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बढ़ती मानवीय सुविधा बनी जलवायु परिवर्तन चक्र के लिए असुविधा

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(विश्व पर्यावरण दिवस विशेष – 5 जून 2024)

डॉ. प्रितम भि. गेडाम

ग्लोबल वार्मिंग आज पूरी दुनिया में सजीवों के लिए सबसे ज्वलंत मुद्दा है, आधुनिकता ने ग्लोबल वार्मिंग की समस्या को सबसे बड़े अभिशाप के रूप में बढ़ा दिया है। आज गर्मी के मौसम में बारिश हो रही है, बरसात के मौसम में गर्मी है, ठंड के मौसम में बारिश हो रही है। जिसका सीधा असर मानव स्वास्थ्य पर पड़ रहा है, घातक बीमारियों का साम्राज्य चरम पर पहुंच रहा है, असामयिक मौतों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हो रही है, मौसम बिगड़ने का दूसरा सबसे बड़ा असर फसलों पर पड़ता है, ऊपर से कभी बाढ़ तो कभी अकाल की स्थिति पैदा हो जाती है। मंडियों में पर्याप्त अनाज भंडारण न होने के कारण हर साल लाखों टन अनाज बर्बाद हो जाता है, जिसका नुकसान किसानों को उठाना पड़ता है, शहरों में विकास के नाम पर पेड़ काटे जा रहे हैं और बचे-खुचे पेड़ भी जरा सी हवा में उखड़ जाते हैं, क्योंकि पेड़ों की जड़ों को पनपने के लिए पर्याप्त मिट्टी नहीं है, हर जगह सीमेंट का जंगल उग रहा है।

मनुष्य से अधिक संख्या में वाहन एवं यांत्रिक संसाधन बढ़ रहे हैं। मिलावट, खेती में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग, प्रदूषण, शोर, बढ़ता कचरा और इसके उचित प्रबंधन की कमी, घटते जंगल, औद्योगिक क्षेत्रों द्वारा नियमों की अवहेलना और लोगों की लापरवाही ने जलवायु चक्र को बाधित कर दिया है। सबसे ज्यादा परेशानी किसानों और गरीब तबके को हो रही है, इससे आर्थिक असमानता की खाई बढ़ती जा रही है। आज के लोग इस बात पर गहराई से विचार नहीं करते कि थोड़ी सी लापरवाही से बिगड़ते जलवायु चक्र का खामियाजा आने वाली पीढ़ियों को कितना भुगतना पड़ेगा। पर्यावरण संरक्षण में प्रत्येक पशु-पक्षी का विशेष योगदान है। पृथ्वी पर मनुष्य ही एकमात्र ऐसा प्राणी है जो अपने स्वार्थ के लिए पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है।

वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक 2021 में जलवायु जोखिमों की घटनाओं और संवेदनशीलता के मामले में भारत सबसे अधिक प्रभावित देशों की सूची में 7वें स्थान पर है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, 2030 से 2050 के बीच, जलवायु परिवर्तन के कारण हर साल कुपोषण, मलेरिया, दस्त और गर्मी के तनाव से अनुमानित ढाई लाख अतिरिक्त मौतें होने की आशंका है। बढ़ते तापमान के कारण ग्लेशियरों के पिघलने से समुद्र के स्तर में वृद्धि से तटीय कटाव, भूस्खलन, तूफान, बाढ़ और गर्मी की लहरें जैसी समस्याएं बढ़ेंगी। पिछले कुछ समय से मौसम के बदलते मिजाज के कारण देश का सामान्य जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। इससे पर्यावरण, मानव स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा और आर्थिक विकास के लिए भी बड़ा खतरा पैदा हो गया है। जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि उपज कम हो गई है और मलेरिया, डेंगू, हैजा, हीट स्ट्रोक, श्वसन संक्रमण और मानसिक तनाव जैसी बीमारियाँ बढ़ गई हैं। पिछले दशक में बाढ़ से देश को 3 अरब अमेरिकी डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ है, जो वैश्विक आर्थिक नुकसान का 10% है, और गर्मी के तनाव से संबंधित उत्पादकता में गिरावट के कारण भारत 2030 तक 3.4 मिलियन नौकरियां खो देगा। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार, भारत की प्राथमिक ऊर्जा मांग 2030 तक दोगुनी हो जाएगी।

विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट 2021 के अनुसार, 100 सबसे प्रदूषित शहरों में से 63 शहर भारत के हैं। वाहनों से निकलने वाला उत्सर्जन, औद्योगिक कचरा, चुल्हे का धुआं, निर्माण क्षेत्र, फसल अपशिष्ट जलाना और बिजली उत्पादन भारत में वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत हैं, इससे हर साल वायुमंडल में 2.65 बिलियन मीट्रिक टन कार्बन का योगदान होता है। कोयला, तेल और गैस वैश्विक जलवायु परिवर्तन में सबसे बड़ा योगदानकर्ता हैं, जो वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का 75 प्रतिशत से अधिक और सभी कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन का लगभग 90 प्रतिशत है। अब दुनिया किसी भी समय की तुलना में तेजी से गर्म हो रही है। इससे मनुष्यों और पृथ्वी पर मौजूद अन्य सभी जीवन रूपों के लिए कई खतरे पैदा होते हैं। प्रतिदिन लगभग 4 करोड़ लीटर सीवेज नदियों और अन्य जल निकायों में बहता है। इनमें से, पर्याप्त बुनियादी ढांचे और संसाधनों की कमी के कारण केवल एक छोटे से हिस्से का ही पर्याप्त उपचार किया जाता है। जल प्रदूषण से भारत सरकार को सालाना 6.7 से 7.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान होता है, जिससे सरकारी कर और कृषि आय प्रभावित होती है। हर साल लगभग 4 करोड़ भारतीय टाइफाइड, हैजा और हेपेटाइटिस जैसी जल जनित बीमारियों से पीड़ित होते हैं और लगभग 4 लाख लोग मर जाते हैं।

