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आस्था को विज्ञान कक्ष से दूर रखें

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पुष्पा गुप्ता 

संचार क्रांति के इस युग में बच्चे आजकल सिलेबस की पुस्तकें कम पढते हैं गूगल सर्च ज्यादा करते हैं। ज्ञान की बाढ़ को जो रोकने की कोशिश करेगा उसका नामोनिशान मिटना निश्चित है।

       जो जीनोम मैपिंग तकनीक कानूनी परिस्थितियों में आपको अपने पेरेंट्स से डीएनए मैच कर उनकी जायदाद पर हक दिलाती है, अपराध के समय मौका-ऐ-वारदात पर मौजूद डीएनए का विश्लेषण कर अपराधियों को पकड़वाती है, वहीं आपके इवोल्यूशनरी ट्री का अध्ययन कर इतिहास में आपके वानर पूर्वजों से आपका संबंध स्थापित करती है। 

म्यूटेशन का अध्ययन करने वाली इवोल्यूशनरी बायोलॉजी की जो ब्रांच चिकित्सा के फील्ड में आपके लिए नयी खोज करती है, आपको बीमार करने वाले सूक्ष्मजीवियों की काट ढूंढती है, वही यह भी बताती है कि करोड़ों वर्षो के अंतराल में छोटे-छोटे बदलावों द्वारा किस तरह आप दूसरे जीवों से विकसित होकर मनुष्य बने हैं। 

       इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम का अध्ययन कर बिगबैंग को प्रमाणित करने वाली और एवोल्यूशन के कॉस्मिक स्केल पर इम्प्लिकेशन ढूंढने वाली कॉस्मोलॉजी की शाखा ने ही सेम तकनीक के आधार पर आज आपको रेडियोलोजी, MRI जैसी जीवन सुखमय बनाने वाली तकनीक उपलब्ध कराई हैं।

.     मैं बोलने को बोलती रह सकती हूँ। बातों का लब्बोलुआब सिर्फ़ इतना है कि कॉस्मोलॉजी, मॉलिक्यूलर बायोलॉजी, जेनेटिक्स, फॉसिल्स एंड एनाटोमी, एम्ब्रायोलॉजी, एंथ्रोपोलॉजी जैसी विज्ञान की जो दर्जनों शाखाएं निरंतर खोज करती हैं, आपका जीवन सुखमय बनाती हैं। वहीं शाखाएं एवोल्यूशन को भी प्रमाणित करती हैं। अब कोई कहे कि मैं विज्ञान की इन सब शाखाओं का फायदा लूंगा, इनकी सारी खोजें मानूंगा पर एवोल्यूशन को नकार दूंगा, तो यह भी विशुद्ध दोगलापन है। 

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एवोल्यूशन आज तक के मानव इतिहास का सबसे सफल और सबसे प्रमाणित सिद्धांत है जो मूलभूत कणों, ब्रह्मांड के विशाल ढांचों, जीवन विकास से लेकर आपके घर-मकान-दुकान से लेकर कैलक्यूलेटर, मोबाइल और सुपर कंप्यूटर तक पर लागू होता है। पर अफसोस, एवोल्यूशन का सिद्धांत जितना खूबसूरत और सफल है, समझने में उतना ही जटिल। दशकों का अध्ययन चाहिए। हर किसी के बस की बात नहीं है।

      ये सब मैं इसलिए कह रही हूँ क्योंकि सुनने में आया है कि वर्तमान पाठ्यक्रम से एवोल्यूशन के आधार यानी डार्विनवाद को निकाल दिया गया है। शिक्षा विभाग ने सफाई दी है कि ऐसा छात्रों के बोझ को कम करने के लिए टेम्पररी बेसिस पर किया गया है। शिक्षा विभाग के इस दावे पर शक इस कारण पैदा होता है क्योंकि हटाने को कोई भी चैप्टर हटाया जा सकता था, एवोल्यूशन ही क्यों? 

       क्या यह मात्र संयोग है कि कुछ वर्ष पूर्व शिक्षा विभाग संभाल रहे सत्यपाल सिंह जी ने बंदरों से मानवों की उत्पत्ति पर संदेह जताते हुए एवोल्यूशन को नकार दिया था।

   मैं सत्यपाल जी से सहानुभूति रखती हूँ क्योंकि जिस आदमी को यह तक न पता हो कि बंदरों से इंसानों की उत्पत्ति होना एवोल्यूशन की स्थापना कभी थी ही नहीं, ऐसे फेसबुक/व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी से शिक्षा प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के दावों पर हंसा ही जा सकता है। एवोल्यूशन के नकारने वालो में यह बात कॉमन है कि उनमें से किसी को भी एवोल्यूशन का E भी नहीं मालूम.

      बात चाहें आपको अच्छी लगे या बुरी, कई मोर्चों पर बेहतरीन काम करने के बावजूद वर्तमान नेतृत्व वैज्ञानिक दृष्टिकोण के संरक्षण के नाम पर फिसड्डी साबित हुआ है।

      पिछले 10 वर्षों में आमजन के मन में विज्ञान के प्रति उपहास का भाव विकसित किया गया है, आस्था को विज्ञान पर तरजीह दी गयी है और व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी को ज्ञान का केंद्र बना दिया गया है।

      लगातार ऐसी कोशिशें की जा रही हैं मॉडर्न साइंस को नकार कर आस्था आधारित पाठ्यक्रम तैयार किया जाए। हो सकता है कि इससे कुर्सी पर बैठे लोगों के कुछ हितसाधन होते हों पर मेरी दृष्टि में आस्था का साइंस क्लासरूम में घुसना किसी भी सभ्यता को बर्बाद करने की रेसिपी का प्रथम चरण होता है। 

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मैं उम्मीद करती हूँ कि देश में वैज्ञानिक चेतना से खिलवाड़ बन्द हो और शिक्षा विभाग जल्द इस चैप्टर को रिस्टोर कर दे और लोग आस्था और विज्ञान के फर्क को समझ सकें। 

      वैसे आस्था बुरी चीज नहीं। लोकतंत्र है, आप जो चाहें, मानने के लिए स्वतंत्र हैं। कोई नहीं रोक रहा। आप चाहते हैं कि आपकी आस्था, आपकी मान्यताएं, आपका इतिहास पढ़ाया जाए तो वो भी अच्छी बात है। अपनी संस्कृति और प्राचीन दर्शन का संरक्षण और पठन-पाठन होना ही चाहिए।

    इन विषयों को, अपनी आस्था को इतिहास के तौर पर पढ़ाइये, नैतिक शिक्षा, दर्शन या प्राचीन मनोविज्ञान के नाम पर पढ़ाइये, कोई दिक्कत नहीं है।

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