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क्रिकेट कप के बहाने भारत को मिली सीख !

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                                   –सुसंस्कृति परिहार

भारत में अंधश्रद्धा और पाखंड किस तरह हावी है उसकी आखिरकार पोल पट्टी खुल ही गई।ये तय था यदि भारत की जय होती तो सट्टाबाजार भले धराशाई हो जाता किंतु पाखंडियों का बाज़ार बहुत गर्म हो जाता वैसे भी ऐसे कथित चमत्कारी बाबा अपना व्यवसाय बढ़ाए हुए हैं। अंधश्रद्धालुओं और कथित बागेश्वरधाम बाबा की सिट्टी-पिट्टी गुम है।क्या वे इस घटना से तनिक सा सबक सीखेंगे?

मैच को भाग्य का खेल मानने वाले ये भलीभांति समझ लें यह खेल कड़ी मेहनत और चैतन्य नज़र का खेल है जरा सी चूक भारी पड़ जाती है। फिर चाहे हवन,पूजन हो, लाखों की तादाद में जनता हो या स्वत:देश का मुखिया मौजूद हो। आस्ट्रेलिया की जीत पर जिस तरह की ख़ामोशी स्टेडियम में छाई उससे तो यही लगता है ये सब क्रिकेट प्रेमी नहीं थे।खेल भावना का विकास यहां इन पाखंडियों और धूर्तों की वजह से नहीं पनप पाया।आज देश के मुखिया का व्यवहार जिस तरह आस्ट्रेलिया के कप्तान के प्रति हिकारत से लबरेज था वह भी बताता है कि जब सत्ता प्रमुख को के भावना का ज्ञान नहीं था तो आमजनता उतनी कसूरवार नहीं।

बहुत समय से क्रिकेट मैच के दीवाने लोगों को इस जीत के भूत की सवारी छोड़ देनी चाहिए।खेल भावना विकसित कर ही इस मैच का आनंद लिया जा सकता है पाकिस्तान के साथ मैच होने पर जिस तरह की क्रूर टिप्पणियां होती हैं और स्थितियां विवाद से मारपीट तक पहुंचती हैं उसके लिए अल्पसंख्यकों को खुलेआम गालियां दी जाती रहीं हैं यह संस्कार कहां से और कैसे , किसने विकसित किए उसको रोकना भी ज़रुरी है।

यह खुशी की बात थी कि विश्व कप भारत में गुजरात के नामबदलू स्टेडियम में था।देश में मैच देखने की उमंग थी।इतना शानदार आयोजन 10गेमों की विजेता भारत यदि हार जाती है तो कोई तल्खी नहीं होगी चाहिए हम सिर्फ दो बार विश्व कप जीते हैं आस्ट्रेलिया पांच बार यह ट्राफी जीती चुका है।हम परदेश में ट्राफी जीते हैं कहीं किसी देश में हमारे कप्तान का ऐसा हाल नहीं किया गया जैसा  आस्ट्रेलिया के साथ हमारे देश और मुखिया ने किया।दुनियां में इसका कैसा संदेश हमने दिया है वह शर्मनाक है।

इधर मोदी मीडिया ने जिस तरह मोदी के सर जीत का सेहरा बांधने की कोशिश की वह नाकाम हुई।इसे उन्होंने उनकी भविष्य की भारी जीत से भी जोड़ा तो क्या मोदी मीडिया यह भी लिखने का साहस जुटा पाएगी कि उनका भविष्य आगे अंधकारमय है।एक चाटुकार अख़बार ने इस मैच को धर्म युद्ध कह डाला यदि जीत जाती तो क्या हिंदू अब सनातन धर्म की जय का परचम लहराया जाता? धर्म और नियम किसी खेल पर लागू नहीं  होते इसलिए उस पर पैर रखना  गंभीर बात नहीं। असली खेल तो सट्टाबाजार ने जीत लिया और हम गुबार देखते रहे गए। इस बात की जांच बनती है कि यहां कोई बड़ा खेल तो नहीं हुआ।

कुल जमा मामला ये है कि इन बिंदुओं पर गंभीरता से विचार होना चाहिए यदि वोटों की खातिर और व्यापार के लिए यह घिनौना राजनैतिक खेल चलता रहा तो निश्चित तौर पर यह मान लीजिए हम दुनियां में भारत को मिलने वाला सम्मान खो देंगे।

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