शशिकांत गुप्ते
आज सीतारामजी शब्द कोष लेकर बैठें हैं। मैने पूछा आप तो स्वयं ही लेखक है। वह भी व्यंग्य के लेखक। व्यंग्य का लेखक शब्दों का कचूमर निकाल देता है।
व्यंग्य सिर्फ और सिर्फ शब्दों की ही तो मार होती है।
व्यंग्य के शब्दों की मार समाज,
राजनैतिक सांस्कृतिक आर्थिक,
शिक्षा, चिकित्सा,और धार्मिक हर क्षेत्र पर होती है।
व्यंग्य तो हर क्षेत्र में परिवर्तन का सशक्त माध्यम है।
सीतारामजी ने कहा मैं शब्द कोष को इसीलिए खंगाल रहा हूं।
मैं(सीतारामजी) शब्द कोष में महंगाई, बेरोजगारी,भुखमरी कुपोषण,हिंसा और Hate Speech हेट स्पीच, इन शब्दों को बदलने के लिए,पर्यायवाची शब्द ढूंढ रहा हूं।
मैने कौतूहलवश पूछा उक्त शब्दों के पर्यायवाची शब्द ढूंढने का कोई विशेष कारण है?
सीतारामजी ने कहा दलबदलू राजनीति तक तो ठीक था,अब नाम बदलो राजनीति का प्रचलन हो गया है।
नाम बदलने का वाक्य में प्रयोग बहुत से लोग करतें हैं। नाम बदल दूंगा इस वाक्य को कोई किसी मुद्दे या विषय पर चुनौती देने के लिए करता है। एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से चुनौती पूर्ण लहजे में बोलता है,यदि मेरा फलां कथन झूठ साबित हो तो मैं अपना नाम बदल दूंगा?
इनदिनों सियासत में आमजन की मूलभूत समस्याओं से ध्यान हटाने के लिए नाम बदलों अभियान चलाया जा रहा है?
बहुत से सार्वजनिक स्थानों,
उद्यानों, और शहरों के नाम बदले जा रहे हैं।
नई व्यवस्था तो दावा करती है कि, यह व्यवस्था एकदम अलग व्यवस्था है। अलग मतलब
एको अहं, द्वितीयो नास्ति, न भूतो न भविष्यति! अर्थात् एक मैं ही हूं दूसरा सब मिथ्या है। न मेरे जैसा कभी कोई आया न आ सकेगा।
देश के हर एक नागरिक के लिए अच्छे दिन लाने वाली व्यवस्था। देश के कालेधन को जड़मूल से नष्ट करने वाली व्यवस्था। करोड़ों बेरोजगारों को रोजगार देने वाली व्यवस्था। धरातल पर ढाई दिन चले अढ़ाई कोस कहावत को चरितार्थ करती व्यवस्था साबित हुई।
व्यवस्था को एक बात नहीं भूलना चाहिए कि,मेंढक लोहे के खंबे पर चढ़ सकता है।
कोशिश करने वालों की हार नही होती है।
बहरहाल एक न एक दिन मै बेरोजगारी, महंगाई,भुखमरी,और कुपोषण के पर्यायवाची शब्द ढूंढ ही लूंगा।
आमजन की समस्याएं भलेही हल ना हो लेकिन नाम बदलने की प्रक्रिया और उसके समारोह के लिए दिव्यभव्य आयोजन की चकाचौंध देखकर आमजन अपनी समस्याओं को भूल जाएगा,यह भ्रम कोई कम उपलब्धि है?
आजतक कोई भी सत्ता मूलभूत समस्याओं को ताक में रखकर नाम बदल अभियान में सफ़ल हुई है?
इस संदर्भ में शायरा मोहतरमा परवीन शाकिर का यह शेर मौजू है।
मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाऊँगी
वो झूट बोलेगा और ला-जवाब कर देगा
वर्तमान हालातों पर प्रख्यात शायर वसीम बरेलवी का यह शेर एकदम सटीक है।
झूठ वाले कहीं से कहीं बढ़ गए
और मैं था कि सच बोलता रह गया
अंत में एक व्यंग्यकार होने के नाते यही कहूंगा।
सच कहना अगर बगावत है
तो समझो हम भी बागी हैं
शशिकांत गुप्ते इंदौर