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भारत बन गया है “आर्थिक असमानता का विश्वगुरु” 

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,,मुनेश त्यागी 

    आज पूरी दुनिया में भारत की लगातार बढ़ती जा रही आर्थिक असमानता का डंका बहुत ही तेज गति से बज रहा है। भारत के एक फ़ीसदी सबसे ज्यादा मालामाल और धनवान लोगों के पास देश की 40% संपत्ति है और देश की कुल आय में इनकी हिस्सेदारी 22.6% है। भारत में हुई आर्थिक असमानता का यह अब तक का सबसे बड़ा रिकॉर्ड है। भारत की यह आर्थिक असमानता में आई बढ़ोतरी दक्षिणी अफ्रीका, ब्राजील और अमेरिका से भी बहुत ज्यादा है। भारत का आर्थिक विकास बता रहा है कि हमारे देश में आर्थिक आंकड़ों की गुणवत्ता सबसे खराब है।         

       वैश्विक असमानता लैब की भारत में आमदनी और संपदा में बढ़ती असमानता 1922 से 2023 तक की रिपोर्ट आई है जिसमें “अरबपति राज्य का उदय” शीर्षक की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले वित्त वर्ष में भारत की असमानता ब्रिटिश राज्य के समय से भी ज्यादा हो गई है। 

    इस रिपोर्ट में कहा गया है कि आजादी के बाद 1980 के दशक की शुरुआत तक अमीर और गरीब के बीच आए धन के अंतर में गिरावट देखी गई थी लेकिन 2000 के दशक में इसमें रॉकेट की गति से भी तेज इजाफा हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार 2014-15 से 2022-23 के बीच आमदनी में हुई असमानता सबसे तेजी तेज गति से बढ़ी है। रिपोर्ट में इस बढ़ती असमानता के कारणों के बारे में जानकारी दी गई है कि इस बढ़ती है आर्थिक समानता के लिए सरकार की कर से जुड़ी हुई नीतियां ही मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं।

    इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वैश्विक उदारीकरण की चल रही आर्थिक लहर का लाभ उठाने के लिए यह सबसे ज्यादा जरूरी हो गया है कि आमदनी और संपत्ति दोनों के लिहाज से ही टैक्स लगाए जाने चाहिए और इसी के साथ-साथ शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण जैसी चीजों पर सरकारी निवेश को बढ़ाया जाना चाहिए, अगर सरकार ऐसा करेगी तो इससे केवल भारत के अमीर वर्ग को ही नहीं बल्कि औसत भारतीय को भी विकास में तरक्की मिलेगी और उसकी आमदनी बढ़ेगी।

     रिपोर्ट में यह भी जानकारी दी गई है कि आजादी के समय देश की आय में 10 फिसदी सबसे अमीर लोगों की हिस्सेदारी 40% थी जो 1982 में घटकर 30% रह गई थी। अब सरकार की अमीरपरस्त नीतियों के अनुसार 2022 में यह आय बढ़कर 60 फ़ीसदी हो गई। इसके विपरीत 2022-23 में देश की जनसंख्या के निकले 50 फ़ीसदी लोगों के पास राष्ट्रीय संपत्ति का केवल 15 प्रतिशत हिस्सा था।

     रिपोर्ट में इस बढ़ती आर्थिक असमानता का कारण, शिक्षा की कमी और कम मिल रहे वेतन को बताया गया है। रिपोर्ट के अनुसार शिक्षा की कमी के कारण कुछ लोगों को कम वेतन वाली नौकरियां करने को मजबूर होना पड़ता है। इससे निचले स्तर के 50% और मध्य स्तर के 40% भारतीयों की वेतन बढ़ोतरी प्रभावित हुई है। फोर्ब्स की रिपोर्ट के अनुसार 1991 में केवल एक भारतीय, एक अरब डॉलर से ज्यादा की संपत्ति का मालिक था। सरकार की धनपतियों की हिफाजत और विकास के लिए बनाई गई आर्थिक नीतियों के कारण अब इन धनी अरबपतियों की संख्या 167 हो गई है।

     सरकार की इन आर्थिक नीतियों की वजह से यह आर्थिक असमानता लगातार बढ़ती जा रही है। 9.2 करोड़ भारतीय वयस्कों में से 10,000 सबसे धनी व्यक्तियों के पास औसतन 22.6 अब रुपए की संपत्ति है। यह देश की औसत संपत्ति से 16,763 गुणा अधिक है। चोटी के एक प्रतिशत धनपतियों के पास औसतन 5.4 करोड़ की संपत्ति है।

      भारत की अधिकांश पार्टियां, कई पत्रकार और लेखक बहुत दिनों से यह शिकायत कहते आ रहे हैं कि सरकार की नीतियां चंद पैसे वालों के हितों को आगे बढ़ाने का काम कर रही है और इन्हीं नीतियों के कारण चंद लोग लगातार अमीरी के शीर्ष पर चढ़ते जा रहे हैं और भारत के अधिकांश जनता गरीबी के गर्त में गिरती में जा रही है और वह लगातार आर्थिक असमानता का शिकार होकर गरीब से गरीब होती जा रही है। मगर सरकार इन शिकायतों पर कोई ध्यान नहीं दे रही थी और वह उन्हें लगातार कानों के ऊपर से ही उतारती जा रही थी।

    हम पिछले कई साल से देख रहे हैं कि इस सरकार की नीतियों के कारण भारत की जनता की शिक्षा, नौकरी और पोषण की हालात लगातार खराब होती जा रही है। गरीब लोगों के बच्चों के पढ़ने के लिए पर्याप्त शिक्षा व्यवस्था नहीं है, पर्याप्त संख्या में स्कूल और कॉलेज नहीं हैं। इसी के साथ-साथ भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था बेहद खराब है, सरकार स्वास्थ्य व्यवस्था पर लगातार बजट घटती जा रही है और यहां पर जनसंख्या के अनुपात में सरकारी अस्पताल और स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं 

     इसी के साथ-साथ भारत के अधिकांश मजदूरों को न्यूनतम वेतन नहीं मिलता। यहां के नौजवान सबसे ज्यादा बेरोजगारी के शिकार हैं, जिस कारण पैसे के अभाव में उन्हें पोषक भोजन नहीं मिलता और वे कई स्वास्थ्य समस्याओं और बिमारियों से जूझते रहते हैं। लगातार आंदोलनों और शिकायतों करने के बावजूद भी सरकार इन शिकायतों को दूर नहीं कर रही है, अपनी जन विरोधी नीतियों को नहीं बदल रही है, जिस कारण हालात लगातार खराब होते जा रहे हैं और अब इस नई रिपोर्ट ने भारत के धनपतियों के लिए बनाई गई नीतियों का खुलासा कर दिया है और उसके विश्व गुरु होने की मुहिम का भंडाफोड़ कर दिया है।

      अब इस रिपोर्ट ने यह सिद्ध कर दिया है कि भारत की वर्तमान सरकार केवल और केवल चंद पूंजीपतियों मित्रों के हितों को आगे बढ़ा रही है, उनके विकास के लिए ही नीतियां बना रही है। उसका भारत की आम जनता के हितों को आगे बढ़ने में और विकास में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए कतई भी इच्छुक नहीं है। सरकार द्वारा अपनाई गई “फाइव ट्रिलियन” अर्थव्यवस्था की नीतियां खुलकर कह रही है और सारी दुनिया में सरकार का डंका बज रहा है कि अब हमारा भारत आर्थिक असमानता का विश्व गुरु बन गया है।

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