अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

झारखंड का खरसावां , जहां साल के पहले दिन की शुरुआत होती है आंसुओं से

Share

रवि सिन्हा

1 जनवरी को जब देश-दुनिया में लोग जश्न मनाते हैं, उस दिन खरसावां अपनों की कुर्बानी के लिए आंसू बहाता है। आज से 75 साल पहले खरसावां गोलीकांड में सैकड़ों बेगुनाह लोगों की जान चली गई थी। खरसावां गोली ने एक बार फिर से जालियांवाला बाग हत्याकांड की याद दिला दी थी। इस गोलीकांड में सैकड़ों लोगों की खून से खरसावां का हाट मैदान लाल हो गया था। हालांकि आज तक इस गोलीकांड में हुई मौत का सही आंकड़ा नहीं पता चल सका। बताया जाता है कि मारे गए लोगों के शवों को खरसावां हाट मैदान स्थित एक कुएं में भर कर मिट्टी से पाट दिया गया था। इस स्थल को अब शहीद बेदी और हाट मैदान शहीद पार्क से जाना जाता हैं।

खरसावां और सरायकेला रियासत का ओडिशा में विलय का विरोध

दरअसल 1947 में आजादी के बाद पूरा देश राज्यों के पुनर्गठन के दौर से गुजर रहा था। उस वक्त अनौपचारिक रूप से 14-15 दिसंबर को ही खरसावां और सरायकेला रियासतों का ओडिशा में विलय का समझौता हो चुका था। यह फैसला रियासतों के राज परिवार की सहमति से लिया गया। लेकिन आसपास के सैकड़ों गांव के लोग इस फैसले का विरोध कर रहे थे। 1 जनवरी 1948 को यह समझौता लागू होना था। उस वक्त के सबसे बड़े आदिवासी नेता जयपाल सिंह ने इस फैसले का विरोध किया। खरसावां और सरायकेला के ओडिशा में विलय के विरोध में जयपाल सिंह ने 1 जनवरी 1948 को ही खरसावां हाट मैदान में जनसभा का आह्वान किया। वे खुद इस जनसभा में नहीं पहुंचे, लेकिन बड़ी संख्या में कोल्हान समेत कई इलाकों के हजारों लोग पैदल चलकर खरसावां हाट मैदान पहुंच गए।

निहत्थे आदिवासियों, महिलाओं और बच्चों को बनाया निशाना

रैली को लेकर पर्याप्त संख्या में पुलिस बल और अर्द्धसैन्य बलों की तैनाती की गई थी। इसी दौरान जनसभा में पहुंचे लोग और सुरक्षा बलों के बीच किसी बात को लेकर विवाद हो गया। इसके बाद वहां पर गोलियां चलाई गई। इसमें पुलिस की गोलियों से सैकड़ों लोगों की जान चली गई। उस वक्त के प्रख्यात समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया ने खरसावां गोलीकांड की तुलना जलियांवाला बाग हत्याकांड से कर डाली।

सरायकेला-खरसावां का ओडिशा में विलय रुका

उन दिनों देश की राजनीति में बिहार के कई नेताओं का प्रभाव था। वे भी विलय नहीं चाहते थे। इस घटना के बाद सरायकेला-खरसावां का में विलय रोक दिया। दोनों रियासत क्षेत्र का विलय बिहार में कर दिया गया।

2 हजार लोगों के मारे जाने का जिक्र

खरसावां गोलीकांड में मारे गए लोगों की संख्या के बारे में आधिकारिक रूप से कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती है, लेकिन पूर्व सांसद और महाराजा पीके देव की किताब ‘मेमोयर ऑफ ए बायगॉन एरा’ में इस घटना में दो हजार लोगों के मारे जाने का जिक्र है। वहीं उस वक्त कोलकाता से प्रकाशित अंग्रेजी अखबार द स्टेट्समैन ने घटना के तीसरे दिन अपने 3 जनवरी के अंक में इस घटना से संबंधित एक खबर छापी, जिसका शीर्षक था- 35 आदिवासी किल्ड इन खरसावां’। इस अखबार ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि खरसावां का ओडिशा में विलय का विरोध कर रहे करीब 30 हजार आदिवासियों पर पुलिस ने फायरिंग की। इस गोलीकांड की जांच के लिए ट्रिब्यूनल का भी गठन किया गया, पर उसकी रिपोर्ट का क्या हुआ, इसकी जानकारी आज तक नहीं मिली। जबकि ओडिशा सरकार की ओर से आंकड़े में 32 और बिहार सरकार के आंकड़े में 48 लोगों की मौत बताई गई थी। लेकिन स्थानीय लोग मानते हैं कि करीब 2 हजार से ज्यादा लोगों की मौत खरसावां गोलीकांड में हुई।

ओडिशा सरकार की ओर से पुलिस भेजी गई

घटना के संबंध में स्थानीय लोग बताते है कि एक ओर खरसावां और सरायकेला के राजा के निर्णय के खिलाफ पूरा कोल्हान सुलग रहा था। दूसरी ओर सिंहभूम को ओडिशा में मिलाने के लिए वहां की सरकार प्रयासरत थी। ओडिशा सरकार ने कोल्हान को अपने राज्य में मिलाने के लिए शस्त्रबलों की तीन कंपनियों को पहले ही खरसावां पहुंचा दिया। लेकिन ओडिशा में विलय का विरोध कर रहे आदिवासी इन बातों से बेखबर थे और जनसभा को सफल बनाने के लिए खरसावां हाट मैदान में जमा हो गए। इस दौरान भीड़ में मौजूद लोगों ने ओडिशा के सीएम के खिलाफ नारेबाजी भी की। जबकि दूर-दूर से पारंपरिक हथियार और तीर-धनुष के साथ पहुंचे लोगों ने आजादी के गीत के साथ सभा की शुरुआत की। अचानक से पूरा माहौल बदल गया।

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें