अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

संविधानिक मूल्यों के हिसाब से काम करे भारतीय न्याय व्यवस्था

Share

मुनेश त्यागी

    पिछले कुछ दिनों से हमारे देश के लोग न्याय व्यवस्था के जजों की टिप्पणियों से जैसे सदमे में हैं और संवैधानिक स्वरूप, धर्मनिरपेक्ष और स्वतंत्र न्यायपालिका के वावजूद उनके, अजीब विचारों और रवैए से आश्चर्यचकित हैं। कर्नाटक का एक जज कह रहा है कि मस्जिदों में जय श्री राम के नारे लगाए जा सकते हैं। अभी-अभी एक मामला प्रकाश में आया है कि गुजरात में एक फर्जी जज काफी पिछले काफी दिनों से कम कर रहा है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अपनी अचंभित करने वाली कार्यप्रणाली से लाइमलाइट में हैं।

      न्यायमूर्ति चंद्राचूड कभी प्रधानमंत्री के साथ गणेश पूजा करते हुए दिखाई देते हैं। अभी-अभी उनका बयान आया है कि “बाबरी मस्जिद केस में फैसला लिखने से पहले मैंने भगवान से प्रार्थना की थी और मुझे वह जजमेंट लिखने में भगवान से प्रेरणा मिली थी।” कुछ दिन पहले भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हाई कोर्ट के जजों को आगा किया था कि उन्हें अवांछनीय और सार्वजनिक टिप्पणियों से बचना चाहिए। भारत की न्यायपालिका के कुछ जजों के ये अवांछनीय कारनामें  एकदम अचंभित और परेशान करने वाले हैं। बहुत सारे वकील और जनता परेशान है कि हमारे इन जजों को क्या हो गया है, ये क्या कर रहे हैं? बहुत सारे लोगों को तो यह विश्वास ही नहीं हो रहा है कि हमारे जज ऐसे काम और दिखावा भी कर सकते हैं?

    इस सबको देखकर लोग परेशान है कि हमारी न्यायपालिका के जज क्या कर रहे हैं? क्या उनके ये काम संविधान के मूल्यों को आगे बढ़ा रहे हैं? क्या उनके असंवैधानिक कारनामों से जनता में न्याय की भावना बची रहेगी? क्या उनको सचमुच में न्याय मिल पाएगा? कुछ लोगों का तो कहना है कि अगर इसी तरह से हमारे न्यायाधीश भगवानों और धर्म की शरण में जाने का नाटक और दिखावा करते रहे तो यहां संविधान और न्याय का शासन नहीं बचेगा।

      हमारे देश के समस्त जजों को यह याद रखना चाहिए कि उन्हें संतुलित और कानून और तथ्यों के आधार पर फैसला लिखने से पहले भगवान से प्रार्थना करने के लिए नहीं, बल्कि संविधान के मूल्यों को आगे बढ़ाने और तथ्यों के आधार पर जनता को सस्ता, सुलभ और असली न्याय करने के लिए जज बनाया गया है, धार्मिक अंधविश्वासों को बढ़ावा देने के लिए नहीं। धर्मों और भगवानों को लेकर जनता में पहले से ही एकरूपता नहीं है। हमारे देश में बहुत सारे लोग भगवानों में विश्वास नहीं करते। उन्हें सच्चा न्याय प्राप्त करने में कितनी बेचैनी होगी, यह एक सोचने का प्रश्न है।

      धर्म के नाम पर किसी भी जज को अंधविश्वास फैलाने की इजाजत नहीं है। अगर धर्म और भगवानों के आधार पर न्याय मिलता तो यहां तो भगवान और अनेक धर्मों में हजारों सालों से लोग विश्वास करते आ रहे हैं, तो फिर उन्हें न्याय क्यों नहीं मिला और वे हजारों साल से अन्याय का शिकार क्यों होते रहे? जनता को सस्ता और सुलभ न्याय क्यों नहीं मिला? फिर यहां अन्याय का साम्राज्य क्यों छाया हुआ है?

     किसी जज का भगवान से इंटरेक्शन का क्या कोई प्रमाण दिखाया जाएगा? आज यह सबसे बड़ा सवाल पैदा हो गया है। पूजा तो एक व्यक्तिगत मामला है, इसका सार्वजनिक प्रदर्शन और दिखावा करने का क्या मकसद है? प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों और भारतीय संविधान के धर्मनिरपेक्षता और न्याय के सिद्धांतों के अनुसार किसी भी जज को ऐसा करने की अनुमति नहीं है। यह संवैधानिक जिम्मेदारियों का सरासर गैरजिम्मेदाराना दुरुपयोग है।

     वैसे भी ज्यादा बोलने वाला जज एक बेसुरे बाजे की तरह ही होता है। जज को भाषण बाजी और सार्वजनिक दिखावे से बचना चाहिए। किसी भी जज को कानून और तथ्यों के आधार पर दिए गए अपने फैसले के माध्यम से बोलना चाहिए। उसके फैसले ही बताएंगे कि जज का क्या मिजाज है? मगर परेशानी यह है कि आजकल कुछ जजों को लाइमलाइट में रहने की बीमारी पैदा हो गई है। कई सारे जज सरकार को खुश करने के लिए काम कर रहे हैं और दिखावा कर रहे हैं। वर्तमान में बहुत सारे जज इसी गंभीर बीमारी से पीड़ित होते हुए दिखाई दे रहे हैं।

      वैसे भी हमारे देश में न्याय के क्षेत्र में और जनता को सस्ता और सुलभ न्याय मिलने के क्षेत्र में परेशानियों का अंबार लगा हुआ है, मगर हमारी न्यायपालिका को इन परेशानियों को दूर करने में और जनता को सस्ता और सुलभ न्यायिक प्रदान करने में कोई रुचि दिखाई नहीं दे रही है। न्याय के रास्ते में परेशानियों का अंबार इस प्रकार है,,,,

1.कर्नाटक के एक जज के अनुसार मस्जिदों में जय श्री राम का नारा लगाया जा सकता है, 2. गुजरात में कई सालों से फर्जी जज कार्य करता रहा, 3. हमारे देश में पिछले कई सालों से 5 करोड़ से भी ज्यादा मुकदमे लंबित हैं, इनके शीघ्र निस्तारण की कोई योजना न्यायपालिका के पास नहीं है, और हमारी न्यायपालिका इस बारे में कोई भी असरदार कदम नही उठा रही है, 4. मुकदमों के अनुपात में न्यायालय नहीं हैं, 5.मुकदमों के जल्द निपटारे के लिए मुकदमों के अनुपात में पर्याप्त संख्या में जज नहीं हैं, 6. मुकदमों के अनुपात में स्टेनो और सरकारी कर्मचारी नहीं हैं, 7. तमाम न्यायालयों में लगभग सारे जज मुकदमों के पहाड़ के नीचे दबे हुए हैं और वे चाह कर भी जनता को सस्ता और सुलभ न्याय नहीं दे पाते हैं, मुकदमों की सुनवाई नहीं कर पा रहे हैं, एक दिन में 100-150 से मुकदमे लिए नियत किए जाते हैं जिनकी सुनवाई असंभव है, 8.मुकदमों और काम के बोझ तले दबे न्यायालय के बाबूओं को कई कई घंटे अतिरिक्त काम करना पड़ता है, उनकी परेशानियों को दूर करने की कोई योजना न्यायपालिका और सरकार के पास नही है, 9. मुकदमों में सुनवाई खत्म होने के बाद, समय से आदेश पारित नहीं हो रहे हैं, 10.कई न्यायालयों में अधिकांश राज्य सरकारों द्वारा कानूनी प्रावधानों के विपरीत अयोग्य और नाकाबिल जज नियुक्त किए जा रहे हैं, जिन्हें कानून विशेष की जानकारी नहीं है और वे मनमानी करके वादकारियों के साथ अन्याय करते हैं और उन्हें सस्ते और सुलभ न्याय से वंचित करने में मशगूल हैं।

      न्यायपालिका के कुछ जजों और विषेष रूप से न्यायमूर्ति चंद्राचूड के अवांछनीय और संविधान विरोधी व्यवहार में पूरी न्याय-व्यवस्था पर बहुत ही नकारात्मक असर पड़ेगा। ऐसे जजों के उपरोक्त कार्य कलाप संविधान और न्याय हित में नहीं हैं। ये सारी कार्यप्रणालियां भारतीय संविधान, धर्मनिरपेक्षता, कानून के शासन और न्यायपालिका की स्वतंत्रता निष्पक्षता, इमानदारी और छबि पर गंभीर हमला है। सबसे गंभीर सवाल यह उठता जा रहा है कि यदि हमारे देश के सभी जज अपने-अपने भगवानों, खुदा और गॉड के हिसाब से काम करने लगेंगे तो हमारी धर्मनिरपेक्ष और स्वतंत्र न्याय व्यवस्था चरमरा कर गिर जाएगी और देश में धर्मांता, अंधविश्वास और अन्याय का साम्राज्य खड़ा हो जाएगा, संविधान और न्याय के बुनियादी सिद्धांतों का खत्मा हो जाएगा और जनता का पूरी न्याय व्यवस्था से विश्वास उठ जाएगा। आज के समस्त जजों की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है कि वे संविधान और धर्मनिरपेक्ष न्याय व्यवस्था के हिसाब से कम करें, धर्म और भगवान के चक्कर में तो बिल्कुल भी ना पड़ें। अगर वे अंधविश्वास, धर्मांता और भगवान के चक्कर से निकलने को तैयार नहीं हैं, तो उन्हें अपने जज के पद से तुरंत इस्तीफा दे देना चाहिए।

       आज के वक्त की सबसे बड़ी जरूरत पैदा हो गई है कि हमारे जागरूक नागरिक, बुध्दिजीवी, पत्रकार और राजनीतिक दल, अधिवक्ता और बार एसोसिएशनें, इन धर्मांधता और अंधविश्वासों के शिकार जजों की असंवैधानिक और अन्यायी कार्य प्रणाली और कार्यकलापों के खिलाफ आवाज उठाएं और समाज, देश, संविधान और न्याय हित में अपना जोरदार प्रतिरोध दर्ज करायें ताकि असंवैधानिकता, अन्याय और धर्मांधता की तरफ बढ़ते जा रहे जजों की संविधान विरोधी, गैरधर्मनिरपेक्ष, अन्यायी, अराजक और अनचाही गतिविधियों पर समय रहते रोक लगाई जा सके, तभी जाकर हमारी न्यायपालिका, संविधान के बुनियादी सिद्धांतों और अपनी स्वतंत्रता, धर्मनिरपेक्षता और कानून के हिसाब से कार्य करने पर बाध्य हो सकेगी और तभी जनता को सस्ता, सुलभ और असली न्याय मिल पाएगा।

Recent posts

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें