अंकित यादव
(1.) पहली बार थानेदार को हिदायत दी गयी कि किसी गरीब को थाने आने पर उसे सम्मान पूर्वक बैठने के लिए कहें।पहली बार वंचित तबकों का रपट लिखा जाने लगा।थानेदार मजूबरन fir लिखना शुरू कर दिया।
(2. ) पहली दफा उन जातिवादी अध्यापकों को जबरन गरीब मुशहर ,चमार ,डोम ,धोबी के बच्चों को अपनी कक्षा में बैठाना पड़ा।
(3.) उन सामन्ती जमींदार ,ठेकेदार को अब मालगुजारी वसूलना बंद हो गया। मजदूरों को उनकी मजदूरी के उपज में मनमर्जी मेहनत से कम पैसा देना बंद हो गया।मजदूरों को मारने -पीटने का काम बंद होने लगा।आज भी बिहार में एक जाति विशेष के पास आपको 1200 बीघा से भी ज्यादा जमीन मिल जाएगा और एक जाति के पास 10 धुर भी नहीं ,यहीं स्थिति लगभग -लगभग सभी पंचायत में मौजूद हैं।
(4) .पहली बार उन प्रोफेसर ,कुलपति से कोई दलित ,ओबीसी और गरीब दल के बच्चा उनसे जिरह करने लगा ,उनके मनुस्मृति ,ज्योतिषी पर प्रश्न उठाने लगा ,उनके साथ डिबेट करने लगा ,विमर्श खड़ा करने लगा।
(5) पहली बार मनुवादियों के चलने पर सलाम पेश होना बंद हो गया ,उनके चलने पर रास्ता खाली करने जैसी बदचलन प्रथा बंद होने लगी। आपको यश व कीर्ति पाने के लिए कोई अनोखा कृत्य करना पड़ता हैं, संघर्ष करना पड़ता हैं, तब जाकर लाट साहेब बनते हैं।लेकिन जातिवाद ऐसी पद्धति हैं -जिनमें बिना संघर्ष के ही यश हैं ,खिदमत में सलाम हैं ,रौब हैं ,धाक हैं ,अधिकार हैं- किसी को मारने पीटने का ,धमका कर इज्जत पाने का। लेकिन लालू जी के तथाकथित जंगल राज में इज्जत पाने की स्वरूप का यह स्थिति जाति के बदले कार्य में व संघर्ष में परिणीत होने लगा।
(6).पहली बार अमीर धनसेठों के राजधानी मोहल्ले यानी बेली रोड,अशोक राजपथ,कदमकुआं में रिक्शा वाले, ठेला वाले, दैनिक मजदूरी करने वालों के लिए तीन सौ से भी अधिक रैन बसेरे बसाय गए।
(7.)ओह !कितना बड़ा जंगल राज था!कि पटना क्लब की 60 फीसदी जगहों में डोम ,चमार ,मुशहर ,धोबी ,पासी जाति के लोग इसमें शादी आयोजित करने लगें और इन्हें खुलेआम ,ताड़ी पीने ,सूअर खाने की आजादी दी गयी क्योंकि उनका कसूर गरीब वर्ग से संबंध होना था।
(8).पहली बार इसी तथाकथित जंगलराज में 600 से अधिक ब्लॉक में 60,000 से भी अधिक गरीबों के लिए आवास का निर्माण किया गया।
(9.)लालू जी ने इतना बड़ा अन्याय किया कि पटना के राजाबाजार ,शेखपुरा ,राजेन्द्र नगर ,कंकड़बाग जैसे पेरिस में दलितों के लिए बहुमंजिला इमारत बनवा दिया ताकि यहीं रहकर वो अपना गुजर बसर देख सकें।
(10).पहली दफ़ा इसी तथाकथित जंगलराज में 300 से भी अधिक विद्यालय मुशहर जाति के लिए खोला गया ,150 से अधिक चरवाहा विद्यालय का निर्माण किया गया ताकि गरीब -मजलूम के बच्चें भी अपने मवेशी चराने के साथ-साथ पढ़ाई कर सकें और उसमें भी 100 रु प्रतिमाह भत्ता अतिरिक्त।
(11) इसी जंगलराज में पहली बार बहुजन वर्ग के सुंदर स्त्रियों की किडनैपिंग होना बंद हो गया ,उसे जबरन उठाने पर fir दर्ज होने लगी ,किसी महिला के साथ अभद्रता पर पूरा बहुजन एकसाथ विरोध करना शुरू कर दिया ।दलितों की हत्या पर गिरफ्तारी होने लगी।
●इसी जंगल राज में पहली दफा कोई मुख्यमंत्री चपरासी आवास से मोनेटरिंग करने लगा जो कि घोषित रामराज्य में सोफा-गद्दी से होता था।आपको ऊंची उड़ान के लिए इन्हीं 15 सालों में भारत में सबसे अधिक 7 यूनिवर्सिटी खोली गयी ताकि आप पढ़ भी सको और अपने अधिकारों के लिए लड़ाई भी लड़ सको।बिहार जैसे सामन्ती राज्य में पहली दफ़ा इसी जगल राज में किसी महिला को मुख्यमंत्री बनने का नसीब मय्यसर हो सका।महिला कर्मी को माहवारी के दौरान उन्हें 2 दिन का अतिरिक्त छुट्टी की व्यवस्था की गयी।
● तथाकथित इसी जंगल राज के 15 सालों में कोई साम्प्रदायिक दंगा नहीं होने दिया गया।आडवाणी जैसे उस वक्त के दंगाई को उड़नखटोला से इज्जतपूर्वक जेल भेजा गया।जितना एक प्रधानमंत्री के जान की कीमत है उतना ही हर एक इंसान के जान की कीमत हैं ,जब इंसान ही नहीं रहेगा तो मस्जिद में इबादत कौन करेगा,मंदिर में घंटी कौन बजायेगा?…..(लालू जी के भाषण का एक अंश)
अभी के इस घोषित रामराज्य में दंगाई व जातिवादी का ही वर्चस्व हैं ,उन्हीं का बोलबाला हैं।
…आप लालू से स्नेह या नफ़रत कर सकते हैं, लेकिन उनकी अहमियत को इंकार नहीं कर सकते ,उनकी राजनीतिक कुशलता को बेदखल नहीं कर सकते।यह लालू का ही प्रभाव था कि उस वक्त NDA समर्थित अटल सरकार में केवल बिहार से 19 केंद्रीय मंत्री बनाये गए।यह लालू के राजनीतिक बिसात का ही परिणाम हैं कि पूरे भारत में अनवरत 30 सालों से एक बड़े सूबे के मुख्यमंत्री के पद पर एक पिछड़ा वर्ग का ही बेटा काबिज है। ये उसी युग का प्रभाव है कि अभी आपको बिहार के सरकारी दफ्तरों में एक रूप ,एक जातीय टाइटल में अब दूसरें जाति का मिश्रण देखने को मिलता हैं।पहली दफा बहुजन वर्ग से कोई थानेदार ,कोई प्राचार्य ,कोई दरोगा,कोई बैंक कर्मी इसी युग में बना।
…भारत में बहुत कम ही ऐसे नेता हैं जिन्होंने अपनी रीढ़ की हड्डी को नीलाम नहीं होने दिया।लालू यादव इस कतार के सबसे मुख्य में हैं। उम्र के इस अधेड़ पड़ाव में कौन ऐसा नेता होगा जो अथक ,बिना झुके ,बिना डरे ,बिना मोह के, किसी नौजवान से भी अधिक अपनी आवाजों में बुलन्दी की प्रबलता लिए कह सकेगा कि देख हम – समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता के सबसे बड़े हितैषी हैं। कौन ऐसा बुजुर्ग होगा जो अपनी धमनी को हर एक क़तरे में उबाल लिए कह सकेगा कि हम तुम्हारे धमकी व तानाशाही के आगे झुकेंगे नहीं? आज भी इस तानाशाही हुकूमत को सबसे तेज पटखनी लालू जी ने ही दिया हैं। जो लोकतंत्र का हिमायती होगा ,जिनकी नजरों में सबसे प्रिय ग्रंथ संविधान होगा ,उसके सबसे प्रिय नेता लालू जरूर होंगे।
..कितना बड़ा अचरज हैं ,जो इंसान चारा घोटाला का केस खोलवाया उसे ही जेल की सलाखों में डाला गया लगातार उन्हें CBI के द्वारा परेशान किया जा रहा हैं ,उनके स्वास्थ्य को देखते हुए भी कोई राहत नहीं मिल रही है।यह जरूर मनुवादी साजिश के गिरफ्त का एक हिस्सा हैं। एक ओर इस मनुवादी जज को सिर्फ लालू ही दिखाई देता हैं और दूसरी ओर नीरव-मेहुल ,जगन्नाथ मिश्रा ,अडानी जैसे लोगों में दूर -दूर तक कुछ नहीं दिखता।
…ओ घोंघा बेचने वाले ,वो मूस पकड़ने वाले ,वो तारी बेचने वाले ,वो भैंस चराने वाले ,पढ़ना लिखना सीखों ,पढ़ना लिखना सीखों… (लालू जी के भाषण का अंश)