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जूनियर महमूद ने जैसे ही लिफ़ाफ़ा पकड़ाया,सुंदर की आंखों से अश्रुधारा फूट पड़ी

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जैसे ही जूनियर महमूद ने सुंदर जी के हाथों में वो लिफ़ाफ़ा पकड़ाया, एक मोटी सी अश्रुधारा सुंदर जी की आंखों से फूट पड़ी। सुंदर जी को रोता देख जूनियर महमूद की आंखों में भी आंसू आ गए। और कुछ पल के लिए माहौल वाकई में किसी फ़िल्म के इमोशनल दृश्य सा हो गया। हालांकि वो दृश्य फ़िल्मी नहीं, एकदम रियल था। आज एक बहुत इमोशनल कहानी आप “किस्सा टीवी” के माध्यम से जानेंगे। आपको बस इतना करना है कि इस कहानी को अपने मस्तिष्क में विज़ुअलाइज़ भी करते जाना है। और जब कहानी खत्म हो तो इसे लाइक-शेयर करके अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाना है। कहानी स्टार्ट करते हैं।

तो इस कहानी के तीन किरदार हैं। पहले हैं पुराने ज़माने के नामी चरित्र कलाकार सुंदर जी। दूसरे हैं एक समय के विख्यात बाल कलाकार जूनियर महमूद जी। और तीसरे हैं अपने दौर के श्रेष्ठतम कॉमेडियन्स में से एक महमूद साहब। कहानी उन दिनों की है जब सुदंर जी फ़िल्मों व फ़िल्मी दुनिया से खुद को दूर कर चुके थे।(या कर दिए गए थे।) सुंदर जी का फ़िल्म इंडस्ट्री के लोगों से कोई संपर्क नहीं रहा था। कोई नहीं जानता था कि सुंदर जी कहां हैं और किस हाल में हैं। जूनियर महमूद, जो कॉमेडियन महमूद को अपना गुरू मानते थे, वो अक्सर फ़ुरसत के पलों में महमूद साहब के पास ही रहा करते थे।

एक दिन महमूद ने जूनियर महमूद से मिलने आने को कहा। महमूद उन दिनों मुंबई के एक वक्त के मशहूर “सन एंड सैंड होटल” में ठहरे हुए थे। क्योंकि उनके बंगले की मरम्मत चल रही थी तब। जूनियर महमूद जब महमूद से आकर मिले तो महमूद साहब ने जूनियर जी को आदेश दिया कि तुम्हें हर हाल में पता करना है कि सुंदर चचा(महमूद सुंदर जी को सुंदर चचा ही कहते थे।) कहां हैं आजकल। दरअसल, महमूद को पता था कि सुंदर जी बीमार हैं और उनकी आर्थिक स्थिति भी खराब है। लेकिन वो ये नहीं जानते थे कि सुंदर जी रहते कहां हैं। महमूद ने जूनियर महमूद जी को एक लिफ़ाफ़ा भी दिया। 

महमूद ने वो लिफ़ाफ़ा सुंदर जी को देने को कहा। साथ ही ये भी कहा कि सुंदर चचा से कहना कि जब उनकी तबियत ठीक हो जाए तो मुझसे आकर मिल ज़रूर लें। गुरू का आदेश मिलने पर जूनियर महमूद सुंदर की जो ढूंढने लिए निकल पड़े। लेकिन जाना कहां है, ये उन्हें नहीं पता था। जूनियर महमूद जी को बस इतना पता था कि सुंदर जी अंधेरी में कहीं रहते थे। जूनियर जी अंधेरी पहुंचे और उन्होंने सुंदर जी के ठिकाने के बारे में पूछताछ की। पता चला कि सुंदर जी तो अब अंधेरी में रहते ही नहीं हैं। जूनियर जी ने सुंदर जी को कई और जगहों पर भी तलाश किया। लेकिन उनका कुछ पता ना चल सका। 

