वाचस्पति शर्मा
लोग दुनियाभर के गणित लगाते है की ये सरकार रहेगी , चली जायेगी , ये चुनाव जीतेगी , वो शायद नहीं जीतेगी आदि आदि। लेकिन इन सभी अंदाजों से बहुत दूर बॉटम लाइन निष्कर्ष ये है की – जब तक पूंजीगुट नहीं चाहेंगे ये सरकार नहीं हट सकती।2009 में यूपीए की जीत इसिलिये करवाई गयी थी ताकि वो ये सब काम करे जो की आज वर्तमान सरकार कर रही है। लेकिन 2009 में दोबारा जीतने के बावजूद भी मनमोहन सरकार पूँजी की लूट को वो गति नहीं दे पायी जिसकी पूंजीपतियों को दरकार थी।
इस वीभत्स लूट का अंदाजा आप इस बात से लगाइये की 2018 में आयी एक खबर के मुताबिक़ तमाम पूंजीपति घराने तत्कालीन ( 2014-2018) (वर्तमान) सरकार द्वारा किये जा रहे निजीकरण की स्पीड से नाखुश थे।
उनके हिसाब से निजीकरण की स्पीड और तेज होनी चाहिए थी।इसीलिए वर्तमान सरकार को मीडिया पर पूरा नियंत्रण और पैसे की बारिश ( विधायक सांसद खरीद फरोख्त ) की गयी ताकि निजीकरण की इस आंधी को दोनों सदनों में बहुमत या अन्य किसी सवैंधानिक नियम क़ानून के बहाने के चलते रोका ना जा सकें। आज जबकि वर्तमान सरकार उन्ही पूंजीगुटों के एजंडे को पूरी गति से आगे बढ़ा रही है तो इस सरकार के हटने का या पूंजीगुटों के इससे मोहभंग का कोई भी कारण नहीं नज़र आता।
इसे एक उद्दाहरण से ऐसे समझिये – मई 2014 में सरकार बनने के ठीक आठवें दिन बीमा और डिफेन्स में फॉरेन डाइरेक्ट इन्वेस्टमेंट की लिमिट ( 49 & 74 in 2020) परसेंट कर दी गयी थी।
अब सोचिये क्या ये इस सरकार की कोई दूरदर्शी आर्थिक निति थी क्या जो की इन्होने इतनी जल्दी ये काम किया ?नहीं ,,,,इसे पूंजीगुटों का प्रेशर कहतें हैं। जिसे पूरा करना ही होता है , सरकार इसी शर्त के साथ सत्ता में आयी थी भाई। तो असली खेल ये है।बाकी के खेल खिलद्दड़ , चुनाव , फलाना ढिमकाना आदि आदि तो जनता को बहलाने के टूल हैं।
एक विद्वान बतातें हैं कि – जो समूह उत्पादन के साधनो को कंट्रोल करता है, वही समूह राजनितिक सत्ता ( न्यायालय, पुलिस फ़ौज और नौकरशाही) को कंट्रोल करता है।
तो पूरा देश और राजनीतिज्ञों को कौन हाँक रहा है इसे समझना हो तो ये देखिये की उस देश के अधिकतम संसाधनों और प्रोडक्शन पर किसका कब्ज़ा है?यदि उसपर निजी मालिकाना है तो राजनीती अर्थनीति निजी मालिक के हिसाब से ही चलेगी और अगर संसाधनों और प्रोडक्शन पर कब्ज़ा सरकार का है तो जनता के हित के ही काम होंगे।
इसलिए पूंजीवादी लूट को टॉप गियर पर चलाने के लिए सबसे पहली मृग मारीचिका डेमोक्रेसी और जनतंत्र की भूल भुलैय्या की रचना करके की जाती है।
ताकि लोग इस आशा में जीतें रहें की चुनावों से कुछ परिवर्तन हो सकता है।और जब ये मारीचिका भी बेअसर हो जाए तो अगला चरण मिलिट्री स्टेट का होता है।
तो बने रहिये हमारे साथ…. अभी तो बस शुरुआत है।
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*वाचस्पति शर्मा*