*सुष्मिता*
हम निरंतर प्रत्येक समय इस बात के विषय में जरूर विचार करते हैं कि हमारी गुलामी कैसे खत्म हो? और देश में समानता कैसे आए? परंतु जाने-अंजाने कहीं ना कहीं हम भी इसी गुलामी वाले विचारों का समर्थक बनते जा रहे हैं। सभी जातियाँ अपने से नीचे एक जाति खोज लेती हैं। खुद एक दूसरे का जाति के नाम पर नीचा दिखाते रहे हैं।
सामन्ती युग में काम के आधार पर हमें कई जातियों में बांट दिया गया। परंतु यह जरूरी नहीं है कि जो कार्य हम अपनी जाति के आधार से करते आए वह अभी करते रहें वर्तमान में हमारी जाति से हमारे कार्य का ज्यादा महत्व है मगर हमें ऐसा क्यों लगता है की हमारे बच्चे एक समान जाति में शादी करके खुश रहेंगे? और विवाह के पश्चात पंडित के मंत्रों का पति-पत्नी के जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, तो हमें ऐसा क्यों लगता है की विवाह में पंडित का होना जरूरी है?
दरअसल हमारा समाज एक अर्धसामन्ती समाज है, यहाँ जमीनों का असमान वितरण मौजूद हैं। जोतने वालों के पास जमीन नहीं है या बहुत कम है। इस अर्धसामन्ती अर्थव्यवस्था का प्रभाव हमारी संस्कृति में भी मौजूद है।
दहेज भी सामंतवादी विचारधारा की ही एक बुराई है जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलती आ रही है। दहेज लेने और देने की परंपरा सदियों से चली आ रही है इस कॉस्ट गरीब की पूरी जिंदगी की जमा पूंजी अपने बच्चों के विवाह में खर्च हो जाती है और ऊपर से दहेज की व्यवस्था करता है इस दहेज को इकट्ठा करने के लिए आम आदमी को अपनी रोजी रोटी का सहारा खेत को भी बेचने की नौबत जरूरत हो जाती है। जो गरीब परिवार है वह चाहे किसी भी जाति का हो वह दहेज से पीड़ित रहा है। यह दहेज की लूटपाट कब तक खत्म होगी?
सन् 1961 से ही दहेज उन्मूलन कानून लागू है मगर शायद ही कोई शादी बिना दहेज के होती होगी। हमारे समाज में ऐसे लोग हैं जो बात तो करते हैं कि दहेज नहीं लेना चाहिए लेकिन जब अपने बेटे की शादी करनी होती है तो दहेज पहले पूछते हैं। दहेज समस्या चरम पर है उसके बाद भी अगर लड़की पक्ष से थोड़ी गलती हो गई तो काफी दिनों तक उसे ताना सुनना पड़ता है। हमारी जिम्मेदारी है कि दहेज प्रथा को रोका जाए।
दहेज प्रथा कठोर कानूनों से रुकने वाली नहीं है। बेरोजगारी की समस्या के कारण ही यह समस्या बनी हुई है। हमारी भुखमरी लाचारी बेरोजगारी के कारण ही दहेज की समस्या बढ़ रही है। जिन्हें रोजगार मिल गया वे ज्यादा दहेज माँगते हैं क्योंकि अधिकांश नौजवान बेरोजगार हैं। बेरोजगारी की समस्या मौजूदा व्यवस्था में हल नहीं होगी, यह समाजवादी व्यवस्था में ही हल हो पाएगी।
दहेज के अलावा जाति भी एक बड़ी समस्या है। हमारे बीच ऐसे लोग हैं जो बात करते हैं कि दहेज नहीं लेना चाहिए लेकिन जब अपने बेटे की शादी करनी होती है तो दहेज पहले पूछते हैं। और जाति भी समान होनी चाहिए जाति तक तो ठीक है पर जाति में भी कौन सी जाति या गोत्र की बात भी जरूरी होती है विगत कुछ दिनों से थोड़ी परिवर्तन हुआ की गोत्र की थोड़ी कमी कम हुई लेकिन ज्यादातर विवाह अब भी गोत्र के बिना नहीं होते। हम आगे कदम बढ़ाना चाहते हैं परंतु पीछे का कदम भी नहीं उठा रहे हैं
