंगी तो कुछ बिगड़ जाएगा क्या? नहीं रहना मुझे आपके साथ। मेरे मम्मी पापा ने पता नहीं क्या देखकर आपके घर में शादी करवा दी। बिल्कुल आजादी ही नहीं है मुझे। घुटन होती है मुझे इस घर में। हर बात में टोका टाकी”
ममता जी ने समझाने की खूब कोशिश की। पर मानसी ने रो-रोकर अपने मायके फोन लगा दिया और अब उसी की मीटिंग बैठी है। समीर को भी ऑफिस से फोन करके बुला लिया गया। अचानक मानसी की मम्मी खड़ी हुई और प्रवीण जी से बोली,
” देखिए समधी जी, हमारी बेटी आपके साथ नहीं रहना चाहती। और हम इसे इस तरह रोने के लिए आपके घर में नहीं छोड़ सकते। अब इसका कुछ तो निवारण निकालना ही पड़ेगा। कम से कम आप भी शांतिपूर्वक रहे और ये लोग भी शांति पूर्वक रह सके। मैं बेटी की मां हूं, मैंने उसे विदा किया है। पर वो खुश नहीं है तो ये जानकर मुझ पर क्या बीतेगी। आप समझ सकते हैं”
इधर प्रवीण जी निरंतर ममता जी को देख रहे थे। कुछ सोचकर वो भी खड़े हुए और समधन जी के सामने हाथ जोड़कर बोले,
” देखिए समधन जी मैं मानता हूं कि आपकी बेटी हमारे साथ नहीं रहना चाहती तो हमें कोई समस्या नहीं है। आपकी बेटी अलग रहना चाहती है तो अलग रहे। अपनी अलग गृहस्थी बसाना चाहती है बिल्कुल शौक से बसाए”
” पापा आप यह क्या कह रहे हैं”
अचानक समीर ने कहा तो प्रवीण जी ने उसे हाथ दिखाकर आश्वासन देते भी चुप कराया। सुनकर मानसी के चेहरे पर मुस्कान आ गई आखिर उसकी मंशा पूरी हो रही थी। तभी समधन जी ने कहा,
” तो समधी जी बताइए कि आप इस घर में से कौन सा और कितना हिस्सा अपने बेटे बहू को नई गृहस्थी बसाने के लिए दे रहे हैं ताकि अभी हम इनकी गृहस्थी साथ की साथ सेट कर जाए। और फिर बच्चे आपके पास ही तो रहेंगे”
प्रवीण जी ने पहले ममता जी की तरफ देखा और फिर समधन जी की तरफ देखते हुए बोले,
” देखिए समधन जी, मुझे कोई परेशानी नहीं है। आखिर मैं भी एक पिता हूं। जैसे आपने अपनी बेटी विदा की है तो मैं भी अपने बेटे को विदा कर दूंगा। पर इस मकान में से हिस्सा नहीं होने दूंगा “
प्रवीण जी की बात सुनकर सब सकते में आ गए,
” आप ऐसा कैसे कर सकते हैं पापा जी? आखिर इस घर पर हमारा भी हक है”
अचानक मानसी ने कहा तो प्रवीण से उसकी तरफ मुस्कुराते हुए बोले,
” देख बहू, इस गलतफहमी में मत रहना। ये घर पूरी तरह से मेरा और ममता का है। हमने पाई पाई जोड़ कर इसे खड़ा किया। इसे बनाने के लिए अपनी अनगिनत इच्छाओं को मारा है। इसकी एक एक ईट में हमारे खून पसीने की कमाई है। अगर तुम्हें अपनी अलग गृहस्थी बसाने का शौक है तो बेशक बसाओ, लेकिन अपने दम पर। ससुर के दम पर नहीं। और रही बात पास रहने की तो समधन जी चिंता मत कीजिएगा। हमारे आस-पास ही कहीं किराए का कमरा ढूंढ देता हूं मैं। आपकी बेटी को कोई परेशानी नहीं होगी”
प्रवीण जी की बात सुनकर मानसी की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई। उसे इस तरह के जवाब की बिल्कुल उम्मीद नहीं थी। अब नए तरीके से गृहस्थी शुरू करना मानसी के बस की बात नहीं थी। मानसी ने उम्मीद के साथ अपने पिता की तरफ देखा तो वो प्रवीण जी के साथ खड़े थे,
“बेटा मैं तो प्रवीण जी के साथ हूं। अपनी मेहनत की कमाई का गुरुर ही कुछ और होता है। और जिसने गृहस्थी खुद बसाई है ना, उसे गृहस्थी की अहमियत बहुत अच्छे से पता होती है। बसी बसाई चीज से हिस्सा मांग लेना तो बहुत आसान”
मानसी को तो अभी भी यकीन नहीं हो रहा है था कि ये हो क्या रहा है। उसने उम्मीद भरी नजरों से अपनी मम्मी की तरफ देखा,
” बेटा मुझे भी लगता है कि तेरे पापा सही कह रहे हैं। जो इंसान अपने हाथों से तिनका तिनका जोड़कर अपनी गृहस्थी बसाता है ना, उसे अच्छे से पता होता है कि गृहस्थी की अहमियत क्या है। और फिर उस बसी हुई गृहस्थी को देखना कितने सुकून के पल होते हैं। मैं तुझसे ऐसे पल छिनना नहीं चाहती। पर तू फिक्र मत कर। मैं किराए के कमरे में भी तेरा सारा सामान शिफ्ट करवाकर जाऊंगी। आखिर माँ हूँ ना, मुझे अच्छे से पता है कि तुझे अकेले काम करने में परेशानी होती है”
अब तो मानसी से कुछ बोलते ही नहीं बन रहा था। आखिर जब मानसी ने देखा कि उसके माता-पिता भी उसके साथ नहीं है तो आखिरकार थक हार कर मानसी को उसी घर में रहना पड़ा। अभी भी कई बार अलग होने का कीड़ा कुलबुलाता था। लेकिन जानती थी कि साथ देने वाला कोई नहीं है तो अपने आप ही रो धोकर रह जाती थी।