अन्ना दुराई*
ना पूछिए तो ही बेहतर है
हाल मेरे कारोबार का
मोहब्बत की दुकान चलाते हैं
नफ़रतों के बाज़ार में
इन दिनों अपनी दुकान तो बंद सी प्रतीत होती है क्योंकि नफ़रत का बाज़ार गर्म सा है भाईचारे का भाव खो सा गया है। महात्मा गांधी ने कहा था, बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो और बुरा मत बोलो लेकिन मेरे यानी एक पत्रकार के परिप्रेक्ष्य में होना यह चाहिए कि बुरा देखो, बुरा सुनो और बुराइयों के ख़िलाफ़ बुरा से बुरा लिखो ताकि व्यवस्थाओं में सुधार आ सके। आज भगवान महावीर की जयंती है। वही महावीर जिन्होंने कभी जियो और जीने दो का सिद्धांत दिया था। अहिंसा अपरिगृह और अनेकान्त उनके मूल मंत्र थे। जियो और जीने दो को परिभाषित किया जाए तो इसका अर्थ है, आप भी जीएँ और दूसरों को भी जीने दें। राजनीति की भाषा में हम इसे धर्मनिरपेक्षता से जोड़ सकते हैं। सर्व धर्म समभाव इसके मूल में हैं लेकिन सही मायने में हम भगवान महावीर के इस नारे के कितने क़रीब हैं ? ये सोचने का विषय हैं। आज आप और हममें से कई ऐसी बातों को तव्वजों देते हैं जो इंसानियत के खिलाफ हो। भाईचारे के विपरीत आचरण करने का समर्थन हम करने लगते हैं। नफ़रत का तूफ़ान खड़ा करने में अग्रसर हो जाते हैं। कई लोग तो नादानी में ऐसा करते हैं। वे स्लीपर सेल बनकर ऐसी बातों को बढ़ावा देने लगते हैं जो सौहार्द्र के वातावरण को धूमिल करती है। कई मर्तबा ऐसा करने वालों को यह तक पता नहीं होता कि हम जो अनजाने में कर रहे हैं उसके परिणाम कितने विपरीत होंगे। क्या हम भगवान की कही बातों को मानते हैं ? हां तो फिर हम क्यों नहीं व्यापक दृष्टिकोण रखते हैं। भगवान महावीर ने ही हमें अनेकांत का सिद्धांत दिया।इसका अर्थ है, कोई भी पूर्ण सत्य नहीं हो सकता है। तुम भी सही हो सकते हो या मैं भी सही हो सकता हूँ। राजनीति की भाषा में हम इसे लोकतंत्र से परिभाषित कर सकते हैं लेकिन यह बात भी सर्वथा सत्य है कि लोकतंत्र की पायदान पर आज विश्व में हम पिछड़ते जा रहे हैं। इसी तरह भगवान महावीर ने अपरिगृह का सिद्धांत दिया। इसका अर्थ है कोई भी संचय न करें। राजनीति की भाषा में हम इसे समानता से जोड़ सकते हैं अर्थात यहाँ रहने वाले सभी नागरिक समान हों। कोई बड़ा या छोटा नहीं, सभी बराबर हों लेकिन आर्थिक दृष्टि से देखें तो आज एक और लाखों का अंतर नज़र आता है। भगवान महावीर ने हमें अहिंसा का पाठ पढ़ाया है जो सर्वव्यापी है। संपूर्ण विश्व में शांति का वातावरण निर्मित हो, अहिंसक समाज बने लेकिन ऐसा होता नहीं। हममें से कई उद्वेलित होकर हिंसा को बढ़ावा देने वाली बातों में मन, विचार और काया से सहभागी बन जाते हैं। समझ से हो या नासमझी से, हमें बुराईयों का त्याग करना चाहिए। सम्पूर्ण विश्व में, भारत भर में अनेकता में एकता और भाईचारे का वातावरण निर्मित हो। सभी एक दूसरे की परवाह करें। भगवान महावीर के सिद्धान्तों का वास्तविक धरातल पर अनुसरण करें तो एक अलग ही मंजर नज़र आएगा जहाँ सिर्फ़ होगी सुख शांति और ख़ुशहाली।
पढ़ते हैं मज़े लेकर
फसादों कि वह ख़बरें,
घर अपने जिन्होंने
कभी जलते नहीं देखें….