लगभग 140 करोड़ की आबादी में हर साल 277 मिलियन टन नगरपालिका ठोस कचरा उत्पन्न होता है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि वर्ष 2030 तक इसके 387.8 मिलियन टन तक पहुंचने की संभावना है और 2050 तक यह वर्तमान से दोगुना हो जाएगा। बढ़ता शहरीकरण अपशिष्ट प्रबंधन को बेहद चुनौतीपूर्ण बनाता है। वर्तमान में, एकत्र किए गए कुल कचरे का लगभग 5% पुनर्नवीनीकरण किया जाता है, 18% खाद बनाया जाता है और बाकी को लैंडफिल साइटों पर डाल दिया जाता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, भारत वर्तमान में प्रतिदिन औसतन 25,000 टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न करता है, जो देश में उत्पन्न कुल ठोस कचरे का लगभग 6% है। सबसे प्रदूषित नदियाँ, दुनिया का लगभग 90% प्लास्टिक समुद्र में बहाती हैं। इस सदी की शुरुआत के बाद से, भारत ने अपने कुल वृक्ष आवरण का 19 प्रतिशत खो दिया है। अधिकांश नुकसान जंगल की आग के कारण होता है, जो प्रतिवर्ष 18,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक जंगल को प्रभावित करता है, जो वार्षिक औसत वनों की कटाई दर से दोगुना है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर की रेड लिस्ट के अनुसार, देश में 1212 पशु प्रजातियों में से 12% से अधिक को ‘लुप्तप्राय’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है। हाल के वर्षों में 25 प्रजातियाँ विलुप्त हो गई हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट है कि जलवायु परिवर्तन हर साल कम से कम 150,000 मौतों के लिए जिम्मेदार है, 2030 तक यह संख्या दोगुनी होने की संभावना है। आईपीसीसी की रिपोर्ट का अनुमान है कि बढ़ते तापमान से एशिया में 130 मिलियन लोगों के लिए भोजन की कमी हो सकती है। 2050 तक तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ, देश को दोगुना भोजन आयात करना होगा। भारत में 85 प्रतिशत से अधिक ताजे पानी का उपयोग कृषि के लिए किया जाता है, दूसरी ओर जल संकट के कारण, देश के कुछ प्रमुख शहरों में 2030 तक भूजल खत्म हो जाएगा, जिससे लगभग 40% आबादी प्रभावित होगी।

देश में हर साल गर्मी के मौसम में लू के कारण बड़ी संख्या में लोगों की मौत हो जाती है। वर्तमान समय में गर्मी के मौसम में सूरज आग उगल रहा है। दिल्ली में तापमान 52 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंच गया। फिलहाल महाराष्ट्र के नागपुर शहर में लू के कारण दो दिनों में 10 लोगों की जान चली गई है। अगर ये एक शहर की तस्वीर है तो पूरे देश में गर्मी के असर से हालात कितने भयावह हो सकते है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट ने अपनी रिपोर्ट में देश के प्रमुख महानगरों में बढ़ते तापमान का विश्लेषण किया और कहा कि लगातार कांक्रीटीकरण के कारण गर्मी बढ़ रही है और हालात इतने खराब हो गए हैं कि रात में भी तापमान कम नहीं हो रहा है। ऊर्जा का उपयोग, रहन-सहन कैसा हैं, क्या खाते हैं और कितना फेंक देते हैं, कपड़े, इलेक्ट्रॉनिक्स और प्लास्टिक जैसी चीज़ों का उपभोग ये सभी ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में योगदान करते हैं। दुनिया की सबसे अमीर 1 प्रतिशत आबादी मिलकर सबसे गरीब 50 प्रतिशत की तुलना में अधिक ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करती है।

 लोगों की सोच इतनी खराब हो गई है कि गर्मी बढ़ने पर एयरकंडीशनर और कूलर ही याद आते हैं, लेकिन गर्मी से बचाव के लिए पेड़-पौधे लगाने के प्रति कर्तव्य की भावना नहीं। इस गर्मी में मनुष्य इतना बेहाल है, तो पशुओं का क्या हाल होगा? परंतु पशु-पक्षी और वन्यजीवों के बारे में सोचने के लिए किसी के पास समय ही नहीं। यह सभी मानव निर्मित समस्याएं हैं और समाधान भी मानव के ही पास है, जिन्दगी जीने के तरीके में बदलाव और सामाजिक जिम्मेदारी का एहसास ही आने वाली पीढ़ी के लिए बेहतर जीवन विकास का मार्ग प्रशस्त कर पर्यावरण संरक्षण को गति प्रदान कर सकते है।

डॉ. प्रितम भि. गेडाम

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