सुसंस्कृति परिहार
चलो एक खतरा टल गया।साहब सुरक्षित हैं।जिस ख़तरे से साहिब उबरे और सी एम् को अपने ज़िंदा रहने का संदेश दिया उसे हल्के में नहीं लेना चाहिए।यह पूरी तरह पंजाब सरकार को बदनाम करने का एक चालाक वाकिया है जिस पर सुप्रीम कोर्ट के गुरुवार को होने जा रहे निर्णय से पता चलेगा। लेकिन 05 जनवरी को प्रधानमंत्री के पंजाब दौरे को लेकर जो कुछ देश में चल रहा उसको लेकर कुछ बुनियादी सवाल सामने हैं, इन पर सुको को भी संज्ञान लेना चाहिए।
PM की सुरक्षा की जिम्मेदारी राज्य सरकार की नहीं बल्कि एसपीजी की होती और SPG सुरक्षा प्राप्त हर व्यक्ति का रूट चार्ट SPG के निगरानी में होता हैऔर वो 48 घन्टे पूर्व में उन सारे जगहों को अपने अधीन कर लेते है,पूरे रास्ते मे SPG के लोग अपने हिसाब से सुरक्षा घेरा बनवाते हैं, राज्य प्रशासन भी उन्हें मातहत होता है।तो क्या आज SPG ने ऐसा नही किया ? और यदि नहीं किया तो क्यों नहीं किया गया और नहीं करने के कारण SPG के प्रमुख और गृहमंत्री इसके लिए जिम्मेदार हैं,उनसे इस्तीफा कब लिया जाएगा?
दूसरी बात यह कि फिरोजपुर में जहां किसानों ने रास्ता रोका वह क्षेत्र राज्य सरकार के पुलिस के अंतर्गत आता ही नही क्योंकि मोदी सरकार के “दखलदांजी नीति” के कारण हाल ही में बॉर्डर क्षेत्र के 50 किमी क्षेत्र को BSF के निगरानी में दे दिया गया है और वो रास्ता बॉर्डर के 10 किमी दूरी पर है तो क्या केंद्र सरकार मानती है कि BSF ने PM के सुरक्षा क्षेत्र की निगरानी सही से नहीं की ?और यदि ऐसा है तो BSF के मुखिया होने के नाते गृहमंत्री इस्तीफा देंगे ? वहां जो किसानों की भीड़ एकत्रित थी वह भाजपाई लोगों को सभा स्थल जाने से रोकने के लिए थी ना कि प्रधानमंत्री के काफिले को। इसीलिए उन्होंने ट्रालियों से मार्ग जाम किया था।
एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रधानमंत्री को हैलीकॉप्टर से 112 किलोमीटर की दूरी तय करनी थी जैसा कि उनके कार्यालय से 04जनवरी को जारी हुए दौरा कार्यक्रम में वर्णित है और उसी आधार पर सुरक्षा व्यवस्था एसपीजी, आईबी, इंटेलिजेंस तथा केंद्रीय गृह विभाग द्वारा की गई थी पंजाब शासन के साथ समन्वय करके, मगर उन्होंने अचानक से कार में जाने का फैसला आखिर किसके सलाह पर लिया और क्या 112 किमी सड़क को बिना पूर्व सूचना के सुरक्षाकर्मियों द्वारा घेर पाना सम्भव है? क्या अंतिम समय में इस बदलाव के जिम्मेदारों पर कार्यवाही होगी? यह तय है कि यह बदलाव राज्य प्रशासन ने नहीं बल्कि केंद्रीय प्रशासन या फिर स्वयं प्रधानमंत्री ने व्यक्तिगत स्तर पर लिया है।
यह केंद्र सरकार भली-भांति जानती है कि पंजाब में किसान मोदी सरकार के विरोध में सड़क पर उतरकर प्रदर्शन कर रहे हैं क्योंकि अभी भी उनकी कई मांगों पर केंद्र उदासीन है और वापस लिए तीनों कृषि कानूनों को पुनः लाने की बात केंद्रीय मंत्री, राज्यपाल और अनेक भाजपा नेता कर रहे जिससे किसानों और केंद्र सरकार में अविश्वास का माहौल है। पंजाब के कुछ किसान संगठनों ने पीएम के कार्यक्रम के विरोध की बात भी कही थी, ऐसे में गृहमंत्रालय को या पीएमओ को पीएम के कार्यक्रम को 112 किमी के रूट को यकायक सड़क मार्ग से करने की क्या आफत पड़ी?
BJP और केंद्रीय मंत्री जो सवाल पंजाब के चन्नी सरकार से कर रही है वो असल मे उन्हें गृहमंत्री से करना चाहिए क्योंकि PM के सुरक्षा में अगर चूक हुआ है तो उसके लिए SPG, BSF और IB जिम्मेदार है और ये तीनो गृहमंत्री के अंतर्गत आता है।
भटिंडा से फिरोजपुर प्रधानमंत्री को M I 17 हेलिकॉप्टर से जाना था जो हर मौसम और मानकों में पूर्ण सुरक्षित है फिर इसको छोड़ 112 किमी सड़क मार्ग से जाना समझ से परे है, जिसमे दो घंटे का समय लगना था, क्या यह पीएम के दौरे में रिजर्व पार्ट के रूप में था? क्योंकि खराब मौसम की जानकारी पीएमओ और गृहमंत्रालय तथा पंजाब प्रशासन को पहले से थी।
अब यहां से बड़ा प्रश्न उठता है कि क्या पीएम तीनो कृषि कानून वापसी को अपनी हार मान दिल से लगा लिए हैं? क्या उसी कड़ी में उन्होंने पंजाब और वहां के किसानों को नीचा दिखाने के लिए दांव चले हैं? सबको पता है कृषि कानूनों का विरोध पंजाब से ही शुरू हुआ था, उनके दिल्ली कूच और दिल्ली की सीमाओं में डट जाने से ही इस आंदोलन का राष्ट्रीय स्वरूप उभरा था। ऐसा है तो इसकी पुरजोर भ्रत्सना की जानी चाहिए।
यद्यपि केंद्र ने काले कानून वापसी की है पर साफ मन से नहीं, इसे देश के किसान भलीभांति जानते हैं इसलिए उनकी नाराजगी सरकार के प्रति कम नही है, जिसका भान स्वयं पीएम को चुनावी राज्यों यथा यूपी, पंजाब, उत्तराखंड के राजनैतिक हालातों से है। ऐसे में मोदी सरकार ने किसानों को ही बदनाम करने के प्लान पर काम किया, क्या किसानों ने विरोध प्रदर्शन में कोई हिंसा की? क्या उन्होंने कोई हिंसात्मक धमकी दी? पीएम का काफिला तो थोड़ी दूरी में पूर्ण सुरक्षित खड़ा था। ये बेहद घटिया राजनीति को परिलक्षित करता है। सुरक्षा व्यवस्था की सारी बाते स्पष्ट होने पर भी कि पीएम की सुरक्षा व्यवस्था केंद्र के अधीन है, उनकी सुरक्षा में कोई लापरवाही नही हुई, किसानों का प्रदर्शन उग्र या हिंसक नहीं था, पंजाब प्रशासन पूरी तरह से केंद्रीय एजेंसियों के साथ मुस्तैद था तो पीएम जैसे पद पर आसीन मोदीजी ने यह क्यों कहा कि अपने सीएम से कहना कि मैं भटिंडा से जीवित लौट रहा, क्या सीएम चन्नी ने उनकी हत्या का षड्यंत्र किया था? किस परिपेक्ष्य में पीएम ने यह बात कही, उन्हें स्प्ष्ट करना होगा। पंजाब सरकार को भी इसपर पीएम से स्पष्टीकरण लेना चाहिए ये साधारण वक्तव्य नही जो वो हर बार की तरह किनारा कर लें, ऐसा कहकर उन्होंने सीएम चन्नी, पंजाब सरकार, प्रशासन और किसानों तथा पंजाब की जनता को कटघरे में खड़ा किया है, जो समग्र पंजाब को कतई स्वीकार्य नही होना चाहिए।
दरअसल बात ये है कि किसानों के पर्याप्त विरोध और मौसम की अराजकता के कारण जब पी एम ने खाली कुर्सियां देखीं तो उनका मन डोल गया और उन्होंने इस रूट पर जाकर अपने को तथाकथित मौत के मुंह में डाला। जबकि वहां किसान और भाजपा के रोके गए कार्यकर्ता ही थे।उनका 56इंची सीना इतना कमज़ोर निकला कि वे किसानों का सामना किए बिना पलायन कर गए।जबकि उनकी सुरक्षा का तगड़ा इंतजाम था वे पूरी तरह अमेरिकन राष्ट्रपति की तरह चार स्तरीय सुरक्षा पहरे में थे।माना कि वे बार्डर के करीब थे जहां की सुरक्षा बी एस एफ संभाले थी।कुल मिलाकर इस ख़तरे को बताकर वे अपनी रियाया से दूर हो रहे हैं। पंजाब सरकार की गलती को नज़र अंदाज़ कर वे अपने गृहमंत्रालय की ओर ध्यान दें तो बेहतर होगा। जहां से शह और मात का खेला चलेगा रहा है। पंजाब के लोगों को इतना कमज़ोर ना समझें वे तो घर में घुसकर मारने में दक्ष हैं।