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*बढ़ती आत्महत्या-वृति और बचाव की युक्ति*

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      ~ डॉ. विकास मानव 

आप आत्महत्या के बारे में क्यों सोचते हो? पागल हो या और कुछ? क्या आत्मा की हत्या संभव है? शरीर की हत्या करोगे. शरीर तो वैसे भी नश्वर है. नष्ट हो रहा है, कभी भी पूर्णतः नष्ट हो ही जायेगा. इससे खुद को साधो, मत भागो. शरीर को नष्ट करने की जल्दीबाज़ी करके पलायन का पाप क्यों?

    मुझे पता है कि जीवन से ऊब गये हो। यदि सचमुच ऊब गये हो तो आत्महत्या नहीं करो, क्योंकि आत्महत्या फिर इसी जीवन में घसीट लायेगी. हो सकता है कि इससे भी अधिक भद्दा जीवन मिले, जैसाकि अभी है. आत्महत्या आपके भीतर और भी अधिक गंदगी पैदा कर देगी।

आत्महत्या करना अस्तित्व का अनादर है! अस्तित्व ने आपको विकसित होने के लिये जीवन का अवसर दिया, और आप इस अवसर को यूँ ही व्यर्थ गँवा देते हो। जब तक  विकसित नहीं होते और विकसित परमानंद नहीं बन जाते, तब तक जीवन में बार-बार फेंके जाओगे। लाखों बार पहले भी यह हो चुका है — अब समय है, अब जागो! इस अवसर को चूको मत.

 आत्महत्या ही करनी है तो आओ मेरे पास असली आत्महत्या की कला सीखो। असली कला में खुद को देह समझने के झूठ को नष्ट किया जाता है, देह को नष्ट नहीं किया जाता है।

   देह सुंदर है, देह ने कुछ भी गलत नहीं किया है। यह तो मन है, जो असुंदर है। आत्मा भी सुंदर है, लेकिन देह और आत्मा के बीच कुछ है, जो न तो देह है, न ही आत्मा — यह बीच की घटना ही मन है!

     यह मन ही है, जो आपको बार-बार गर्भ में घसीट लाता है. यदि आत्महत्या करते हो, तब जीवन के बारे में ही सोच रहे होओगे। आत्महत्या करने का मतलब है कि जीवन के बारे में सोच रहे हो। इस ऊब चुके हो, जीवन से थक चुको हो. पूरा अलग ही जीवन चाहते हो. इसी कारण आत्महत्या कर रहे हो, न कि आप जीवन के खिलाफ हो।

     आप सिर्फ ‘इस’ जीवन के खिलाफ हो। हो सकता है कि जैसे आप हो, वैसा नहीं चाहते हो — हो सकता है कि आप सिकंदर, नेपोलियन या हिटलर बनना चाहते हो, हो सकता है कि इस दुनिया के सबसे धनी व्यक्ति बनना चाहते हो, और ये हो नहीं.

     इसलिए आपको लगता है कि यह जीवन असफल हो गया. आप प्रसिद्ध होना चाहते थे, सफल होना चाहते थे. नहीं हुआ ऐसा तो अब इस जीवन को ही नष्ट कर देना चाहते हो।

लोग आत्महत्या इसलिये नहीं करते हैं कि वे जीवन से सच में थक गये हैं, बल्कि इस कारण करते हैं क्योंकि यह जीवन उनकी मांगें पूरी नहीं कर रहा। लेकिन कभी भी किसी की मांगें जीवन पूरी नहीं करता है।

    आप हमेशा कुछ न कुछ चूकते ही चले जाओगे। यदि धन है, तो हो सकता है कि आप सुंदर न हो। यदि  सुंदर हो, तो हो सकता है तुम बुद्धिमान न हो। यदि बुद्धिमान हो, तो हो सकता है कि आपके पास धन न हो। कोई हर चीज पा ले, तब भी वह अतृप्त रहेगा, जब तक खुद को नहीं पा लेगा.

    हर जीवन में यही बातें दोहराती जाती हैं, देह बदल जाती है, लेकिन दिशा वही रहती है.

लोग सोचते हैं कि जो आत्महत्या करते हैं, वे जीवन के खिलाफ हैं — यह सत्य नहीं है। वे जीवन के प्रति बहुत अधिक लालसा रखते हैं, वे जीवन के लिए बहुत अधिक वासना रखते हैं। चूँकि जीवन उनकी वासनायें पूरी नहीं करता, तो गुस्से में, तनाव, विषाद और हताशा में वे स्वयं को नष्ट कर लेते हैं।

     मैं आपको आत्महत्या का सही तरीका सिखाऊँगा। देह को नष्ट करके नहीं, देहवाद को समाप्त करके. देह तो अस्तित्व का सुंदरतम उपहार है! मन अस्तित्व का उपहार नहीं है, मन समाज से संस्कारित है। देह उपहार है, आत्मा उपहार है. इन दोनों के बीच समाज आपके साथ तरकीब खेलता है; इसलिये समाज ने मन को बनाया। यह आपको महत्वाकांक्षा देता है, यह  ईर्ष्या, प्रतिस्पर्धा, हिंसा देता है, यह हर तरह की गंदी बीमारियाँ देता है।

      इस मन का अतिक्रमण किया जा सकता है, मन को एक तरफ रखा जा सकता है। यह मन जरूरी नहीं है! यह बड़ा आसान है. बस इसका तरीका आना चाहिये।

आत्महत्या में मरना इतना पीड़ादायी है, क्योंकि यह प्राकृतिक बात नहीं है, यह सर्वाधिक अप्राकृतिक बात है। कभी भी कोई वृक्ष आत्महत्या नहीं करता — सिर्फ आदमी करता है. प्रकृति आत्महत्या के बारे में कुछ नहीं जानती, यह आदमी की खोज है.

     यह सबसे अधिक भद्दा और कुरूप कृत्य है। जब कभी आप स्वयं के साथ कोई बहुत ही भद्दी और कुरूप बात करते हो तो आशा नहीं रख सकते कि आपको आगे एक बेहतर जीवन मिलेगा।

    आप मन की बेहद निकृष्ट दशा में मरोगे, और बहुत ही निकृष्ट गर्भ में प्रवेश कर लोगे।

आत्महत्या की जरूरत ही क्या है? जरा प्रश्न करो. आप निश्चित ही गलत ढंग से जीये हो, इसी कारण जीवन एक सुंदर गीत नहीं बना।

    आप निश्चित ही मूर्खतापूर्ण ढंग से जीये हो, मूढ़तापूर्वक, अज्ञानी की तरह — इसी कारण जीवन में उत्सव नहीं आया। आप बिल्कुल गलत तरीके से जीये हो, जो आप जैसे ही लोगों ने आपके ऊपर थोप दिये हैं।

     यह सतत चलने वाली घटना है। मूढ़ता स्वतः सतत चलती रहती है। माता-पिता अपने बच्चों को अपनी मूढ़ता दिये चले जाते हैं, और यही बच्चे अपने बच्चों को वे सारी मूढ़तायें सौंप देते हैं। यह वंशानुगत विरासत है! इसे परम्परा कहते है, इसे विरासत कहते हैं, संस्कृति कहते हैं… बड़े-बड़े नाम हैं!

आप जिस भांति अब तक जीते रहे हो, उस पर विचार करो, और तब जीवन में एक नयी तरह की बुद्धिमत्ता आयेगी, और जीवन अधिक प्रखर होगा।

   अपने संस्कारों पर विचार करो। अब तक जैसे जीये हो, उस पर ध्यान दो — कहीं बुनियादी रूप से कुछ गलत हुआ है। पक्षी गीत गा रहे हैं, और वृक्ष, और फूल… यह अनंत अस्तित्व — यह जगह आत्महत्या करने की है? उत्सव मनाओ, प्रेम करो और प्रेम करने दो!

    यदि आप इस अस्तित्व को प्रेम कर सकते हो, इसे संवार सकते हो, यदि इस अस्तित्व के आशीर्वाद महसूस कर सकते हो, तो मैं  आपसे वादा करता हूँ कि जब कभी मरोगे,  वापस लौटकर नहीं आओगे — क्योंकि आपने पाठ सीख लिया।

     अस्तित्व कभी किसी को फिर वापस नहीं भेजता यदि उसने जीवन का पथ सीख लिया हो। यदि आप आनंदित होना सीख लेते हो, तो स्वीकार्य होओगे। तब उच्चतर रहस्य के लिये द्वार खुल जायेंगे। तब जीवन के अंतरतम रहस्यों में आपका स्वागत होगा। यह असली आत्महत्या है और मार्ग है : ध्यानयुक्त प्रेम या प्रेमयुक्त ध्यान.

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