राजा की कुटिल नीतियों के चलते राज्य में असंतोष चरम पर था। राजा का प्रचार तंत्र इतना मजबूत और निर्लज्ज था कि राज्य के लोकतंत्र को रौंदने और जनता के असंतोष व आंदोलन को बदनाम करने में कोई कोताही नहीं बरती जा रही थी। भोली भाली जनता को भ्रमित करने में पूरा तंत्र लगा हुआ था।दंगाजीवी राजा लोकतंत्र व जनता की सबसे बड़ी ताकत आंदोलन को बदनाम करने व अपने सेठों को खुश करने के लिए साहसी आंदोलनकारियों को कुटिल मुस्कान के साथ आंदोलनजीवी करार दे रहा था।चंदाजीवी और दंगाजीवी संगठन की पैदाइश जुमलेबाज राजा यह भूल चुका था कि उसके आजाद राज्य की नींव में आंदोलनों का लंबा इतिहास है।
ड्रामेबाजी में माहिर राजा भरी सभा में कभी अट्टहास करता तो कभी भावुक होकर फफकने लगता और समस्त भ्रमजीवी राजा के मंत्री-संतरी मेज थपथपाकर राजा का उत्साह बढ़ाते रहते।थपथपाहट के शोर से गदगदाया राजा मतांध होकर मन की बात बकने लगता। चारों दिशाओं में फैले घोर अंधकार को स्वर्णिम प्रकाश मानने वाले लंपट अंधभक्त दंगाजीवी राजा के हर झूठ पर हुआ-हुआ करने लगते।
दरबार में यह जानते हुए भी कि मन की बात कहने का मंच राज दरबार नहीं बल्कि रेडियो है, फिर भी सभापति की हिम्मत नहीं होती कि मते हुए राजा को वह टोंक सकें कि ऐ दंगाजीवी महान जुमलेबाज राजा यह जगह कुछ भी अनाप-शनाप या मन की बात बकने के लिए सही नहीं है। इसके लिए राजनीतिक मंच व सोशल मीडिया का मंच सही है और फिर रेडियो तो है ही। राज्य में मूर्खता का ऐसा आभामंडल रचा गया कि हर देशभक्त को देशद्रोही और सत्ता के चाटुकारों को देशप्रेमी कहा जाने लगा। प्रशस्ति गान न गाने वाले पत्रकारों को जेल में ठूसा जाने लगा। राज्य की जांच एजेंसियों का भरपूर दुरुपयोग किया जाने लगा।
इसके बावजूद मेहनतकश किसानों ने राजा की मक्कारी से दो-दो हाथ करने का दृढ़ निश्चय कर लिया था।
धरती से लेकर आकाश तक हर माध्यम के सहारे झूठ को सच की तरह प्रचारित करने में माहिर राजा और उसके चेले-चपाटे राज्य में किसानों के बढ़ते आंदोलन को बदनाम करने का पुरजोर षड़यंत्र रच रहे थे। राजा यह भूला हुआ था कि राज्य हर नागरिक का उतना ही है, जितना उसका। लोकतंत्र में किसान का भी उतना ही महत्व है जितना सेठों का। कहते हैं कि दंगाजीवी राजा को कभी अक्ल नहीं आई। किसानों के सामने उसे झुकना पड़ा, लेकिन वह कुटिलताओं से बाज नहीं आया।
कहते हैं उसकी ट्रेनिंग नागपुर में हुई थी। वह अनाज नहीं खाता था। ट्रेनिंग के दौरान संतरे खाने वाला, राजा बनने पर मशरूम खाने लगा।
इतिहास में यह भी है कि उसने परिश्रम कभी नहीं किया। वह कुछ दिनों तक भीख मांगकर फल-फूल खाते हुए भ्रमण करता रहा। परिश्रम से बचने के लिए उसने सेठों की गुलामी स्वीकार कर ली और राजा बनते ही किसान और मजदूरों की बर्बादी के लिए नये-नये फरमान जारी करने लगा।
जर्मन तानाशाह हिटलर ने भी 1920 में अपने विरोधियों को कहा था पैरासाइट (परजीवी)
