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क्या सचमुच सरकार भी टपकने वाली है?

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-सुसंस्कृति परिहार 

पिछले दिनों खासकर वारिश के आगमन के बाद से ऐसी ऐसी जगह टपके टपक रहे हैं कि आश्चर्य होता है ये सब कैसे और क्यों हो रहा है सबको मालूम है।सबसे पहले दिल्ली विमान तल पर ऐसा टपका लगा कि उसकी छत ही टपक गई तथा कारें और तीन व्यक्ति दुनियां से कूच कर गए। ऐसी ही घटना जबलपुर डुमना एयरपोर्ट पर हो गई खैरियत रही कि कोई व्यक्ति चपेट में नहीं आया। हवाई अड्डे से टपके ने सीधा रुख बिहार का किया तीन चार पुल टपक गए।पुलों के टपके का सिलसिला अभीऔर बढ़ेगा क्योंकि अभी तो वारिश का शुरुआती दौर है। इससे पहले रामनगरी अयोध्या में राम पथ में  चौदह जगह पथ के टुकड़े गढ्ढों में टपक लिए।एक महिला भी राम पथ पर चलते चलते एक गड्ढे में टपक गई वो तो निकाल ली गई वरना इस पावन पथ पर शहादत हो गई होती।चित्रकूट में भी नया बन रहा ग्लास पुल दरक गया यदि मरम्मत नहीं की गई तो वह उद्घाटन के पहले ही टपक सकता है। वन्देभारत नई नवेली ट्रेनों में ही टपका नहीं लगा पुणे और राजकोट स्टेशन के टपके तो झरने जैसे झर झर झर रहे हैं।

अभी तक तो ग़रीब गुरबों के घर टपकते और उन्हें रात रात भर बर्तनों में पानी फेंकते देखा था।यह पहली बार है कि अनगिनत विकास के कार्यों में टपका लगा है।गरीब लोगों का छोड़िये उनकी परेशानियों से किसी को फ़र्क नहीं पड़ता किंतु उपर्युक्त जो टपके हैं वे अकारण नहीं है। इन सब टपकों की वजह है इन सबके निर्माण में अपरिमित भ्रष्टाचार हुआ है। भ्रष्टाचार कोई नई और अनजान चीज़ तो है नहीं सनातन है। लेकिन कहते हैं आटे में नमक बराबर चलता है पर जब इसका उलट हो जाए तो ये सब होना ही है। इसमें बहुसंख्यक ठेकेदार गुजरात के हैं तथा जहां से निर्माण सामग्री ली जा रही है वे इलेक्टोरल बांड के खरीदार हैं तब टपका कैसे नहीं होगा ?इससे उन्हें बार-बार काम मिलने का अवसर मिलता है। खैर इस बारे में ज्यादा सोचना बेकार है क्योंकि यह हमारी सरकार की विशेषता बन चुकी है।

बस लोगों की अब एक ही तमन्ना है कि इन टपकों की तरह भी यह सरकार भी टपके, तो भविष्य में ये टपके शायद कम हो जाएं। बहरहाल आजकल सरकार टपके के चर्चे हर ज़बान पर हैं। राहुल गांधी ने प्रतिपक्ष के नेता की हैसियत से सदन में जिस विश्वास के साथ आमजन की आवाज़ बुलंद की उससे ना केवल ख़ामोश अवाम जागा है बल्कि मीडिया भी आहिस्ता आहिस्ता करवट बदलने की कोशिश भी शुरू कर दिया है ‌उधर कारपोरेट की हालत देखिए सोनिया गांधी जी को वैवाहिक निमंत्रण लेकर उनके दरवाजे पहुंचने शुरू हो गए हैं इससे सरकार को लगातार सदमें लग रहे हैं फिर बैशाखियों पर टिकी सरकार से तेलुगु देशम की एक लाख करोड़ की आंध्र विकास हेतु मांग, जेडीयू की आरक्षण को नौवीं सूची में शामिल करने की मांग के साथ बिहार को विशेष पैकेज के साथ सिर उठाए खड़े हैं।सूत्र तो यह संकेत दे रहे हैं कि 23जुलाई से प्रारंभ होने वाले बजट सत्र में ही यह सरकार टपक ना जाए। ऋषि सुनक सरकार का टपक जाना और लेबर पार्टी का चार सौ पार जाना भी सरकार को दिलासा की जगह हताशा की ओर ले जा रहा है।

कुल मिलाकर टपकों का रसास्वादन कराने वाली सरकार की जो संरचना है वह भी कदाचरण और भ्रष्टाचार की बैशाखियों के सहारे है इसलिए उसका टपकना सहज और सरल तरीके से होगा यह सत्य है।कब तक होगा यह कहना कठिन है किंतु सरकार का बचना मुश्किल है वह टपके की ओर अग्रसर है।

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