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लखीमपुर कांड में मंत्री का इस्तीफा नहीं हुआ, आखिर सरकार क्या साबित करना चाहती है?-वरुण गांधी

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लखीमपुर कांड में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री का इस्तीफा अभी भी नहीं हुआ है, उन्हें संरक्षण देकर केंद्र सरकार क्या साबित करना चाहती है? यह सवाल भाजपा नेता और सांसद वरुण गांधी ने भास्कर को दिए इंटरव्यू में उठाया है। वरुण ने तमाम मुद्दों पर बातचीत की।

CM पद की दावेदारी से लेकर नेहरू-गांधी परिवार तक पर खुलकर बोले वरुण…

सवाल- नेहरू और गांधी परिवार की विरासत का असली हकदार कौन है? सोनिया-राहुल या मेनका-वरुण?
जवाब- 
नेहरू गांधी परिवार का हर सदस्य इस विरासत को अपने तरीके, अपनी सोच और चिंतन के आधार पर आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। मेरी मां को ही देखिए आठ बार की सांसद हैं, उनकी निस्वार्थ सोच की इससे बड़ी क्या मिसाल हो सकती है कि वे सदैव सबकी मदद को तत्पर रहती हैं, यहां तक कि मूक पशुओं की सेवा और उनके हक की लड़ाई लड़ने से भी वह कभी पीछे नहीं हटी हैं।

मैं मानता हूं कि ‘गांधी सरनेम’ मिलना सौभाग्य के साथ ही बड़ी जिम्मेदारी की बात भी है। मेरी दादी ने, मेरे पिता ने, खुद को लोगों की सेवा में झोंक दिया था, इसके लिए उन्होंने अपनी जान की भी परवाह नहीं की।

सवाल-भाजपा में आप सबसे कम उम्र में जनरल सेक्रेटरी बने, फिर पश्चिम बंगाल और असम के प्रभारी बने। लेकिन 2014 में आपसे पद ले लिया गया। आखिर क्यों?
जवाब- 
मैं लालबत्ती की गाड़ी की चाह में राजनीति में नहीं आया हूं, तीन बार का निर्वाचित सांसद हूं। मैं सांसद की तनख्वाह, सरकारी आवास या किसी अन्य प्रकार की कोई सुविधाएं नहीं लेता। अपनी तनख्वाह उस किसान परिवार को देता हूं, जिस परिवार के मुखिया ने परिस्थिति वश आत्महत्या कर ली है। आत्महत्या करने वाले इस किसान का परिवार कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक कहीं का भी हो सकता है।

मैं वह इकलौता सांसद हूं, जिसने उस कानून के खिलाफ आवाज उठाई, जो सांसद को अपनी तनख्वाह बढ़ाने का अधिकार देता था। संसद में बहस के बाद इस पर एक कमीशन बना दिया गया और यह तय हुआ कि सांसदों की वेतन बढ़ोतरी का जिम्मा अब इसी कमीशन का होगा।

‘राइट टू रिकॉल’ के लिए मैं संसद में प्राईवेट मेंबर बिल लेकर आया। तीनों कृषि कानूनों को रद्द करवाने के लिए मैं भाजपा का एक मात्र ऐसा सांसद हूं, जिसने आवाज उठाई।

मेरा भरोसा चुपचाप काम करने में है मैं अपने काम का ढिंढ़ोरा नहीं पीटता। एक बात और बताना चाहूंगा कि अपने संसदीय क्षेत्र के लोगों को भी अपना परिवार मानता हूं।

जब कोरोना की पहली-दूसरी लहर में मेरे संसदीय क्षेत्र पीलीभीत में ऑक्सीजन सिलेंडर नहीं मिल रहे थे, यहां के सरकारी अस्पतालों में कोरोना की दवाइयां नहीं मिल रही थीं, ऐसी सूरत में मैंने अपनी बेटी की एफडी तोड़ कर उन पैसों से ऑक्सीजन सिलिंडर और दवाइयां घर-घर पहुंचाने का काम किया। यह एफडी उसकी नानी ने उसके नाम करवाई थी।

सवाल-2017 में आपको यूपी में बीजेपी के सीएम पद के दावेदारों में गिना जा रहा था, फिर ऐसा क्या हुआ जो अलग-थलग पड़ गए? मतभेद के क्या कारण रहे?

जवाब- मैं हमेशा वही करता हूं, जो राष्ट्र के अंतरात्मा की आवाज होती है। अगर युवाओं के रोजगार, किसान आंदोलन के समर्थन में, महिला सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर, यूपी में 27 परीक्षाएं कैंसिल होने जैसे गंभीर मसलों पर, गया में पुलिसिया बर्बरता के शिकार बेकसूर छात्रों पर मैं कुछ न बोलूं यह कैसे संभव है? मेरी जवाबदेही किसके प्रति है?

