अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

*ईशावास्यमिदं सर्वम् और स्त्री*

Share

          रश्मिप्रभा सिंह

             धर्म-दर्शन-अध्यात्म उस स्त्री को पूजने की बात करता है, जिसमें स्त्रीत्व हो. सम्मान, पूजा की हकदार ऐसी ही स्त्री होती है. कुलटा, दुष्टा, नयस्थ स्वार्थी स्त्री के लिए डायन शब्द समीचीन है. इनके लिए ‘सठे साट्ठयं समाचरेत’ सूत्र प्रयुक्त करना चाहिए. इसी तरह स्त्री को गुलाम, दासी, पैरों की जूती, भोग की वस्तु मात्र समझने वाले शोषक – दुराचारी पुरुष को भी त्याग देना चाहिए.

ईशायाः वास्यम् इदम् सर्वम्।

 ईशा= ईश् ईष्टे ऐश्वर्ये शक्तौ च + क+टा =ऐश्वर्यमयी शक्ति, शासनकर्त्री सत्ता, स्वामिनी, महाकाली, महासरस्वती महाविद्या महालक्ष्मी महाप्रकृति महेश्वरी महाशक्ति मूलाप्रकृति, त्रिगुणात्मिका माया, महामाया, अखिलात्मिका सावित्री।

  वास्यम् = वसु वसति वस्यति वस्यति -ते + यत् + अण्। जिसमें जीव का मन बसता है, दृढ़ होता है, लगता है तथा जिससे जीव सुवासित (सम्मानित) होता है, जिसे जीव लेता है, स्वीकारता है, देता है एवं जिसके कारण वा जिसके लिये जीव हत्या करता है, चोट पहुंचाता है, उसे वास्य कहते हैं। वास्य का अर्थ है- धन। वसु वासु वस्तु वास्तु वस्य वास्य वसन वस्त्र वसा-ये सभी धन के पर्याय हैं। क्योंकि इन्हें प्राप्त कर जीव श्रीमान् कहलाता है, विश्व में यशस्वी बनता है तथा सम्मान पाता है। 

स्त्री ईशा है। इसलिये सम्पूर्ण धन स्त्री का है। धन को स्वामिनी होने से स्त्री समादरणीय है। 

   यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः। यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला क्रियाः॥

    ~मनुस्मृति (३ । ५६)

 यत्र नार्यः तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।  यत्र एताः तु न पूज्यन्ते सर्वाः तत्र अफला क्रियाः।।

     जहाँ पर स्त्रियों की पूजा होती है, सम्मान मिलता है, वहाँ पर देवता रमण करते हैं-देवताओं को प्रसन्नता प्राप्त होती है। जहाँ पर नारियों को सम्मान नहीं मिलता, अपमानित किया जाता है, वहाँ सभी क्रियाएँ विफल होती हैं- कामनाओं का नाश होता है।

    तात्पर्य यह कि जहाँ स्त्री का तिरस्कार नहीं होता, वहाँ सुख एवं समृद्धि का उद्यान होता है तथा जहाँ स्त्री को हेय समझ कर प्रताड़ित किया जाता है, वहाँ दुःख एवं दारिद्र्य का दावानल होता है। 

स्त्री राधा है। राध् (सामध्यें राधते, वृद्धौ राध्यति, संसिद्धौ हिंसायाम् राध्नोति ) + असुन = राधस् (सामर्थ्य शाली वर्धनशील आक्रामक विनाशक)। राधस् + सु = राधा, जिसे पाकर जीव वृद्धि को प्राप्त करता है, समर्थ कहलाता है। जिससे अन्धकार का नाश होता है, वह सूर्य रश्मि राधा है। राधा ज्योति है। ज्योति धन है। धन के लिये ज्योति जलायी जाती है। मैं स्वयं ऐसा करता हूँ।

   स्त्री शची है। शच् (भ्वा. आ. शचते वक्तृतायाम्) + इन्= शचि।

     शचि + ङी = शची (बोलने वाली, वाणी रूपा सरस्वती)। शची वाङ्नाम( निघण्टु १।११।) स्त्री चुप नहीं रहती। जहाँ स्त्री होती है, इसीलिये वहाँ गीत संगीत होता है। वहाँ आनन्द होता है। यही जीवन है। स्त्री के बिना जीवन है ही नहीं।

 स्त्री गौरी है। गम गतौ दीप्तौ+ डो=गो (चलती रहने वाली तथा प्रकाश करने वालो)। गो + सु= गौ (प्रकाश रश्मि, पालन कर्त्री) गौ + र + ङी= गौरी (प्रकाश युक्त, दीप्तिमयी सुन्दर माता)। पुरुष को मार्ग दिखाने वाली गौरी स्त्री है। माता होकर उसका पालन करने वाली गौरी स्त्री है। अज्ञान का नाश करने वाली गौरी गुरु है।

     स्त्री सीता है। सो हिंसायाम् स्यति+क्त + टा= सिता = सीता (ज्वालामयी, श्वेत)। सीता स्त्री रूप से पुरुष के दुःख का विनाश करती है, उसे सुख पहुँचाती है, संकट में भी उसका साथ नहीं छोड़ती उसे सतत नव जीवन देती रहती है।

       सीता को पाकर पुरुष राम बनता है। राधा को पाकर पुरुष कृष्ण बनता है। शची को पाकर पुरुष इन्द्र बनता है। गौरी को पाकर पुरुष शंकर बनता है। ईशा को पाकर पुरुष ईश्वर बनता है। लक्ष्मी को पाकर पुरुष नारायण बनता है। स्त्री आदि प्रकृति है। ये उसके नाना रूप हैं जो नाना गुणों से भूषित हैं।

Recent posts

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें