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*तर्कहीन और रूढ़वादी विचारों का तर्क से विरोध करना जरूरी* 

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*प्रदूषित गंगा का जिम्मेदार कौन ?*

*रामबाबू अग्रवाल* 

प्रयागराज में कुंभ स्थल पर गंगा नदी के पानी में उच्य स्तर के प्रदूषण को केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के बाद अब बिहार आर्थिक सर्वेक्षण ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें कहा गया है कि बिहार में अधिकांश स्थानों पर गंगा नदी का पानी पान के लिए भी उपयुक्त नहीं है, क्योंकि इसमें जीवाणुओं को मात्रा बहुत अधिक है। यह अध्ययन बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा किया गया है, जो नियमित रूप से गंगा नदी में प्रदूषण के स्तर की निगरानी करता है। प्रयागराज में बड़ी संख्या में लोगों के एकत्र होने का संज्ञान लेते हुए, राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने पहले चेतावनी दी थी कि कुंभ स्थल प्रयागराज का पानी अत्यधिक प्रदूषित है। उन्होंने बताया कि प्रदूषण की मात्रा अनुमेय सीमा से कहीं अधिक है और प्रदूषकों में मल का उच्य स्तर शामिल है। 16 फरवरी, 2025 को एनजीटी ने उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीची) को उसकी खराब कार्रवाई के लिए फटकार लगायी, जिसके कारण 50 करोड़ लोगों ने न केवल अत्यधिक प्रदूषित पानी में स्नान किया, जो कई बीमारियों का कारण बन सकता है, बल्कि इससे भी बदतर यह कि लोगों को वह पानी पीना भी पड़ा। एनजीटी ने यह भी आशंका जतायी कि शायद यूपीपीसीबी किसी तरह के दबाव में है। कोई आश्चर्य नहीं कि एनजीटी की टिप्पणियों के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि प्रयागराज का पानी पीने योग्य है। यह तब है जब केंद्रीय

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने पाया कि 12 जनवरी और उसके बाद 23 जनवरी, 2025 को निरीक्षण के दौरान कई निगरानी स्थलों पर पानी की गुणवत्ता घटिया पायी गयी। सीपीसीबी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कई स्थानों पर बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) का स्तर सामान्य मानक तीन मिलीग्राम (एमजी) प्रति लीटर से अधिक पाया गया। उच्च बीजोडी प्रदूषण के उच्च स्तर को इंगित करता है, क्योंकि सूक्ष्मजीवों को पानी में कार्बनिक अपशिष्ट को विघटित करने के लिए अधिक ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। फेकलकोलीफॉर्म बैक्टीरिया का स्तर बहुत अधिक था, जो मुख्य रूप से मानव और पशु मलमूत्र से आते हैं। इन बैक्टीरिया की मौजूदगी से पता चलता है कि पानी सीवेज से दूषित है, जिससे टाइफाइड, डायरिया और हैजा जैसी जलजनित बीमारियों के फैलने की संभावना है। यह देखा गया कि कई स्थानों पर नालों से अनुपचारित अपशिष्ट जल सौधे गंगा में बह रहा था। जबकि कुछ नालों को टेप करके उपचारित किया जा रहा था, लेकिन उपचार प्रक्रिया या तो आंशिक या अप्रभावी थी। एनजीटी की रिपोर्ट लोगों को उस प्रदूषित पानी में डुबकी लगाने से पहले सावधानी बरतने की चेतावनी थी। यह एक विरोधाभास है कि वैज्ञानिक चेतावनी के बावजूद लोग अत्यधिक प्रदूषित पानी में नहाने और पीने के लिए उमड़ पड़े। लेकिन इस विश्वास के बिना कि कुंभ के दौरान डुबकी लगाने से उन्हें देवताओं का आशीवाद मिलेगा, इनमें से अधिकांश लोग ऐसे प्रदूषित जल स्रोतों के पास भी नहीं खड़े होंगे। ऐसी आस्था और विश्वास जो पहले एक व्यक्तिगत मामला हुआ करता था, अव राज्य द्वारा कायम रखा जा रहा है। ऐसे आयोजनों का प्रबंधन आज तक धार्मिक संस्थाओं द्वारा किया जाता रहा है, जबकि राज्य केवल सहायक सेवाएं ही प्रदान करता रहा है। लेकिन पिछले एक दशक में राज्य न केवल इन आयोजनों को बढ़ावा देने में शामिल रहा है, बल्कि उन्हें मजबूत करने के लिए कथा-कथन भी गढ़ रहा है। इतना अधिक कि कई बार संवैधानिक संस्थाओं के लिए दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करना मुश्किल हो जाता है। 12 अप्रैल 2017 को टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित एक समाचार में चार सदस्यीय समिति ने सिफारिश की थी कि तथाकथित धर्मगुरु श्री श्री रविशंकर के आर्ट ऑफ लिविंग(एओएल) फाउंडेशन को यमुना नदी तट को हुए ‘व्यापक और गंभीर नुकसान’ के लिए मरम्मत लागत के रूप में 100-120 करोड़ रुपये का भुगतान करना चाहिए। यह क्षति 2016 में दिवी में यमुना के तट पर एओएएल द्वारा आयोजित सामूहिक उत्सव के कारण हुई थी। लेकिन एओएल ने इस आदेश का पालन नहीं किया, क्योंकि उन्हें केंद्र सरकार का संरक्षण प्राप्त था। सत्ता में बैठी सरकार द्वारा बार-बार अवैज्ञानिक कथा-कथन गढ़कर लोगों को मिथकों में उलझाए रखने का एक सूक्ष्म प्रयास किया जाता है। उदाहरण के लिए, गोमूत्र को कैंसर सहित विभिन्न बीमारियों के इलाज के रूप में प्रचारित किया जाता है। भाजपा सांसद प्रज्ञा ठाकुर ने कहा था कि गाय के मूत्र से उनका स्तन कैंसर ठीक हो गया। गाय के गोचर और पंचगव्य को कई बीमारियों के लिए पसंदीदा उपचार माना जाता है। साथ ही, गाय के गोबर में परमाणु विकिरणों से बचाने की शक्ति भी होती है, उन्होंने कहा था। उत्तराखंड के सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जुलाई 2019 में कहा था कि गाय एकमात्र ऐसा जानवर है जो ऑक्सीजन सांस लेता और छोड़ता है और इस हवा को सांस के साथ लेने से लोगों की सांस की समस्या ठीक हो सकती है क्योंकि गाय ‘प्राण वायु’ देती है। राजस्थान उच्चा न्यायालय के एक न्यायाधीश ने कहा था कि मोरनी मोर के आंसू चाटने पर संतानों की जन्म देती है। जालंधर में आयोजित भारतीय विज्ञान कांग्रेस में आंध्र प्रदेश विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. नागेंचर राव ने कहा था कि 100 कौरव इसलिए पैदा हुए क्योंकि हमारे पास इतना उच्च विज्ञान था कि हम प्राचीन भारत में प्रत्यारोपण के लिए, स्टेम सेल का इस्तेमाल करते थे। आरोग्य भारती रति क्रीड़ा के दौरान विशिष्ट बोकों का जाप करके अनुकूलित शिशुओं के जन्म को बढ़ावा दे रही है। वास्तव में इस तरह की अवैज्ञानिक कथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा के केंद्र में सत्ता में आने के तुरंत बाद गढ़ी गयी थी।

 अक्टूबर 2014 में मुंबई के एक अस्पताल के उद्घाटन के अवसर पर उन्होंने दावा किया था कि हाथी के सिर वाले हिंदू देवता गणेश प्राचीन भारत के प्लास्टिक सर्जरी के ज्ञान का प्रमाण थे। यह उनके बैंड वैगन को झूठी कहानियों का महिमामंडन करने का संकेत था। यह सब लगातार प्रयास लोगों को तर्कसंगत सोच से दूर रखने के लिए है। लेकिन इस तरह के मिथकों और झूठको हमेशा समय-समय पर चुनौती दी जाती रही है। प्राचीन भारत में एक ऋषि चार्वाक ने ब्रह्मांड और सामाजिक संबंधों के निर्माण की प्रचलित अवधारणा को चुनौती दी थी। उन्हें उनके विचारों के लिए जलाकर मार दिया गया था। गैलीलियों ने पृथ्वी के चारों ओर सूर्य के घूमने के मिथक को चुनौती दी, भले ही उन्हें इसके लिए सताया गया था। सुफी संतों ने भी मिथकों के खिलाफ बात की। गुरु नानक देव ने उस समय मिथकों को चुनौती दी जब ऐसा करना बहुत मुश्किल था। अब जब हमारे पास आसपास हो रही घटनाओं के पर्याप्त वैज्ञानिक प्रमाण है, तो यह हमारा कर्तव्य है कि हम निडर होकर उन लोगों के नापाक इरादों को उजागर करें जो विज्ञान का पूरा लाभ तो लेना चाहते हैं, लेकिन समाज में तर्कहीन और रूढ़वादी विचारों को बढ़ावा भी देना चाहते हैं।

(लेखक मध्य प्रदेश के वरिष्ठ समाजवादी जनता चिंतक तथा लोहिया विचार मंच मध्य प्रदेश के अध्यक्ष हैं)

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