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*बेजोड़ किताबें, गागर में सागर भरती हुई!*

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*प्रोफेसर राजकुमार जैन*

 रमाशंकर सिंह के अथक प्रयास से आईटीएम विश्वविद्यालय ग्वालियर की ओर से रचनाकारों की नजर में डॉ राममनोहर लोहिया( भाग 1 भाग 2) पुस्तके  प्रकाशित की गई है. भाग दो  की प्रस्तावना लिखने का जिम्मा  मुझे दिया गया था. लोहिया साहित्य की जितनी पुस्तके मैंने पढ़ी है, उसमें यह पुस्तके अपना अलग, अनूठा  स्थान रखती है. प्रकाशकीय नोट रमाशंकर सिंह ने लिखा है.

  **** प्रकाशक के दो शब्द ****

मित्रवर श्री के.सी. त्यागी (पूर्व सांसद) ने एक दिन दिल्ली में मुझे एक पुस्तक दी जो उसके पहले मैंने नहीं देखी थी। उत्तर प्रदेश के अग्रज समाजवादी युवा नेता श्री मुख़्तार अनीस (अब स्मृतिशेष) के द्वारा संपादित एक स्मृतिचित्र जैसी पुस्तक थी जो डॉ. साहब (राममनोहर लोहिया) की मृत्यु के कई साल बाद लखनऊ से प्रकाशित हुई थी। इस पुस्तक को देखने पढ़ने के पहले ही “डॉ. लोहिया – रचनाकारों की नजर में” नाम से एक पुस्तक हम प्रकाशित कर चुके थे और इस पुस्तक के कई लेख मुझे पूर्व में प्रकाशित पुस्तक के भाग-2 के लिए सर्वथा उपयुक्त लगे । विख्यात स्तरीय लेखकों, रचनाकारों और गंभीर विचारकों के अच्छे लेखों को मैंने उसी स्मारिका से छांटकर एक नई किताब का रूप मात्र दे दिया है। यह ध्यान रखना चाहिए कि प्रकाशित लेख और राजनीतिक संदर्भ आज़ादी के बाद 1967 तक के हैं, कुछ लेख 1977 में भी लिखे गये हैं। यह भारतीय राजनीति के सामयिक इतिहास के महत्वपूर्ण दस्तावेज हैं।

हमेशा की तरह हमारे फैसले के अनुरूप पुस्तक के किसी भी हिस्से को उचित रूप से कोई भी उद्धृत करने को स्वतंत्र रहेगा। कॉपीराइट के नियम से इस पुस्तक के लेख स्वतंत्र हैं। यदि आप आईटीएम यूनिवर्सिटी ग्वालियर का नाम उदारता पूर्वक देना पसंद करें तो हमें प्रसन्नता होगी।

पुस्तक में डॉ. साहब का ‘नोट्स एंड कमेंट्स’ नाम से अंग्रेजी मासिक पत्रिका ‘मैनकाइंड’ के प्रथम अंक में छपा हुआ महत्वपूर्ण लेख भी शामिल किया है। ज्ञातव्य हो कि डॉ. लोहिया ‘मैनकाइंड’ व ‘जन’ नामक दो पत्रिकाओं के संस्थापक संपादक थे और उनके रहते ये दोनों पत्रिकाऐं भारत में गहन गंभीर विचार-विमर्श-संवाद का बड़ा मंच बनीं थीं। यह पुस्तक डॉ. लोहिया के विचार-कर्म-व्यक्तित्व पर मात्र प्रशंसात्मक न होकर कई लेखों में विश्लेषण और आलोचनात्मक भी है।

पेशेवर प्रूफ रीडर की सेवा न लिये जाने के कारण कुछ गलतियाँ संभाव्य है और क्षमायोग्य होनी चाहिए। पुस्तक में 20 लेख अंग्रेज़ी से हिन्दी में अनूदित किए है, उस हेतु मित्र श्री परितोष मालवीय साधुवाद के हक़दार हैं।

डॉ. लोहिया को जानने की इच्छा रखने वालों शोधार्थियों व राजनीतिक सक्रिय कर्म में जुटे लोगों के लिए यह पुस्तक उपयोगी साबित होनी चाहिए। लोहिया अनुयायियों को विभिन्न दृष्टियों से डॉ. साहब को जानने समझने का मौका यह पुस्तक देगी। आशा है कि इस पुस्तक के माध्यम से हम डॉ. लोहिया के व्यक्तित्व-विचार के विभिन्न आयामों से परिचित होने में समर्थ होंगे।

                * रमाशंकर सिंह

…………………………………………………………………..            

                *प्रस्तावना*
– *प्रो. राजकुमार जैन*

दुनिया के बेजुबान की जुबान था लोहिया
मज़लूमों बेकसों का निगहबान था लोहिया
औलाद था ‘हीरे’ की पर फौलाद बन गया
इंसानियत की जंग का एलान था लोहिया
सीने में समंदर था, बाहों में आसमान
एक आदमी के वेश में तूफ़ान था लोहिया
‘करवट नहीं ली मुल्क ने पंद्रह सौ साल से’
इस फिक्र में ताउम्र परेशान था लोहिया
तन्हा सड़क से संसद तक वह चीखता रहा
मरघट-सी चुप कौम पर हैरान था लोहिया
गोवा में गांधी, मिसीसीपी में था लूथर
हिन्दू, ईसाई था, मुसलमान था लोहिया
मजनूं की तरह प्यार वो करता था मुल्क से
हर सांस ‘हिन्दुस्तान-हिन्दुस्तान’ था लोहिया।

शंकर प्रलामी

 बिना पासपोर्ट के विश्व नागरिक बनकर सफर करने तथा पूरी दुनिया को एक रखने का ख्वाब देखने वाले डॉ० राममनोहर लोहिया को किसी बाहरी बंदिश में बाँध कर रखना असंभव है।

 यूँ तो हिंदुस्तान के इस सोशलिस्ट विचारक पर अनगिनत किताबें, लेख, टीका- टिप्पणी छपी है, सेमिनार, सिंपोजियम, अनेकों विद्यार्थियों को यूनिवर्सिटी से पीएच०डी० की सनद हासिल हुई है और आगे भी बदस्तूर जारी रहेगी।

 ऐसे में आईटीएम यूनिवर्सिटी के संस्थापक कुलाधिपति और सोशलिस्ट साथी श्री रमाशंकर सिंह ने लोहिया पर एक नयी किताब संपादित करके “डॉ. राममनोहर लोहिया – रचनाकारों की नज़र में” खण्ड 2 पेश की है।

 परिशुद्धता की तलाश में हमेशा अतृप्त रहने वाले रमाशंकर सिंह ने इस किताब के लिए अब तक लिखे गए न जाने कितने पन्नों को पढ़कर, उलट-पलटकर, संपादित कर कुछ को शामिल किया है, जिनकी अपनी हैसियत किसी परिचय की मोहताज नहीं है। नामवर होने के साथ-साथ लोहिया के साथी या अनुयायी के तौर पर उन्होंने लोहिया को बहुत ही बारीक और पैनी नजर से परखा है। इन रचनाकारों में अधिकतर सियासत से दूर विचारक कवि, लेखक, रंगकर्मी, पत्रकार भी शामिल हैं।

 हिंदुस्तान में अब तक जितने भी सियासतदाँ हुए हैं उसमें लोहिया ऐसे थे, जिनके इर्द-गिर्द, उस दौर के सबसे मशहूर, मारूफ, कलमकार, कलाकार, अखबारनवीस, कवि, लेखक, पेन्टर, पत्थर या धातु पर छैनी हथोड़ा चलाकर मूर्ति गढ़ने वाले शिल्पकार, रंगमंच से रोमांच पैदा करने वालों से लेकर लोक-गवैयो, आल्हा उदल बांचने वाले, किस्सागोई से अपनी रोजी-रोटी कमाने वालों का जमघट लगा रहता था। इसकी क्या वजह थी?

 इस राज पर से, इस किताब में हिंदुस्तान के नामी, कवि, पत्रकार, धर्मयुग जैसी पत्रिका के संपादक रहे धर्मवीर भारती ने अपने लेख ‘समता + स्वातंत्र्य + सौंदर्य = लोहिया’ में पर्दा उठाया है। अगर धर्मवीर भारती के केवल इसी लेख को पढ़ लिया जाए तो पता चल जाएगा कि यह तबका लोहिया का दीवाना क्यों था?

 हिंदी पट्टी में इलाहाबाद उस दौर में साहित्यकारों का अड्डा था। ‘परिमल’ जैसी साहित्यिक संस्था के साथ जुड़े हुए लेखक जिन्होंने बाद में चलकर साहित्यिक दुनिया में झण्डे गाडे। उस साहित्यिक मण्डली में लोहिया से मिलने की कितनी तपिश थी उसके कई बेहद रोमांचक किस्से भारती ने पेश किये है।

 लोहिया से उम्र में पाँच साल बड़े कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापक सदस्य रामनंदन मिश्र सोशलिस्ट तहरीक की पहली कतार के कद्दावर नेता थे। आज़ादी के आंदोलन में हजारीबाग जेल की ऊँची दीवार को जयप्रकाश नारायण के साथ फांद कर फरार होने वाले नेता सूरज नारायण सिंह भी थे । लोहिया के पिता हीरालाल लोहिया भी साथ में बंद थे।

 8 अगस्त 1942 को गांधी जी, सरदार वल्लभ भाई पटेल तथा सोशलिस्टों के बीच क्या बातचीत हुई, ख़ास तौर पर लोहिया ने पटेल और गांधी को क्या कहा? अपने इस लेख में इस ऐतिहासिक घटनाक्रम को क़लमबंद कर उन्होंने आगे आने वाली पीढ़ी को इससे वाकिफ़ करवा दिया। 

      भारत के भू०पू० राष्ट्रपति तथा लोकसभा के अध्यक्ष रह चुके श्री नीलम संजीव रेड्डी ने लोहिया के इंतकाल के बाद दिल्ली के लालकिले के पिछवाड़े बनी, बिजली की चिता जो उस समय दिल्ली में भिखारियों, लावारिसों को जलाने के लिए बनी थी, उसमें भस्मीभूत करने के लिए लोहिया का पार्थिव शरीर जब लाया गया, उस समय बाहर खड़े जयप्रकाश नारायण के साथ नीलम संजीव रेड्डी ने कहा कि “जो इंसान सल्तनों को भस्म करने की ताकत रखता था, आज आग ने ही उसे भस्म कर दिया।” रेड्डी के इस अकेले वाक्य ने लोहिया की शख्सियत का जो एहसास कराया, वो हज़ारों पन्नों के लेखन में भी बयान नहीं किया जा सकता था।                                     

                 .    *जारी है*

संदर्भ किताब ;     *रचनाकारों की नजर में,डॉ राममनोहर लोहिया*  (भाग- 2 )

*आईटीएम यूनिवर्सिटी ग्वालियर*

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