यूपी में मेरी दावेदारी लोगों ने तय की थी। दरअसल 2014 से लेकर 2018 तक मैंने बिजनौर से लेकर इलाहाबाद तक उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों की मैंने मैराथन यात्राएं कीं, क्योंकि मुझे एक संवेदनशील इकोनोमिक डाटा प्राप्त हुआ था, जिसमें यह बताया गया था कि उत्तर प्रदेश के 14,800 किसान परिवार ऐसे हैं, जो गंभीर कर्ज में डूबे हुए हैं, उनकी माली हालत इतनी खस्ता है कि ये परिवार कभी भी आत्महत्या करने की हद तक जा सकते हैं।

मैंने उत्तर प्रदेश के 22 जिलों में घूम-घूम किसान परिवारों की शिनाख्त की, पहले उन्हें अपने पैसों से, फिर क्राउड फंडिंग करवा कर कर्ज मुक्त कराया। यह पैसा मैंने पीड़ित किसानों को सीधे उनके हाथों में दिया, यह एक बड़ा प्रयोग था, इसके दूरगामी नतीजे भी मिले।

इसके बाद ही पार्टी ने मुझे उत्तर प्रदेश के प्रवास पर उतारा। मैंने एक आशावादी राजनीति की शुरुआत की कोशिश की जो लोगों को पसंद आई।

सवाल- कृषि कानून केंद्र ने मजबूरी में वापस लिया ? क्या चुनाव में भाजपा को इसका नुकसान होने जा रहा है?
जवाब- 
उत्तर प्रदेश के किसान ‘वोट की चोट’ का अपना कार्यक्रम और तेज कर सकते हैं, इससे उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में किसका नुकसान होगा इतना तो आप समझ ही सकते हैं। बड़ा साफ है कि किसान आंदोलन अभी स्थगित हुआ है, समाप्त नहीं।

लोकतंत्र में हर जन आंदोलन की अपनी एक ताकत होती है, उसकी एक तासीर होती है। जेपी आंदोलन से लेकर अन्ना आंदोलन ने इस बात को हर बार साबित किया है कि जन आंदोलन सरकार बदलने की भी कुव्वत रखते हैं और नेतृत्व का नया मिथक गढ़ने का भी दंभ रखते हैं। अभी कई मुद्दों पर किसानों को सरकार से जवाब मिलना बाकी है।

जैसे एमएसपी पर कानूनी गारंटी, लखीमपुर कांड में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री का इस्तीफा अभी भी नहीं हुआ है, उन्हें संरक्षण देकर केंद्र सरकार क्या साबित करना चाहती है?

मुआवजा और किसानों पर दर्ज मुकदमों की वापसी की मांग अब भी जारी है। यदि सरकार ने किसानों की बात फिर अनसुनी कर दी तो किसान आंदोलन फिर से शुरू हो सकता है।

सवाल- मोदी सरकार की नीतियों के विरोधी तमाम नेताओं को कांग्रेस पार्टी में जगह दे रही है। आपको न्योता मिलेगा तो क्या उस पर विचार करेंगे?
जवाब- 
कल क्या होगा, यह मैं आज कैसे बता सकता हूं। ऐसे सवालों का उत्तर समय ही दे सकता है। मैं जन आधारित राजनीति की चाह रखता हूं, समदर्शी और समावेशी राजनीति मेरे खून में है। हाशिए पर खड़े आखिरी आदमी की चिंता मेरी राजनीति में सबसे ऊपर है।

सवाल- अपने नाम के आगे फिरोज लगाने का फैसला कैसे किया, क्योंकि आपके कजिन तो इस नाम से दूरी बरतते हैं?
जवाब- 
मेरे कजिन जो करते हैं, वह उनका फैसला है। लेकिन फिरोज मेरे स्वर्गीय दादा जी का नाम है, फिर मेरे पिता ने अपने पिता का यह नाम मुझे दिया। मेरे दादा जी बेहद स्वतंत्र विचारों वाले एक सांसद थे। वे बेहद नेक और ईमानदार थे। मुझे गर्व है कि मेरे पिता ने मुझे उनका नाम दिया।

