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विवाह भोज का महत्व

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डॉ. रीना रवि मालपानी

राधा के पिता दिनेश उत्साह से शादी-ब्याह की तैयारी में लगे हुए थे। बेटी की शादी का स्वप्न हर पिता देखता है और उसे साकार करने में बहुत कुछ त्याग करना होता है। हर रात उसकी नींद अचानक से उड़ जाती है। कैसे-कैसे पाई-पाई जोड़कर, अपने अरमानो को कुचल कर राधा के परिणयोत्सव की तैयारी की। दिनेश भरसक प्रयास कर रहा था कि कहीं कुछ कमी न रह जाए। राधा की पढ़ाई-लिखाई से लेकर विवाह तक का सफर दिनेश की दिन-रात की तपस्या से जुड़ा था। दिनेश रसोइया ढूँढने से लेकर विवाह भोज, सब कुछ श्रेष्ठ ही चाहता था। सब तैयारी पूरी हो गई थी। परिवार, रिशतेदारों और समाज के सभों लोगों को उसने बड़े चाव से बुलाया।


विवाह की तैयारियों की निगरानी करते हुए उसकी निगाह रिशतेदारों के एक झुंड पर पड़ी, वह सभी विवाह की तैयारियों का आंकलन कर रहे थे। उनमें से कुछ लोग विवाह भोज की एक-एक कमी को उजागर करने में लगे थे कि मीठा यह होना चाहिए था, मौसम के अनुकूल नहीं है। सब्जी में स्वाद कम है, रोटी कडक हो गई है इत्यादि-इत्यादि। यह सब सुनते ही दिनेश की आँखों से पीड़ा के आँसू झलक उठे। पता नहीं राधा ने कैसे दिनेश की व्यथा को जान लिया, वह चुपके से आई और पीछे खड़े होकर सबकी बाते सुनी। राधा को पिता के दर्द का पूरा एहसास था। उसने निडरता से अपनी बात उन रिशतेदारों के सामने रखी। उसने कहा कि आपको ज्ञात है कि इस विवाह भोज कि तैयारी में मेरे पिता हर क्षण अपने मन की अभिलाषाओं को मारते गए, ताकि इस दिन कुछ कमी न रह जाए। इस विवाह निमंत्रण और आवभगत में वह स्वयं को भी भूल गए और मात्र कुछ कमियों के चलते आप उनकी मेहनत को व्यर्थ कर रहे है। उसकी इस सच्चाई का सभी ने स्वागत किया।


इस लघु कथा से यह शिक्षा मिलती है कि विवाह भोज के लिए एक व्यक्ति बरसो तक चटनी-रोटी, आचार-रोटी खाता है ताकि विवाह के भोज में स्वादिष्ट से स्वादिष्ट पकवान परोस सकें। फिर समाज क्यों उसके त्याग पर टीका-टिप्पणी की मोहर लगाता है, क्योंकि उसका समर्पण, मेहनत सब नगण्य हो जाती है, और हमें केवल स्वाद नजर आता है। हो सकें तो विवाह निमंत्रण के भोज का आदर करें, व्यर्थ की आलोचना से किसी का मन आहत न करें। किसी के चेहरे की मुस्कान पर अपनी छाप लागने में सहयोग करें।

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