मुनेश त्यागी
आज दुनिया के महान क्रांतिकारी कार्ल मार्क्स की पुण्य तिथि दिवस 14 मार्च 1883 है। मार्क्स के मृत्यु के बाद उनके अभिन्न मित्र एंगेल्स ने कहा था “पूरी दुनिया मानव जाति में एक मस्तिष्क की कमी हो गई है और यही मस्तिष्क का अपने जमाने का सबसे बुलंद मस्तिष्क था। उन्होंने कहा था कि मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि उनके जीवन में चाहे कितने ही विरोधी क्यों न रहे हों, मगर उनका व्यक्तिगत शत्रु, एक भी नहीं था। उनका नाम युगों युगों तक कायम रहेगा और उनका काम हमेशा हमेशा अमर रहेगा।
कार्ल मार्क्स जन्म 5 मई 1818 को हुआ था। मार्क्स दुनिया के महानतम क्रांतिकारियों में से एक हैं। मार्क्स ने बर्लिन में दो-तीन साल पढ़ने के बाद कानून की डिग्री प्राप्त की। उनकी ज्यादा रुचि दर्शनशास्त्र में थी। बाद में मार्क्स ने दर्शनशास्त्र में डॉक्टर की उपाधि हासिल की।
मार्क्स को क्रांतिकारी लेखन और राजनीतिक गतिविधियों के कारण, दुनिया में सबसे ज्यादा देश निकाले दिए गए, मगर उन्होंने अपनी क्रांतिकारी विचारधारा और लेखन का परित्याग नहीं किया। वे कई अखबारों में लिखते रहे, कई अखबारों के संपादक रहे, मगर उनके विचारों और लिखो से मन की सरकारें हमेशा डरती रही खूब खाती रही और उन्हें अपने देश से निकलती रहीं। इस प्रकार मार्क्स के जीवन में कभी भी स्थायीत्व कायम नहीं हो सका। इस सबके बावजूद भी मार्क्स ने कभी हार नहीं मानी और वे अपने क्रांतिकारी चिंतन लेखन और राजनीति में दी जान से जुटे रहे। मार्क्स के विचारों के बाद दुनिया की चिंतन पद्धति ही बदल गई।
दुनिया के क्रांतिकारी इतिहास में मार्क्स ने सबसे पहले दुनिया में हजारों साल से हो रहे शोषण, जुल्म और अन्याय के कारणों की खोज की। उन्होंने बताया कि दुनिया से शोषण जुल्म और मुनाफाखोरी का खात्मा किया जा सकता है इसके लिए पूंजीवादी शोषणकारी व्यवस्था को क्रांतिकारी संघर्षों से बदलना होगा और उसके स्थान पर समाजवादी व्यवस्था कायम करके किसानों मजदूरों की सरकार कायम करके जनता के कल्याणकारी काम करने पड़ेंगे।
मार्क्स और एंगेल्स के इन विचारों के बाद पूरी दुनिया का शोषक वर्ग, पूंजिपति वर्ग और सामंती वर्ग मार्क्स और एंगेल्स को अपना सबसे बड़ा शत्रु मानने लगा और उन्हें सारी जिंदगी तरह तरह से परेशान करता रहा, देश निकाले देता रहा, मगर मार्क्स ने दुनिया के क्रांतिकारी परिवर्तन का अपना रास्ता और चिंतन कभी नहीं छोड़ा। मार्क्स के विचारों को मोटे तौर पर निम्न प्रकार समझा जा सकता है।
1.मार्क्स ने बताया की वर्ग संघर्ष की उत्पत्ति के बाद, मनुष्य का अभी तक का इतिहास वर्ग संघर्षों का इतिहास रहा है, यानी यहां दो वर्ग हैं, एक लुटेरा वर्ग और दूसरा लुटने वाला वर्ग। एक मालिक वर्ग है, एक मजदूर वर्ग है। पहला वर्ग दूसरे को हमेशा ही लूटता आया है और यह लूट समाजवादी समाज की स्थापना तक जारी रहेगी।
2. मार्क्स ने आगे कहा कि सर्वहारा की सत्ता यानी कि मजदूर-वर्ग की सत्ता और सरकार ही अभी तक के शोषण,अन्याय, उत्पीड़न, भेदभाव और गैरबराबरी को दूर कर सकती है और पूंजीवाद का खात्मा करके, सत्ता और सरकार पर कब्जा किए बिना मजदूर वर्ग, किसान वर्ग का और आम जनता का कल्याण नहीं हो सकता।
3. उन्होंने आगे कहा कि पहले समाजवादी और उसके बाद, साम्यवादी व्यवस्था कायम करके ही मानवता का कल्याण हो सकता है, जिसमें न वर्ग रहेंगे और ना राज्य रहेगा, यानि जो वर्ग-विहीन और राज्य-विहीन व्यवस्था होगी, यानी इसमें सब का राज होग, ना कोई शासित होगा, ना कोई शासक होगा, ना कोई शोषण करने वाला होगा, ना किसी का शोषण होगा, ना किसी का उत्पीडन होगा, ना ही किसी के साथ अन्याय ही होगा और सब लोग काम करेंगे। किसी को काम करने के अधिकार से छूट नहीं मिलेगी, कोई भी निठल्ला नही रह पायेगा और जो काम करेगा, वही रोटी खाएगा। उन्होंने बताया कि अभी तक का समाज आदिम साम्यवाद, गुलाम समाज, सामंती समाज, पूंजीवाद समाज रहा है। इसके बाद समाजवादी व्यवस्था आयेगी और जब पूरी दुनिया में समाजवादी व्यवस्था कायम हो जायेगी तो उसके बाद साम्यवादी व्यवस्था वाला समाज होगा।
5. उन्होंने नारा दिया था कि “दुनिया भर के मजदूरों एक हो”, यानी कि जब तक दुनिया के पैमाने पर मजदूरों, किसानों और मेहनतकशों की सत्ता कायम न हो जाएगी, तब तक काम चलने वाला नहीं है। इसलिए मनुष्य को अंतरराष्ट्रीयतावादी होना चाहिए। उसकी सोच पूरी दुनिया के कल्याण की होनी चाहिए। मानव इतिहास में मार्क्स की यह बहुत बड़ी देन है।
6. मार्क्स ने आगे बताया कि धर्म एक अफीम है, यह एक नशा है जिसमें दबे कुचले लोगों को अपना दुख दुख दर्द भुलाने में मदद मिलती है, धर्म उन्हें दबाने और उनका शोषण करने में मदद करता है। मार्क्स ने कहा था कि “धर्म दबे कुचले लोगों के लिए राहत है, हृदयविहीन दुनिया के लोगों का हृदय है और आत्महीनों की आत्मा है, यह जनता की अफीम है।” मार्क्स की यह बात आज भी उतनी ही सही है जितनी कि यह कहे जाने के समय थी।
मार्क्स के विचार यानी मार्क्सवाद मानव मुक्ति के सूत्र हैं, मनुष्य के कल्याण का विज्ञान है। “कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो” जिसे मार्क्स और ऐंगेल्स में मिलकर लिखा था, दुनिया के कम्युनिस्टों की बाईबिल है। मार्क्सवाद, वैज्ञानिक समाजवाद की बात करता है। मार्क्स के द्वारा लिखी गई किताब “पूंजी” दुनिया भर में प्रसिद्ध है जो पूंजीवादी शोषण की पोल खोलती है। मार्क्स ने 1864 में “अंतरराष्ट्रीय मजदूर संघ” की स्थापना में अपनी महती भूमिका अदा की और इसमें योगदान दिया। कार्ल मार्क्स कहते हैं कि दुनिया में अभी तक आदिम साम्यवाद, दास, सामंती और पूंजीपति व्यवस्था रही हैं। इसका अगला पड़ाव समाजवाद है, यानी कि पूंजीवाद के बाद समाजवादी व्यवस्था स्थापित होगी, यही है वैज्ञानिक समाजवाद।
मार्क्स का जीवन भयानक आर्थिक कष्टों और संकटों में बीता था। उनकी 6 संतानों में तीन बच्चियां ही जीवित रही। उनके तीन बच्चे तो दवाई के अभाव में ही दम तोड़ गए थे, क्योंकि मार्क्स के पास उनके इलाज का पूरा पैसा जुटाना संभव नहीं था।
मार्क्सवाद की देन,,,,,,, उपरोक्त पांच सूत्र आज दुनिया को बेहतर बनाने की मशाल के रूप में काम कर रहे हैं। मार्क्स के विचारों के बाद, दुनिया में सबसे पहले रुस में समाजवादी व्यवस्था कायम की गई जिसमें काम के घंटे निर्धारित किए गए, साप्ताहिक अवकाश मिलना शुरू हुआ, रिटायरमेंट होने पर पेंशन का आगाज हुआ, बाल श्रम पर प्रतिबंध लगा, शिक्षा बच्चों का पहला हक बना। दुनिया में पहली बार पूंजीपत्तियों द्वारा मजदूरों और किसानों के शोषण और अन्याय का खात्मा किया गया।
यह बात अलग है कि आज पूंजीपतियों ने अपने अपने देशों में फिर से इकट्ठा होकर अपनी उस लूट को, उस हड़पने की नीति को और तेज कर दिया है और समाजवाद के बाद मिले तमाम हक अधिकारों को अधिकांश मजदूरों, किसानों और जनता से छीन लिया है और हमारे वर्तमान पूंजीपति शासक वर्ग और उसकी सरकार ने, आज हमारे देश को लगभग आज से 75 साल पहले वाली स्थिति में पहुंचा दिया है। मजदूरों ने लड़ लडकर, संघर्षों के माध्यम से और अनगिनत बलिदान करके जो कुछ हासिल किया था, आज पूंजीवादी निजाम ने उसे छीन लिया है और धीरे-धीरे छीन रहा है।
मगर यह समाजवाद ही है जो एक दिन पूंजीवाद के शासन का अंत करेगा, पूंजीवादी लूट को समाप्त करेगा और एक ऐसी दुनिया बन कर रहेगी, जिसमें सबको रोटी मिलेगी, सबको रोजी मिलेगी, सबको काम मिलेगा, सबको घर मिलेगा, सबको सुरक्षा मिलेगी, सबको स्वच्छ पानी और हवा मिलेगी, सबको मुफ्त शिक्षा और मुफ्त स्वास्थ्य की सुविधा मुहैया करायी जायेगी।
यह व्यवस्था मार्क्सवादी विचारों की दुनिया कायम होने पर ही हो सकता है। यहां पर आकर मार्क्स दुनिया के सबसे बड़े विचारक और दार्शनिक बनकर हमारे सामने आते हैं और वे अपने विचारों में आज भी जिंदा है। यह मार्क्स ही है जिन्होंने कहा था कि पूंजीवाद अपने आप में एक संकटग्रस्त व्यवस्था है जो मानव को शोषण, अन्याय, हिंसा, भेदभाव, असमानता, गैरबराबरी, हिंसा, युद्धों और असुरक्षा से मुक्ति नहीं दिला सकती।
आज हम देख रहे हैं कि जब तक मार्क्स के विचारों की दुनिया कायम नही की जाती और जब तक समाजवादी व्यवस्था की स्थापना नहीं की जाती, तब तक दुनिया में अमन, सुरक्षा, न्याय, समता, समानता, जनतंत्र, गणतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और वैश्विकभाईचारा कायम नही हो सकता है ।
मार्क्स दुनिया के सबसे बड़े दार्शनिक और विचारक बनकर हमारे सामने आते हैं जब वे समता, समानता, जनतंत्र और आदमी के साम्य की बात करते हैं। वे कहते हैं कि “इस दुनिया की अनेक दार्शनिकों और विचारकों ने व्याख्या की है, मगर असली सवाल इसे बदलने का है।” उन्होंने यह भी कहा कि “विचार से सामाजिक अस्तित्व नहीं बनता, बल्कि सामाजिक अस्तित्व से ही विचार बनते हैं।”
उन्होंने दर्शन की दरिद्रता की बात की है। उन्होंने दरिद्रता के समूल विनाश की बात की है। कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो में मार्क्स और ऐंगेल्स ने कहा है कि “ओ मजदूरों! तुम्हारे पैरों में जंजीरें बंधी हुई हैं, तुम्हारे पास अपनी जंजीरों के खोने के अलावा कुछ भी नही है! दुनिया के मजदूरों एक हों।”
मार्क्स का जीवन और दर्शन एक आदमी के बिना अधूरा ही रह जाता है और वे हैं दुनिया के सबसे बड़े दोस्त और दानवीर फ्रेड्रिक ऐंगेल्स, जो उनके सह लेखक और आजीवन दोस्त रहे हैं। मार्क्सवाद ऐंगेल्स के बिना पूरा नही हो सकता। हम कह सकते हैं कि यदि ऐंगेल्स न होते तो मार्क्सवाद भी न होता। ऐंगेल्स ने सदा ही मार्क्स के परिवार की आर्थिक और मनोवैज्ञानिक और लेखकीय मदद की। एंगेल्स की लगातार की जाती रही मदद के विषय में कार्ल मार्क्स ने कहा था कि “अगर एंगेल्स की निरंतर मदद ना होती तो मैं अपने काम को आगे जारी नहीं रख सकता था। मेरे काम को आगे बढ़ाने में सबसे ज्यादा मदद मेरे दोस्त और मेरे सबसे बडे सहयोगी फ्रेडरिक एंगेल्स की रही है।”
मार्क्स की पत्नी जैनी मार्क्स के बिना भी मार्क्स की दुनिया अधूरी ही कही जायेगी क्योंकि यह जैनी ही थीं जो मार्क्स की विपन्नता और दुर्दिनों में मार्क्स के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खडी रहीं, बिना दवाईयों के अपने तीन बच्चों दो लडकों और एक लडकी को मौत के मुंह में समाते देखती रहीं, मगर मार्क्स के मुक्तिकारी, क्रांतिकारी और ऐतिहासिक काम में रोडा न अटकाया और वे सारी जिंदगी मार्क्स की सहयोगी बनकर अपने परिवार को पालने पोसने में उनकी मदद करती रही।
मार्क्स के विचारों की सर्वव्यापी विराटता देखिये कि दुनिया का कोई कोना नही है, दुनिया का कोई देश नही है, जहां मार्क्स के विचारों ने दस्तक न दी हो। दुनिया का कौन सा शोषकवर्ग है जो पिछले डेढ सौ सालों में प्रभावित न हुआ हो और दुनिया का कौनसा देश है जहां कम्युनिस्ट पार्टियां, मजदूरों, किसानों, छात्रों, नौजवानों महिलाओं की, आदिवासियों की मुक्ति की लड़ाई न लडी जा रही हों।
यही मार्क्स की विराटता और महानता है कि मार्क्स आज भी दुनिया के सबसे बड़े क्रांतिकारी विचारक, दार्शनिक और लेखक बने हुए हैं। मार्क्स के साथ साथ हम ऐंगेल्स और लेनिन के क्रांतिकारी योगदान को नही भूल सकते हैं। लेनिन ने अपने क्रांतिकारी, लेखन, विचारों से रुस में समाजवादी क्रांति करके, सबसे पहले समाजवादी व्यवस्था कायम करके मार्क्स के विचारों और मार्क्स के दर्शन को आगे बढ़ाया।
यह महान लेनिन ही थे कि जिन्होंने 1917 में मार्क्स के विचारों को धरती पर उतारा और दुनिया में पहली समाजवादी क्रांति की और दुनिया में एक नए युग की यानी समाजवादी युग की शुरुआत की। लेनिन ने रुस में क्रांति के बाद कृषि की जमीन का, उत्पादन के साधनों का, विनिमय और वितरण के साधनों का राष्ट्रीयकरण और सामाजिकरण किया गया। सत्ता का प्रयोग किसान, मजदूर और मेहनतकशों के हितों को आगे बढ़ाने के लिए किया गया और दुनिया में सबसे पहले समाजवादी व्यवस्था में सबको शिक्षा, सबको काम, सबको सुरक्षा, सबको स्वास्थ्य, सबको घर, सबको रोटी और सबको तमाम बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध करायीं और हजारों साल पुराने शोषण, जुल्म, अन्याय, भेदभाव, गैर-बराबरी और जुल्मों सितम का खात्मा कर दिया गया।
इसने दिखाया कि कैसे सत्ता का इस्तेमाल एक आदमी के लिए नही, बल्कि पूरी जनता के कल्याण के लिए किया जा सकता है? यह रूसी क्रांति ही थी जिसके बाद दुनिया में एक के बाद एक,दुनिया के एक तिहाई देशों में क्रांतियां हुई और किसान-मजदूर शासन और सरकार में बैठे और उनका राज्य कायम हुआ और वहां उन्होंने जनता के कल्याण के लिए काम किया गया। यही मार्क्स की सबसे बड़ी विशेषता है कि उन्होंने जो कहा था, मजदूर और किसान वर्ग के लोगों ने, उसको धरती पर उतारा और दुनिया के कई देशों में समाजवादी क्रांतियां कीं।
कार्ल मार्क्स की प्रासंगिकता हमेशा बनी रहेगी और जब तक दुनिया में शोषण, अन्याय, भेदभाव, दमन, उत्पीड़न, असुरक्षा और जुल्मों सितम का अंत और खात्मा नहीं होगा, तब तक मार्क्स प्रासंगिक बने रहेंगे और वह हमेशा जिंदा रहेंगे। राज्य-विहीन और वर्ग-विहीन समाज यानी साम्यवाद की स्थापना होने के बाद भी दुनिया में संघर्ष जारी रहेगा। तब यह संघर्ष किसी के शोषण का नहीं होगा, बल्कि तब यह संघर्ष एक बेहतर इंसान, बेहतर समाज बनाने के लिए और एक बेहतर दुनिया का निर्माण करने के लिए होगा, यानी तब यह संघर्ष एक बेहतर दुनिया, एक बेहतर इंसान और एक बेहतर समाज बनाने के लिए हमेशा हमेशा जारी रहेगा।
कार्ल मार्क्स जैसे भारत से विशेष प्रेम करते थे। मार्क्स ने 1852 से लेकर 59 तक भारत के विषय में लगभग 40 लेख “न्यूयॉर्क डेली ट्रिब्यूनल” में प्रकाशित हुए थे। भारत के 1857 के संग्राम को मार्क्स ने दुनिया के “प्रथम स्वतंत्रता संग्राम” की उपाधि दी थी और भारत के उस स्वतंत्रता संग्राम पर एक बहुत ही प्रसिद्ध किताब लिखी थी, जिसे हम सबको पढ़ना चाहिए।
मार्क्स के इन विचारों का भारत के स्वतंत्रता संग्राम पर सबसे ज्यादा असर पड़ा था। मार्क्स के विचारों को 1917 की रूसी क्रांति में धरातल पर उतर गया और समाजवादी व्यवस्था और राज्य काम किया गया था। रूस की क्रांति का भारत के अधिकांश स्वतंत्रता सेनानियों राजगुरु, सुखदेव, भगत सिंह, मुजफ्फर अहमद, बिस्मिल, अशफ़ाकउल्ला खान, चंद्रशेखर आजाद, शिव वर्मा, सुभाष चंद्र बोस और नेहरू पर पड़ा था।
इन्हीं समाजवादी विचारों से प्रभावित होकर जयप्रकाश नारायण ने भारत में “संपूर्ण क्रांति” का नारा दिया था और भारत के अधिकांश साम्यवादी और समाजवादी दल कार्ल मार्क्स और रूसी क्रांति की समाजवादी उपलब्धियां से प्रभावित हुए थे और उन्हीं के अनुसार भारत में अपनी नीतियों को लागू करने की कोशिश की है। इस प्रकार मार्क्स के विचारों का भारत की स्वतंत्रता आंदोलन पर भी बहुत बड़ा प्रभाव रहा है। कार्ल मार्क्स के यही विचार और दर्शन दुनिया के साम्यवादी और समाजवादी आंदोलनों को आज भी प्रभावित कर रहे हैं और उनके मार्शल वाहक बने हुए हैं। कार्ल मार्क्स के इस क्रांतिकारी विराट व्यक्तित्व को शत-शत नमन वंदन और अभिनंदन।