अंतर जाति विवाह दो परिवारों के समान विचार के संबंध से पारिवारिक और जातिवाद की समस्याएं कम होती है और हमारी एकता मजबूत होती है। समाज के अधिकांश प्रबुद्ध लोग अक्सर इस बात को हमेशा कहते हैं कि औरत की कोई जाति नहीं होती लेकिन जब उनके लड़के अन्तर्जातीय शादी कर लेते हैं तो वहाँ पर वे लोग औरत की जाति तय करने लगते हैं। यह विरोधाभास अच्छा नहीं होता। आखिर क्यों समाज के लोग दो तरफा बात करते हैं? दरअसल यह समाज पर अर्धसामन्ती संस्कृति का प्रभाव है।
समाज इसी तरह के ठहराव जैसी स्थिति में बना हुआ है। ऐसी ही परिस्थिति में समाज को आगे ले जाने के लिए हम चाहते हैं कि एक अलग समाज की कल्पना करें या और उसे साकार करने का अथक प्रयास किया जाए। हमारी ऐसी कोशिश होनी चाहिए जिससे अपने बच्चों के अच्छे भविष्य के साथ-साथ एक अच्छा समाज बन जाए।
सामाजिक संगठन चलाने वाले कुछ लोग बात तो करते हैं लेकिन शादी विवाह के मामले में उनका दिमाग सामंतवादी सोच में चला जाता है अगर पिता राजी होता है तो माँ बिल्कुल राजी नहीं होती। इसलिए हमें अपने परिवार में बच्चों से खुलकर बात करने का प्रयास करना चाहिए साथियों, अपने बच्चों को बताएं कि जिस समाज में हम जीवन व्यतीत कर रहे हैं वह अच्छा नहीं है हमें एक अच्छा समाज बनाने के लिए हमें एक दूसरे के साथ बिना किसी भेदभाव के सबके साथ सुख दुख के भागीदार बने और मानव में भेद भाव ना करें। जिससे मेहनतकशवर्ग की एकता भी मजबूत हो।
हमें एक बेहतर समाज बनाना है तो सामंती/अर्धसामन्ती विचारधारा व संस्कृति को छोड़कर एक बेहतर समाजवादी समाज बनाना होगा, जहां हम सब के साथ प्रेम का बर्ताव भी कर सकें। इस तरह हमारी एकता बढ़ती जाएगी तो अर्धसामंती व साम्राज्यवादी ताकतों से लड़ने की क्षमता भी बढ़ेगी और किसी भी शासन सत्ता को हिला सकते हैं, तथा उसे जड़ से उखाड़ सकते हैं।
एक बात और हमारे बीच आ रही है कि संगठन में मध्यवर्गीय लोग भी हैं, अक्सर मध्यमवर्गीयों के भीतर गरीबों के प्रति नफ़रत बहुत ज्यादा होती है। मैं उन लोगों से अनुरोध करता हूं कि आप भी उत्पीड़ित इंसान हैं मगर अपने शोषण के खिलाफ लड़ना है, अपने बच्चों के अन्धकारमय भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिए संघर्ष करना है तो आपके अन्दर शोषकवर्ग का जो सामन्ती विचार है, उस सामंती विचारधारा को निकाल कर मेहनतकश इंसान बनें। और विचारधारा के महत्व को समझें। तब हम मिलकर मौजूदा शातिर दुश्मनों से लड़कर जीत सकते हैं।
अमीर लोग किसी भी जाति के हों, वे आपस में रोटी-बेटी का संबन्ध बनाए हुए हैं। यह जातिवाद की समस्या सिर्फ गरीबों व मध्यमवर्गीयों में एक साजिश के तहत फैलायी जा रही है। अब गरीबों और मध्यवर्गीय मेहनतकश लोगों को इन साजिशों को समझना होगा, और हमे भी एकजुट होकर अंतर जाति विवाह को प्रोत्साहन देना होगा। इसकी शुरुआत सबसे पहले अपने संगठन से किया जाए और पूरे देश में इस बात का प्रचार किया जाए। संगठन के सभी साथियों को इस बात की पहल करनी चाहिए।
*सुष्मिता*