इत्तेफ़ाक से जूनियर महमूद जी को याद आया कि डायरेक्टर-प्रोड्यूसर एच.एस.रवैल जी से सुंदर जी की बढ़िया दोस्ती थी। तो जूनियर महमूद रवैल साहब के घर पहुंच गए। वहां उन्हें पता चला कि सुंदर जी तो मुंबई छोड़ चुके हैं। वो दिल्ली ेमें रहने लगे हैं। जूनियर महमूद बड़ा निराश हुए। क्योंकि दिल्ली में सुदंर जी कहां थे, वो रवैल साहब को भी नहीं पता था। आखिरकार जूनियर महमूद ने अपनी तलाश खत्म कर दी। और तय किया कि अगर सुंदर जी का पता चल सका तो महमूद साहब का दिया लिफ़ाफ़ा उन्हें पकड़ा देंगे। नहीं तो वो लिफ़ाफ़ा वापस महमूद को लौटा देंगे।

कोई 15 दिन बाद जूनियर महमूद को किसी ने बताया कि आप जिन्हें तलाश रहे हैं वो अंधेरी ईस्ट के मरोल इलाके में दिखे हैं। जूनियर महमूद फौरन सुदंर जी को ढूंढने मरोल पहुंच गए। उस इलाके में जूनियर महमूद के कई परीचित रहा करते थे। अपने एक परीचित से जूनियर महमूद मिले और उन्हें सुंदर जी के बारे में बताया। जूनियर जी ने उनसे विनती की कि सुंदर जी को ढूंढने में मेरी मदद करिए। जूनियर जी के वो परीचित एक अमीर इंसान थे। उनके यहां कई लोग काम करते थे। उन्होंने अपने कर्मचारियों से जूनियर जी के बताए हुलिए वाले आदमी को ढूंढने को कहा।

कुछ दिन बाद जूनियर जी को पता चला कि मरोल की एक पुरानी बिल्डिंग में एक शर्मा जी अपने परिवार के साथ रहते हैं। उन्हीं के घर उस हुलिए के आदमी को आते-जाते देखा गया है जिसे जूनियर महमूद तलाश रहे हैं। बस फिर क्या था? जूनियर महमूद फौरन शर्मा परिवार के घर पहुंच गए। उन्होंने डोरबैल बजाई तो हाफ़ पैन्ट और सैंडो बनियान पहने एक बुजुर्ग सा दिखने वाले आदमी ने घर का दरवाज़ा खोला। वो सुंदर जी थे। जूनियर महमूद फौरन उन्हें पहचान गए। क्योंकि वो उनके साथ कुछ फ़िल्मों में काम कर चुके थे। हालांकि सुंदर जी ने जूनियर महमूद को नहीं पहचाना था।

सुंदर जी के लिए जूनियर महमूद को पहचानना मुश्किल भी था। क्योंकि जब जूनियर महमूद ने उनके साथ काम किया था तब जूनियर महमूद बाल कलाकार हुआ करते थे। मगर अब तक तो जूनियर महमूद अच्छे-खासे बड़े हो चुके थे। जूनियर महमूद को देख सुदंर जी ने उनसे पूछा,”कौन है तू भाई?” जूनियर महमूद ने फौरन सुदंर जी के पैर पकड़ लिए। जूनियर महमूद उनसे बोले,”मैं आपका जूनियर महमूद हूं बाबू जी।” ये सुनते ही सुंदर जी अवाक रह गए। उन्होंने जूनियर महमूद को उठाया और अपने गले से लगा लिया। फिर तो सुंदर जी जूनियर महमूद से ऐसे गले मिले जैसे बरसों पुराना कोई दोस्त मिल गया हो।

