मुनेश त्यागी
आज हमारे देश में सांप्रदायिक ताकतों और पूंजीपति घरानों का गठजोड़ पैदा हो गया है। आज हमारी सरकार सिर्फ और सिर्फ देश के चंद पूंजीपति घरानों की धन-दौलत बढ़ाने का ही काम कर रही है। ऐसा करते हुए उसने सारी नैतिकता और मर्यादाएं ताक पर रख दी हैं, कानून के शासन को रौंद दिया है और संवैधानिक मूल्यों को और आदर्शों को धराशाई कर दिया है। वर्तमान सरकार जनता की समस्याओं से ध्यान हटाने के लिए जनता में हिंदू मुस्लिम नफरत का जहर घोल रही है।
आज हमारा देश और समाज बहुत बडे संकट के दौर से गुजर रहा है। पूरा देश जैसे साम्प्रदायिक फासीवादियों और घनघोर आतंकवादियों के भयानक हमलों का शिकार हो रहा है। दोनों ओर की ताकतें झूठे प्रचार द्वारा इतिहास की सच्चाईयों को झुठलाने पर आमादा हैं। अब जब पूंजीवादी और हिंदुत्ववादी सांप्रदायिक ताकतों का गठजोड़ सत्ता पर आरूढ हैं तो मामला और ज्यादा गंभीर हो गया है।
हिंदुस्तान की संस्कृति विविधतापूर्ण, साझी और मिली जुली रही है। हमारे यहां बाहर से कई जातियां जैसे हूण, शक, कुषाण, मंगोल, पठान, तुर्क, यूनानी आदि जातियों के लोग आये और यहां की संस्कृति, आचार विचार और चिंतन से प्रभावित हुए, यहां की संस्कृति और चिंतन को प्रभावित किया और कालांतर में वे सब यहां की संस्कृति में रच बस गये। लगभग सौ साल पहले तक हिंदू और मुस्लिम सम्प्रदाय के लोग एक दूसरे की धार्मिक भावनाओं का सम्मान और आदर करते थे।
दोनों ने एक दूसरे से काफी कुछ सीखा, लेकिन पिछले काफी अरसे से हिंदुत्ववादी साम्प्रदायिक ताकतें, इस साझी संस्कृति और साझी विरासत पर सबसे ज्यादा हमले कर रही हैं। ये ताकतें प्रदर्शित करना चाहती हैं कि यहां हिंदू और मुसलमान सदा से परस्पर युध्दरत रहे हैं, इनके हित और मिजाज अलग अलग रहे हैं, ये एक साथ नही रह सकते। मगर हकीकत और सच्चाई व एतिहासिक तथ्य, इस सरासर झूठ, इस झूठी मानसिकता और सोच के बिल्कुल खिलाफ हैं।
आज के संकटग्रस्त और विवादास्पद समय में यह बेहद जरूरी हो गया है कि इन भारत विरोधी ताकतों के झूठे अभियान का भंडाफोड किया जाये, इनके मंसूबों को करारी मात दी जाये। हमारा इतिहास सैंकडों हिंदू मुस्लिम हीरे मोतियों और नायक नायिकाओं से भरा पडा है, जिनके बारे में वर्तमान पीढी को बताना और अवगत कराना निहायत ही जरूरी हो गया है ताकि इन सांप्रदायिक ताकतों के झूठे अभियान का मुकाबला किया जा सके और ऐतिहासिक तथ्यों की तोड़ मरोड़ का मुकाबला किया जा सके और भारत की जनता को हिंदू मुस्लिम एकता की और शादी संस्कृति की असलियत से अवगत कराया जा सके।
भारत की साझी विरासत पर गौर करें तो पता चलेगा कि मुगल सरदार बाबर, दौलत खां लोदी और राणा सांगा के साथ, दिल्ली के बादशाह इब्राहीम खां लोदी और गवालियर के हिंदू राजा मान सिंह तौमर के गठजोड़ के साथ पानीपत के मैदान में लड रहा था, जिसने इब्राहीम खां लोदी को हराया था। यहां हमें याद रखना चाहिए कि बाबर को यहां, राणा सांगा और दौलत खां लोदी काबुल से बुलाकर लाये थे ताकि दिल्ली के बादशाह इब्राहीम लोदी को हराकर, दिल्ली की गद्दी पर काबिज हुआ जा सके। क्या यह हिंदू मुसलमान की लडाई थी?
इससे पहले भी मुस्लिम शासक आपस में लडते रहे हैं रजिया सुल्तान को भी मुसलमानों ने गद्दी से हटाया था, शेरशाह सूरी ने भी हुमांयु को परास्त किया था, क्या ये सब धर्मयुद्ध थे? नही नही, बिलुकुल भी नही, यह सिर्फ और सिर्फ राजनैतिक और सत्ता प्राप्ति का संघर्ष था, इसमें मजहब का कोई रोल नही था. इससे पहले भी मुस्लिम शासक गुलाम वंश, खिलजी वंश, तुगलक वंश और लोदी वंश के बादशाह सत्ता संघर्ष के लिए आपस में लडते मरते और खपते रहे हैं और आपस में एक दूसरे की हत्या करते रहे हैं और एक दूसरे का तख्ता पलट करते रहे हैं।
हल्दीघाटी के युध्द में अकबर महान के साथ राजा मानसिंह थे तो महाराणा प्रताप के साथ मुस्लिम सरदार हाकिम सूर खां थे। यहीं पर एक आश्चर्य चकित करने वाला एक तथ्य और काबिले गौर है, वह यह कि महाराणा प्रताप के बाद जब उनका बेटा राजा अमरसिंह सत्तानशीं हुआ तो उसने अकबर के बेटे बादशाह जहांगीर से संधि कर ली और उसके साथ मिल गया। अब इसे क्या कहियेगा, क्या यह भी धर्म युध्द था? क्या यह भी एक राजनैतिक और सत्ता का गठजोड़ न था?
औरंगजेब के मुख्य सेनापति हिंदू राजा मिर्जा जय सिंह थे और उनकी सेना में जाधव राव, कान्होजी सिर्के, नागोजी माने, आवाजी
ढल, रामचंद्र और बहीर जी पंढेर शामिल थे। तो वहीं महाराजा शिवाजी के निजी सचिव मौलवी हैदर खान थे, तौपची इब्राहीम गर्दी खान, और सेनापति दौलत खां व सिद्दीकी मिसरी थे। क्या यह कोई धार्मिक लडाई थी? यह सिर्फ राजनैतिक संघर्ष था, यानी यह मात्र सत्ता की लडाई थी। इसका तथाकथित धर्म युद्ध से कोई लेना-देना नहीं था, यह कोई धर्म युद्ध नहीं था।
सिराजुदौला के सबसे विश्वसनीय दोस्त राजा मोहन लाल थे। मीर मदन उनके सबसे वफादार सेनापति थे। सिराजुदौला परम देशभक्त थे, जिन्होंने अपने देश भारत को कभी धोखा नही दिया। हैदर अली आजाद जिये और अपनी और हिंदुस्तान की आजादी की रक्षा करते हुए अंग्रेजों से लडते हुए मैदानेजंग में वीर गति को प्राप्त हुए।
टीपू सुल्तान हमारे इतिहास के सबसे तेज चमकते हुए सितारे हैं। टीपू सुल्तान ने भारत के इतिहास में अपनी राजधानी में सबसे पहले “आजादी का पौधा” लगाया था। पूर्णिया उनके प्रधान मंत्री थे और कृष्ण राव उनके मुख्यमंत्री थे। टीपू सुल्तान भी अंग्रेजों से युध्द करते हुए मैदाने जंग में ही मारे गये थे। जबकि ये दोनों तथाकथित हिंदू राजा, टीपू सुलतान को धोखा दे रहे थे और अंग्रेजों के साथ मिल गये थे। इतिहासकारों का कहना है कि यदि ये दोनों हिंदू राजा, टीपू सुल्तान को धोखा नहीं देते और उसके साथ गद्दारी ना करते, तो टीपू सुल्तान ने उसी युद्ध में अंग्रेजो को पराजित कर दिया होता। क्या यह भारत के साथ हद दर्जे की गद्दारी ही नही थी?
भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 के महासंग्राम के सर्वोच्च सेनापति बहादुर शाह जफर और उनके निजी सचिव मुकुंद थे। इस महायुध्द की संचालन समिति में आधे हिंदू और आधे मुसलमान थे। इस महा संग्राम को एकता के सूत्र में पिरोने वाले नाना साहेब थे और उनके सचिव और दाहिने हाथ अजीमुल्ला खान थे। इन्हीं अजीमुल्ला खान में कई देशों में जाकर क्रांति का अध्ययन किया था। उन्होंने ही उस 1857 की क्रांति की पूर्ण रूपरेखा तैयार की थी। इस महासंग्राम की एक बहुत ही मजबूत कडी महारानी लक्ष्मीबाई थीं, उनके तौपची गौस खान थे और जमाखां और खुदाबख्श उनके कर्नल थे।
इस महाभारत की एक और बहुत ही कुशल और पराक्रमी शासक हजरत महल थीं। उनके साथ राव बख्शसिंह, चंदा सिंह, गुलाबसिंह, हनुमंत सिंह आदि अवध के प्रमुख सामंत सरदारों ने फिरंगियों के खिलाफ मोर्चा लिया और इन्होंने रणक्षेत्र में कभी अपनी पीठ नही दिखाई थी।
1857 की महाक्रांति का आगाज मेरठ से हुआ था जिसमें मेरठ के 85 सैनिकों को लंबी लंबी सजाऐं दी गयी थीं। इनमें 53 मुसलमान थे और 32 हिदू स्वतंत्रता सेनानी थे। यह भारत के इतिहास में कौमी एकता की सर्वश्रेष्ठ और अदभुत मिसाल है।
हिंदुस्तान की सबसे पहली अस्थायी सरकार 1915 में काबुुल, अफगानिस्तान में बनी थी, जिसके राष्ट्रपति राजा महेंद्र प्रताप सिंह और प्रधान मंत्री बरकतुल्ला खान और गृहमंत्री ओबेदुल्ला खान बनाये गये थे।
अमीर खुसरो हिंदी के पहले कवि थे। अपने को सच्चा भारतीय मानते हुए उन्होंने लिखा था कि “भारत मेरी मादरेवतन है, भारत मेरा देश है,और भारत संसार में स्वर्ग है, जन्नत है।”
भारत के इतिहास में संपूर्ण स्वतंत्रता और “इंकलाब जिंदाबाद” का नारा सबसे पहले मौलाना हसरत मोहनी ने 1921 में दिया था जिसे बाद में शहीदों के शहीद, शहीद ए आजम भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव और उनके साथियों ने आजादी की लड़ाई में इस्तेमाल किया था और इस नारे को भारत के स्वतंत्रता संग्राम का सबसे बड़ा नारा बना दिया था जो भारत की संघर्षशील जनता का, आज भी सबसे मुख्य नारा बना हुआ है।
काकोरी केस के हीरो रामप्रसाद बिस्मिल का दाहिना हाथ अशफाखउल्ला खान थे जिन्होंने फांसी पर चढने से एक दिन पहले अपने देशवासियों से अपील की थी कि “जैसे भी हो भारतवासी हिंदू मुस्लिम एकता बनाकर कर ऱखें ,इसी एकता के बल पर हमारा मुल्क आजाद होगा और हमारे लिये यही सच्ची श्रध्दांजलि होगी।”
मेरठ षडयंत्र केस में कामरेड मुजफ्फर अहमद को मजदूर राजनीति और साम्यवादी कार्यकर्ता होने के कारण आजीवन कारावास की सजा दी गयी थी। भारतीय आजादी के संग्राम के सबसे बडे दीवाने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के वरिष्ठ और सबसे करीबी साथी आबिद हसन, एसी चटर्जी, एमजेड कयानी और हबीबुर्रहमान थे। उनकी अस्थायी सरकार में चार हिंदू और चार मुसलमान प्रतिनिधि थे।
इस प्रकार, हम संक्षेप में देखते हैं कि हमारे यहाँ भूतकाल में जो संघर्ष रहें हैं, वे कोई धर्म युध्द नही थे, बल्कि वे राजनैतिक और सत्ता के लिये संघर्ष थे, जिनमें हिंदू और मुसलमान साथ साथ और एक दूसरे के खिलाफ भी लडते रहे हैं। वर्तमान समय में हर प्रकार की साम्प्रदायिकता और आतंकवाद के खिलाफ प्रचार में, ये हिंदू-मुस्लिम हीरे मोती, नायक महानायक और वीरांगनायें हमारे लिये बहुत ही कारगर हथियार हैं। भारत की साझी संस्कृति, गंगा-जमुनी तहज़ीब और साझी विरासत और साझी संस्कृति को बचाने के लिय़े हमें इन हीरे मोतियों का इस्तेमाल करना चाहिये और साम्प्रदायिक ताकतों के झूठे प्रचार का भंडाफोड़ करना चाहिए और माकूल जवाब देना चाहिए। यह आज का सबसे महत्वपूर्ण काम है।
वर्तमान में ये साम्प्रदायिक ताकतें हमारे मिले जुले और एकजुट समाज की एकता को झूठी बताकर, अफवाहें फैलाकर, तोडना और खंडित करना चाहती हैं कि हम लोग हिंदू मुस्लिम के नाम पर लडकर और कटकर मर खिर जायें। आज हमारे तमाम जनवादी, प्रगतिशील, धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी पार्टी और ताकतों की जिम्मेदारी है कि इन जनविरोधी और देशविरोधी ताकतों का मिलजुलकर विरोध करें और जनता को सही इतिहास से अवगत करायें। इसके लिए हम गोष्ठियों, सम्मेलनों, भाषणों और निबंध प्रतियोगिताओं का आयोजन करके जनता को शिक्षित, प्रशिक्षित और जागरूक कर सकते हैं।
यही वर्तमान समय की सबसे बड़ी जरूरत है और इनका माकूल इस्तेमाल करके ही सांप्रदायिक ताकतों के मुस्लिम विरोधी, झूठे और फासीवादी व नफरत मरे अभियान का माकूल और कारगर जवाब दिया जा सकता है और मुकाबला किया जा सकता है और जनता को प्रबुद्ध बनाया जा सकता है। याद रखना कि प्रबुद्ध जनता ही इन सांप्रदायिक, फासीवादी, जातिवादी और जनविरोधी ताकतों की देश और समाज विरोधी मुहिम और नीतियों का मुकाबला कर सकती है और उसे परास्त कर सकती है।