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चुनाव विदेशी फन्डिंग … ट्रम्प के गंभीर आरोप पर भारत की चुप्पी….?

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ओमप्रकाश मेहता

अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने देश की राजनीति में अब भारत को मोहरा बनाया है, उनका सीधा आरोप है कि उनके ‘पूर्ववर्ती राष्ट्रपति जो बाइडन प्रशासन और वित्तीय सहायता देने वाली सरकारी एजेंसी यूएसएड ने भारतीय चुनावों को प्रभावित करने के लिए एजेंसी फन्ड का दुरूपयोग किया, इस प्रकार ट्रम्प ने बाइडन व यूएसएड के साथ भारत को ही विवादित कटघरें में खड़ा कर दिया है, ट्रम्प के इस गंभीर आरोप पर भारत ने जांच के नाम पर चुप्पी साध रखी है।
ट्रम्प का यह रहस्योद्घाटन भारत सरकार के लिए काफी परेशानी पैदा करने वाला है, मुख्य आरोप यह है कि पिछले चैबीस सालों में यूएसएड ने भारत में चुनावों के वक्त पच्चीस हजार एक सौ बारह करोड़ रूपए बांटकर भारतीय चुनावों को प्रभावित करने की कौशिश की, भारत सरकार इस गंभीर आरोप की जांच में जुट गई है। इस मामले को लेकर भारत में राजनीतिक, प्रशासनिक बवाल मचा हुआ है।
अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प इसे जहां एक रिश्वत की योजना बता रहे है, वहीं भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जयसवाल भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप बता रहे है, वहीं कांग्रेस के प्रवक्ता और वरिष्ठ नेता पवन खेड़ा ने सवाल खड़ा किया है कि ‘‘एक सप्ताह से यह कहानी चलाई जा रही है कि यूएसएड ने मोदी सरकार को अस्थिर करने के लिए 21 मिलियन डॉलर दिए, उन्होंने पूछा कि इतनी सुरक्षा एजेंसियों के होते हुए भी भारत सरकार ने यह विदेशी धन भारत आने कैसे दिया? जबकि भारत के उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने इस मसले को लोकतांत्रिक मूल्यों पर कुठारघात निरूपित किया।
इस संदर्भ में यदि प्राप्त धनराशि के आंकड़ों को विश्लेषण किया जाए तो यह स्पष्ट होता है कि 2022 में सबसे अधिक अनुदान राशि 22.8 करोड डॉलर प्राप्त हुई और इस समय अमेरिका के राष्ट्रपति बाइडन ही थे। वर्ष 2021 और 24 के बीच 65 करोड़ डॉलर राशि वितरित की गई जिसमें सबसे अधिक अनुदान 228 करोड डॉलर अकेले 2022 में वितरित किए गए, उल्लेखनीय है कि यूएसएड को 2013 में भारत को चुनावी उद्धेश्य के लिए सीईपीपीएस के माध्यम से पांच सौ हजार डॉलर का वित्त पोषण करने के लिए बाध्य किया गया था, इसमें से उसने अंततः 2013 और 2018 के बीच 484.185 डॉलर का भुगतान किया इसके बाद कोई राशि वितरित नही की गई।
भारत ने अपनी राजनीति के तहत भारत को अन्तर्राष्ट्रीय कटघरे में खड़े करने की कौशिश की है, इसकी जांच आवश्यक ही नहीं अनिवार्य भी है, यह पता करना जरूरी है कि भारत में मतदान बढ़ाने के नाम पर अमेरिकी सहायता किसे मिली और उसका उपयोग कहां व कैसे हुआ? इसकी आवश्यकता इसलिए भी बढ़ गई है क्योंकि पहले एलन मस्क ने इस पर आपत्ती जताते हुए उसे रोकने की घोषणा की, फिर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने उसे भारत में सत्ता परिवर्तन का माध्यम बताया और इसे ‘दलाली’ करार दिया। अब चूंकि अमेरिकी राजनीति में भारत को मोहरा बनाए जाने का प्रयास हुआ है तो भारत का यह पहला दायित्व है कि वह इस मामले की अपने स्तर पर निष्पक्ष जांच करवाए और जांच के परिणामों से पूरे विश्व को अवगत कराए, जिससे कि इस मामले मेंं भारत की स्थिति स्पष्ट हो सके, क्योंकि यह भारत के सिर पर कलंक लगाने जैसा प्रयास है। अब ऐसी स्थिति में भारतीय विदेश मंत्रालय को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इस मसले की जांच इस तरह हो कि सब कुछ स्पष्ट रूप से सामने आ जाए इस संदर्भ में यह भी कहा जा रहा है कि उक्त वित्तीय सहायता भारत नही बांग्लादेश को दी गई। इस प्रकार कुल मिलाकर यह मामला काफी विवादास्पद और संदेहजनक हो गया है। इसलिए इस पूरे मसले की निष्पक्ष जांच की सख्त आवश्यकता है, क्योंकि इससे भारत की प्रतिष्ठा जुड़ गई है।

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