सवाल- क्या उत्तर प्रदेश में योगी सरकार की वापसी हो रही या फिर सपा लौट रही है ? आपका क्या आंकलन है?
जवाब- 
चुनावी शोर में लोगों से जुड़े बुनियादी मुद्दों की अनदेखी नहीं की जा सकती। उत्तर प्रदेश के लोग 80:20 (हिंदू-मुस्लिम) या 85: 15 (पिछड़े-अगड़े) के हिसाब से वोट नहीं करेंगे। इस बार का वोट महंगाई, बेरोजगारी, खेती-किसानी, आर्थिक बदहाली, नारी सुरक्षा, दलित उत्पीड़न जैसे अहम मुद्दों पर होगा।

मेरे हिसाब से किसी वोटर को उनके धर्म या जाति के आधार पर देखना ही गलत है, मेरी नजर में वोटर सबसे बड़ा ’स्टेक होल्डर’ है, उन्हें अपने फैसलों में शामिल किए बगैर समृद्ध, विकसित, सहिष्णु और समावेशी प्रांत या राष्ट्र की कल्पना नहीं हो सकती है।

(दरअसल, हाल ही में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि यह चुनाव 80 बनाम 20 का है। उन्होंने कुछ भी स्पष्ट नहीं किया, लेकिन देश में करीब 20 फीसदी मुसलमान हैं।)

सवाल- आप लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पढ़े हैं। पोयट्री की दो किताबें भी आई हैं। आप नेता हैं, इकोनॉमिस्ट हैं, पोयट हैं। निजी तौर पर आप सबसे पहले खुद को क्या मानते हैं?
जवाब- 
रूरल मेनिफेस्टो, नामक मेरी पुस्तक तीन साल पहले आई थी, जो मूलतः खेती-किसानी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था से ताल्लुक रखने वाली एक पुस्तक है, एक अहम दस्तावेज है। इससे पहले मेरी दो पुस्तकें ‘अदरनेस ऑफ सेल्फ’ और ‘स्टिलनेस’ मेरी कविताओं का संग्रह छप कर आया था।

अब मेरी ‘शहरीकरण’ पर एक पुस्तक आने को तैयार है। मेरे अंदर का कवि मुझे एक अच्छा इंसान बनाने में मदद करता है, मुझे एक समावेशी दृष्टि देता है, ताकि मैं देश-दुनिया को उस नजर से देख सकूं। मैं आज भी 18 भारतीय भाषाओं में देश के विभिन्न पत्र-पत्रिका के लिए निरंतर लेखन करता हूं, लोगों से जुड़े बुनियादी सवाल उठाता हूं और उनके मन में आशावादी और उदारवादी राजनीति की जोत जगाता हूं।

सवाल- आपने अपनी शादी में सोनिया गांधी, राहुल और प्रियंका को निमंत्रण भेजा था, लेकिन वो आए नहीं। दोनों परिवारों के बीच क्या ऐसे निमंत्रण अब भी आ-जा रहे हैं?

जवाब- एक परिवार, हमेशा परिवार ही रहता है, सोच, विचारधारा या अप्रोच अलग होने का यह अर्थ नहीं कि हमारे बीच कोई मनमुटाव है। रही शादी में शामिल न होने की बात तो उसके पीछे कोई मनमुटाव नहीं, बल्कि परिस्थिति थी।

मेरी शादी से एक सप्ताह पहले ही मेरी नानी चल बसीं। मैं उनके बहुत करीब था। जाने से पहले उन्होंने मुझसे वचन ले लिया कि उनके नहीं रहने पर मैं शादी टालूंगा नहीं, यह तय तारीख पर ही होगी।

मेरा विवाह बनारस में जयेंद्र सरस्वती महाराज के मंदिर में संपन्न हुआ, महाराज जी का भी आदेश था कि विवाह में वर-वधु पक्ष के बेहद करीबी लोग ही शामिल किए जाएं, हमारा परिवार भी उस मनःस्थिति में नहीं था कि विवाह समारोह में ज्यादा चहल-पहल हो।

मेरे विवाह समारोह से जुड़े तीन फंक्शन रखे गए थे, इन तीनों ही कार्यक्रमों को ऐन समय हमने स्थगित कर दिया। शादी के एक रोज पूर्व जब हम बनारस पहुंचे तो राहुल जी और प्रियंका जी दोनों के फोन आ गए कि वे एक विशेष विमान से शादी में शामिल होने के लिए बनारस पहुंच रहे हैं, तब राहुल जी के पैर में फ्रैक्चर भी था।

हमने ही उन्हें बनारस आने से मना कर दिया और कहा कि जब मैं और यामिनी (मेरी पत्नी) शादी के बाद दिल्ली लौटेंगे तो दोनों से मिल कर वहीं उनका आशीर्वाद ले लेंगे। और हमने ऐसा ही किया।

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