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गीता प्रेस के औरत विरोधी साहित्य पर रोक लगाना जरूरी

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मुनेश त्यागी 

        पिछले दिनों गीता प्रेस को 2022 गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इसे लेकर मीडिया में काफी बवाल मचा हुआ है। इस पुरस्कार की चयन समिति में भारत के प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता, लोकसभा अध्यक्ष और भारत के मुख्य न्यायाधीश शामिल होते हैं। मगर पुरस्कार तय करने वाली इस बैठक में लोकसभा में विपक्ष के नेता शामिल नहीं थे।

       गीता प्रेस के संस्थापकों हनुमान प्रसाद पोद्दार और जयदयाल गोयंका, दो विवादास्पद नाम हैं। इन पर गांधी हत्या की साजिश रचने के इल्जाम लगे थे। इन पर आरोप थे कि ये गांधीजी से इसलिए नफरत करते थे क्योंकि गांधी अछूतों और शूद्रों को बराबरी दिलाने की बात करते थे और वे इनके हिंदू मंदिरों में प्रवेश दिए जाने के बड़े समर्थक थे।

       गांधी पुरस्कार देने में सरकार के मंसूबों पर पहले भी सवाल खड़े होते रहे हैं। गीता प्रेस को यह पुरस्कार देने के पीछे भी कई सवाल खड़े हो रहे हैं कि गीता प्रेस का, गांधी दर्शन से कभी कोई वास्ता ही नहीं रहा है। इस बार भी सरकार के इस रवैए पर कई लोगों ने एतराज किए हैं। आरएसएस और बीजेपी विचारकों द्वारा गीता प्रेस के गुणगान, बहुत दिनों से किए जा रहे हैं।

      जब दलित समाज से आने वाले भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने गीता प्रेस के शताब्दी समारोह में शामिल होकर कहा था कि गीता प्रेस ने अपने प्रकाशनों के द्वारा भारत के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक ज्ञान और विरासत को आमजन तक पहुंचाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी। उन्होंने कहा था कि गीता प्रेस ने भगवत गीता, रामायण, उपनिषद और पुराणों को भी प्रकाशित किया है।

       उन्होंने गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित पत्रिका कल्याण की भी भूरी भूरी प्रशंसा की थी और इसे भारत की सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली पत्रिका बताया था। उन्होंने इसे भारतीय संस्कृति की दूत बताया था। इस पत्रिका ने अभी तक के धर्मनिरपेक्ष प्रगतिशील और जनवादी मूल्यों को बढ़ाने में, उनका प्रचार-प्रसार करने में कोई भूमिका अदा नहीं की है। इस प्रकार भारत के राष्ट्रपति ने गीता प्रेस को महिमा मंडित करके, भारत के जनतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी लोकतंत्र का निरादर ही किया था।

      सच्चाई यह है कि राष्ट्रपति कोविंद जिस गीता प्रेस को अपना आदर्श मानने की बात कर रहे थे, वह गीता प्रेस एकदम औरत विरोधी है क्योंकि गीता प्रेस औरतों के सती होने, उनकी पिटाई किए जाने का समर्थन करती है, उनके रोजगार दिए जाने का विरोध करती है, उनके द्वारा बलात्कार की रिपोर्ट किए जाने का और विधवा या तलाकशुदा होने पर पुनर्विवाह का विरोध करती है। यही गीता प्रेस औरतों द्वारा यह सब करने से, उनकों स्वर्ग तक ले जाने का मार्ग बताती है।

     गीता प्रेस ने “नारी शिक्षा”, “ग्रहस्थ में कैसे रहे?”, “दांपत्य जीवन का आदर्श”,” कल्याण नारी” और “स्त्रियों के लिए कर्तव्य शिक्षा” जैसे कई अंक निकाले हैं, जिनकी संख्या लाखों में है। ये सारी की सारी किताबें, औरतों को कमजोर और आदमियों की गुलाम यानी पराधीन, मानने और ठहराए जाने की पूरी वकालत करती हैं। गीता प्रेस द्वारा औरतों के खिलाफ क्या-क्या मान्यताएं प्रकाशित की जाती रही हैं, उनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है,,,,,

      “नारी शिक्षा” में औरतों की गुलामी की मांग करते हुए हनुमान पोद्दार कहते हैं,,, “स्त्री को बाल, युवा और वृद्धावस्था में स्वतंत्र न रहने के लिए कहा गया है। उसे सदा एक सावधान पहरेदार की जरूरत है। यही उसका गौरवपद है।”

      गीता प्रेस औरतों को नौकरी करने की बिल्कुल और स्पष्ट मनाही करती है। वह कहती है,,,, “वह नौकरी का कष्ट, तिरस्कार और प्रताड़ना आदि सहन नहीं कर सकती। अतः नौकरी, व्यापार, खेती का काम पुरुषों की जिम्मेदारी है और घर का काम स्त्रितियों के लिए है।”

     गीता प्रेस आगे कहती है,,,,”नारी देह के मामले में कभी भी पूरी तरह से स्वाधीन नहीं हो सकती। प्रकृति ने उसके मन, प्राण और अवयवों की रचना ऐसे ही की है। वह सीमित रह कर सारे जगत की सेवा करती है, अगर वह अपनी इस विशिष्टता को भूल जाए तो दुनिया का बहुत शीघ्र विनाश होने लगेगा और आज यही हो रहा है।”

        बेटी को पिता की संपत्ति में हिस्सा मिलने के बारे में लिखी पुस्तिका “ग्रहस्थ में कैसे रहे” के लेखक स्वामी रामसुखदास दो टूक रूप से कहते हैं,,,,,, “बहन को हमारे पुराने रीति-रिवाजों के अनुसार, पिता की संपत्ति में हिस्सा नहीं लेना चाहिए, जो कि धार्मिक और शुद्ध है। धन आदि पदार्थ कोई महत्व की वस्तुएं नहीं हैं, धन आदि पदार्थों का महत्व कलह कराने वाला है और नर्क में ले जाने वाला है, इसमें मनुष्यता नहीं है।”

       गीता प्रेस के लेखों में लड़के लड़कियों को एक साथ पढ़ने की स्पष्ट रूप से मनाही की गई है क्योंकि आपसी आकर्षण के कारण ,,,,”नित्य समीप रहकर संयम रखना असंभव सा है।” इसी कारण स्त्रियों के साधु सन्यासी बनने पर रोक लगाने की बात कही गई है।

      गीता प्रेस में दहेज की समस्या का अद्भुत समाधान करते हुए कहा गया है,,,,, “शास्त्रों में दहेज देने का विधान है, लेने का नहीं।”

     अगर कोई पति अपनी पत्नी के साथ मारपीट करता है तो पत्नी को क्या करना चाहिए? आइए देखें,,,,, “पत्नी को समझना चाहिए कि यह मेरे पूर्व जन्म का कोई बदला है, ऋण है, अतः पाप ही कट रहे हैं और मैं शुद्ध हो रही हूं।”

       लड़की के लिए एक और मारके की बात गीता प्रेस में कही गई है,,,,, “वह अपने दुख की बात किसी से ना करे, नहीं तो उसकी अपनी ही बेइज्जती होगी, उस पर ही आफत आ जाएगी, जहां उसे रहना है वही अशांति आ जाएगी।”

      ऐसी स्थिति में अगर पति उसे त्याग दें तो पत्नी को क्या करना चाहिए? आइए, इस अद्भुत उपाय को भी देखते हैं,,,, “वह अपने पिता के घर पर ही रहे। पिता के घर पर रहना न हो सके, तो ससुराल अथवा पीहरवालों वालों के नजदीक किराए पर कमरा लेकर रहे और मर्यादा, संयम, ब्रह्मचर्य धर्म का पालन करे, भगवान का भजन करे।”

      आइए देखें कि यदि हालात बहुत खराब हो जाएं तो क्या वह पुनर्विवाह कर सकती है?,,,,, “माता-पिता ने कन्यादान कर दिया तो अब कन्या की संज्ञा तो नहीं जा सकती। अतः पुनः दान कैसे हो सकता है? अब उसका विवाह करना तो पशुधर्म है। अतः स्त्री जाति पुनर्विवाह न करे, ब्रह्मचर्य का पालन करें और संयम पूर्वक रहें।”

      गर्भपात को लेकर गीता प्रेस क्या कहती है आइए जानें,,,,, इस साहित्य में स्त्री को गर्भपात की इजाजत नहीं दी गई है। गर्भपात को महापाप बताया गया है। गर्भपात करने पर शास्त्र कहते हैं कि,,,,,”ऐसी स्त्री को सदा के लिए त्याग देना चाहिए।”

       बलात्कार की शिकार महिलाओं की स्थिति तो बिल्कुल नारकीय बना दी गई है। बलात्कार की शिकार स्त्रियों को जो धर्म उपदेश, इस महान साहित्य में दिया गया है, वह तो बिल्कुल ही रौंगटे खड़े करने वाला है। स्वामी रामसुखदास कहते हैं,,,,, “जहां तक बने, स्त्रियों को चुप रहना ही बढ़िया है। पति को पता लग जाए तो उसको भी चुप रहना चाहिए।” इस प्रकार बलात्कारियों को तो जैसे अभय दान ही दे दिया गया है।

       इस साहित्य में सती प्रथा का कमाल का समर्थन और गुणगान किया गया है,,,,, “हिंदू शास्त्रों के सतीत्व अनुसार परम पूण्य है। स्त्री जाति का यह गौरव भारत का गौरव है। भारत वर्ष की स्त्री जाति का गौरव, उसके सतीत्व और मातृत्व में ही है, अतः प्रत्येक भारतीय नारी को उसकी रक्षा प्राणप्रण से करनी चाहिए।” ( ये सारे उद्धरण शमसुल इस्लाम के लेख से लिए गए हैं।)

        हिंदू औरत विरोधी गीता प्रेस का यह तमाम साहित्य अदालत परिसरों,  रेलवे बुक स्टालों, सरकारी दफ्तरों के अहातों में, बस स्टैंडों और मोबाइल वैनों में, खुलेआम बिका करता हैं और ये तमाम किताबें आर एस एस द्वारा संचालित दुकानों पर भी मिलती हैं।

       इस प्रकार यह औरत विरोधी पूरा का पूरा साहित्य भारत के संविधान, कानून, आईपीसी, हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम, हिंदू विवाह अधिनियम, सती प्रथा रोकथाम अधिनियम, जैसे जरूरी प्रावधानों के खिलाफ है और इन अपराधों पर एक से सात साल की सजा और ₹30,000 तक के जुर्माने का प्रावधान है। मगर यह बेहद अफसोस की बात है कि भारत की औरतों के खिलाफ ये अपराध अबाध गति से जारी हैं और इन तमाम अपराधियों के खिलाफ कभी कोई कानूनी कार्यवाही नही की गई है।

      औरत जाति के खिलाफ जारी इस साहित्य के अभियान में जाने अंजाने रुप से भारत के राष्ट्रपति, भारत के कई न्यायाधीश, वर्तमान सरकार और बीजेपी के तमाम शासक शामिल हैं, तथा तमाम हिंदुत्ववादी ताकतें शामिल हैं।

        गीता प्रेस का यह साहित्य, औरत विरोधी मानसिकता और सोच एवं मनुवादी सोच और विचारधारा को ही अबाध गति से आगे बढ़ाने के अटूट अभियान में लगा हुआ है। यह औरत विरोधी अभियान भारत के संविधान, कानून के शासन, औरत समर्थक विभिन्न कानूनों और औरतों के अस्तित्व और आजादी के पूरी तरह से खिलाफ है। औरत विरोधी इसी सोच के चलते, हमारे समाज में औरतों को मनोरंजन का साधन और उपभोग की वस्तु समझा जाता है। हजारों साल से चली आ रही इसी सोच के चलते, औरतों को हमारे समाज में स्वतंत्र व्यक्तित्व प्रदान नहीं किया जा सका है। आज भी यही सोच जारी है जिस कारण तमाम कानूनों के बावजूद, औरत विरोधी अपराध लगातार बढ़ते जा रहे हैं और वे रुकने थमने का नाम नहीं ले रहे हैं।

       आज के युग में ऐसे औरत विरोधी साहित्य पर रोक लगाना सबसे ज्यादा जरूरी हो गया है। इनका किसी भी दशा में महिमा मंडन नहीं किया जा सकता है और इसके किसी भी तरह से प्रचार-प्रसार की अनुमति नही दी जानी चाहिए। भारत की तमाम जनवादी, धर्मनिरपेक्ष, प्रगतिशील संगठनों और ताकतों को, इसके खिलाफ और इसके खात्मे के लिए, मिलजुल कर लगातार काम करने की जरूरत है तभी जाकर औरत विरोधी इस माहौल का कामयाबी के साथ, मुकाबला किया जा सकता है और औरतों को उनका स्वतंत्र व्यक्तित्व प्रदान किया जा सकता है।

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