सुंदर जी भावुक हो चुके थे। जूनियर महमूद की आंखें भी नम हो गई थी। शर्मा परिवार के लोग उस दिन कहीं गए हुए थे। यानि सुंदर जी तब घर में अकेले थे। और उन्हें इस बात का बहुत अफ़सोस हो रहा था कि उनका इतना पुराना साथी आज उनसे मिलने आया है। लेकिन उस साथी को खिलाने के लिए घर में उनके पास कुछ भी नहीं है। सुंदर जी जिस शर्मा परिवार के घर में ठहरे हुए थे वो उनके फैन थे। जिन शर्मा जी का वो घर था वो सुंदर जी को बहुत चाहते थे और अच्छे दोस्त भी बन गए थे। इसिलिए जब सुंदर जी का बुरा वक्त आया तो शर्मा जी ने अपने घर में सुंदर जी को शरण दी थी।

सुंदर जी जूनियर महमूद को भीतर ले गए। वहां दोनों के बीच काफ़ी बातें हुई। फिर जूनियर महमूद ने अपने गुरू महमूद का दिया वो लिफ़ाफ़ा सुंदर जी की तरफ़ बढ़ाते हुए कहा,”ये आपकी अमानत है बाबू जी। कई दिनों से मेरे पास है। इसे आपको सौंपने के लिए ही मैं कई दिनों से आपको ढूंढ रहा था। अब आप इसे अपने पास रख लीजिए और मुझे इसकी ज़िम्मेदारी से मुक्त कीजिए। ये महमूद साहब ने दिया है। आपने कभी उनकी किसी फ़िल्म में काम किया था। उस फ़िल्म का आपका कुछ बकाया रह गया था उनकी तरफ़। वही आपको देने का आदेश उन्होंने मुझे दिया था।”

कांपते हाथों से सुंदर जी ने जूनियर महमूद से वो लिफ़ाफ़ा लिया और उसे कुछ सेकेंड्स तक अविश्वास भरी नज़रों से देखते रहे। उनकी आंखों से आंसू बह निकले। वो रो रहे थे। सुंदर जी को रोता देख जूनियर महमूद भी फिर से इमोशनल हो गए। खुद पर काबू करते हुए जूनियर महमूद ने सुदंर जी से जाने की इजाज़त मांगी। सुंदर जी ने जूनियर महमूद से कहा,”बात सुन यार जूनियर। तुझे मैं एक सलाह दे रहा हूं। कभी भी तू अपने उस्ताद को छोड़ना मत। उसके पैरों में पड़े रहना हमेशा। तुझे नहीं पता। किसी को भी नहीं पता। महमूद पहले भी मुझे इसी तरह से कई लिफ़ाफ़े भेज चुका है। वो बहुत प्यारा इंसान है। तू हमेशा उसके साथ रहना।” 

सुंदर जी की वो बात सुनकर जूनियर महमूद की नज़रों में अपने उस्ताद महमूद की इज्ज़त और कई गुना बढ़ गई उस दिन। कुछ देर और सुंदर जी के पास रहकर जूनियर महमूद वहां से चले गए और महमूद साहब को जाकर उन्होंने बता दिया कि उनका दिया लिफ़ाफ़ा वो सुंदर जी तक पहुंचा चुके हैं।

साथियों इस किस्से का ज़िक्र खुद जूनियर महमूद जी ने अपने एक इंटरव्यू में कुछ साल पहले किया था। आज इस कहानी के तीनों प्रमुख पात्रों में से कोई भी इस दुनिया में मौजूद नहीं है। लेकिन इन कलाकारों की ये कहानियां हैं और हमेशा रहेंगी। आपको ये कहानी कैसी लगी, बताइएगा ज़रूर। और लाइक व शेयर भी कर दीजिएगा। उसका कोई पैसा नहीं लगता अभी तक। जब लगने लगेगा तब हम कहना बंद कर देंगे। अभी फ्री है तो अभी तो आपको याद दिलाते ही रहेंगे। धन्यवाद। बीते कल ही, यानि 05 मार्च को सुंदर जी की पुण्यतिथि थी। साल 1992 में उनका निधन हुआ था। सुंदर जी, महमूद साहब व जूनियर महमूद जी को नमन।

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