अग्नि आलोक
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*सीमा,मर्यादा,का ध्यान रखना अनिवार्य?*

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शशिकांत गुप्ते

अनेकता में एकता, यही तो है हमारे देश की विशेषता।
विभिन्नताओं से भरा हमारा देश है।
हमारे देश के प्रत्येक प्रांत की अपनी विशेषता है। रहन सहन और पहाराव में भिन्नता हैं।
खाद्य पदार्थो में विभिन्नताएं हैं।
हम भारतवासियों की संस्कृति तकरीबन एक सी है।
हम भारतवासी मेहमान नवाजी में भी किसी से कम नहीं है।
मेहमान नवाजी के लिए हम अपने घरों को तो श्रृंगारित करते ही हैं साथ ही खाने पीने के लिए तादाद में विभिन्न स्वादिष्ट व्यंजन प्रस्तुत करते हैं।
खिलाने में भी हम बहुत आग्रह कर खिलाते हैं,खाना तो मेहमान की हजम करने की क्षमता पर निर्भर होता है।
खाने के मामले में बहुत से लोग बहुत निपुण होते हैं,कितना ही खाले डकार तक नहीं लेते हैं।
कुछ लोग सप्ताह के कुछ चुनिंदा दिन को व्रत रखते हैं। व्रत मतलब उपवास,करते हैं। उपवास के दिन ये लोग फलिहारी खाद्य पदार्थ,या फल ही खाते हैं।
Hygienic अर्थात स्वास्थ्यकर मतलब अपनी आंतरिक शारीरिक सेहत का ध्यान रखने के लिए, पाचक आहार का सेवन करना होता है।
इन दिनों तोDietician मतलब
आहार विशेषज्ञ भी उपलब्ध हैं।
ये आहार विशेषज्ञ सलाह देते हैं,कब कौन सा,खाद्य पदार्थ कितनी मात्रा में खाना चाहिए।
आहार विशेषज्ञ उपलब्ध होना आधुनिकता का द्योतक है। आहार विशेषज्ञों के कारण लोगों को पाचक खाद्य पदार्थो की जानकारी मिलती है साथ ही खाद्य पदार्थो को कितनी मात्रा में कब और कैसे खाना चाहिए।
ठोस पदार्थ कितना खाना चाहिए तरल पदार्थ का सेवन कितनी मात्रा में करना चाहिए।
आहार विशेषज्ञ सिर्फ संभ्रांत लोगों के लिए उपलब्ध होते हैं।
राजनीति में सक्रिय लोग आंदोलनों में नारे लगाते हैं। हम सब एक हैं। खाने के मामले में सच में हम एक हैं।
अपने देश में प्रत्येक प्रांत में खाने के व्यंजन भी विभिन्न आकार,प्रकार और भिन्न स्वाद वाले बनते हैं। जिस प्रांत का निवासी होता है,वह अपने क्षेत्र में बना हुआ ही खाता है।
कुछ लोग अंतर्राष्ट्रीय व्यंजन भी खाते हैं। कुछ खाने के शौकीन अपने देश में भरपेट खा कर विदेश में हजम करने चले जातें हैं। इनके कारण देश की आर्थिक स्थिति का हाजमा जरूर खराब होता है।
जो लोग अपनी सेहत के प्रति सजग रहते हैं,वे लोग अपनी दिनचर्या एकदम समयानुसार रखते हैं।
समय सोते हैं,समय जागते हैं और समय पर ही खाते हैं
ये लोग चाहे जब चाहे जो और चाहे जितना नहीं खाते हैं।

अपना देश धार्मिक देश है।
धार्मिक आयोजनों जितने दिव्य भव्य स्वरूप में आयोजित होते हैं,उसी भव्य स्वरूप में भंडारा नामक सहभोज का आयोजन भी किया जाता है।
इस भंडारा नामक सहभोज के आयोजन के लिए मुहैया खर्च पर प्रश्न उपस्थित करना अधर्म की परिभाषा में आता है?
वैसे भी इस कहावत को ध्यान में रखता जरूरी है। दान की बछिया के दाँत नहीं गिने जाते
अपने देश में आमजन का अपना मकान बैंक से ऋण लेकर ही बनता है। लेकिन दिव्य भव्य मंदिर अपने देश के दानवीरों के धन से ही निर्मित होते हैं।
धार्मिक स्थलों में भी भोजन प्रसादी के नाम से खाना उपलब्ध होता है।
उपर्युक्त मुद्दे के संदर्भ में शायर शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम रचित
निम्न शेर प्रासंगिक
मज़रा-ए-दुनिया में दाना है तो डर कर हाथ डाल
एक दिन देना है तुझ को दाने दाने का हिसाब

(मज़रा-ए-दुनिया खेती की ज़मीन,उपजाऊ ज़मीन)
शेर का भावार्थ है सिर्फ उपभोग मत करों,मतलब सिर्फ सुविधाभोग मत बनों?

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