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जिन लोगों ने कोविशील्ड वैक्सीन लगवाई उनके माथे पर चिंता की लकीरें

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मुस्ताअली बोहरा

आखिरकार, जो शक था वो कमोबेश सहीं साबित हुआ। कोरोनाकाल और वैक्सीनेशन के बाद से अचानक बढ़ते हार्ट अटैक के मामलों ने पहले ही शक की सुई वैक्सीन के साईड इफेक्ट की ओर घुमा दी थी। और अब ब्रिटेन की फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका ने ब्रिटिश अदालत के सामने माना है कि उसकी कोविड-19 वैक्सीन कुछ दुर्लभ मामलों में रक्त के थक्के का कारण बन सकती है। प्लेटलेट काउंट भी इससे घट सकता है।

मालूम हो कि एस्ट्राजेनेका ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर इस वैक्सीन को डेवलप किया था। वहीं भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ने इसे बनाया था। एस्ट्राजेनेका की कोविड-19 वैक्सीन, जिसे भारत में कोविशील्ड और वैक्सजेवरिया के नाम से जाना जाता है। भारत में कोवैक्सिन और कोविशील्ड दो टीके प्रमुख तौर पर लगे थे। अब, लोकसभा चुनाव के बीच हुए इस खुलासे ने भारतीय जनता पार्टी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। वो इसलिए भी क्योंकि कोरोना काल में वैक्सीनेशन को दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान बताकर प्रचारित किया गया था।
कोरोना वैक्सीन कोविशील्ड के साइड इफेक्ट को लेकर एस्ट्राजेनिका की स्वीकारोक्ति को लेकर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय सतर्क हो गया है। वहीं इस मामले में सियासत शुरू हो गई है। लोस चुनाव से पहले कोरोना वैक्सीन को प्रचारित करते हुए भाजपा नेता वोट देने की अपील कर रहे थे और अब इन्हीं नेताओं को सफाई देनी पड़ रही है। विपक्ष इस मामले में मुखर हो गया है। पूर्व मुख्यमंत्री और सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने कहा है कि कोरोना वैक्सीन को लेकर जो बात उन्होंने पहले कही थी वही एक्सपर्ट लोगों ने कही और अब अदालत ने भी कह दिया। उन्होंने भाजपा पर कटाक्ष करते हुए कहा कि भाजपा ने आपदा में अवसर तलाशते हुए वैक्सीन बनाने वाली कंपनी से भी चंदा वसूल लिया।
दूसरी तरफ, कोविशील्ड के इस तथ्य के सामने आने के बाद कोरोना वैक्सीन के साइड इफेक्ट की दो स्तरों पर निगरानी की जा रही है, लेकिन इनमें खून के थक्के जमने वाली दुर्लभ बीमारी थ्रोंबोसिस विथ थ्रोंबोसाइटोपेनिया सिंड्रोम (टीटीएस) के गंभीर मामले सामने नहीं आए हैं। गौरतलब है कि टीटीएस थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम एक ऐसी बीमारी है, जिसमें प्लेटलेट कम होने लगता है साथ ही इसका असर मरीज के दिमाग या अन्य अंगों पड़ने लगता है, जिससे की ब्लड क्लॉटिंग होने लगती है। बता दें कि यह एक दुर्लभ बीमारी है, जो वैक्सीन के बाद और अन्य कारणों से भी हो सकती है। राष्ट्रीय आईएमए सीओवीआईडी टास्क फोर्स के सह-अध्यक्ष डॉ राजीव जयदेवन का कहना है कि कोवीशील्ड ने कोरोना वायरस से होने वाली कई मौतों को रोका है लेकिन वैक्सीन लेने के बाद कई लोगों ने इसके साइड इफेक्ट्स की भी शिकायतें की थी।
सीरम इंस्टीट्यूट द्वारा बनाए गए कोविशील्ड टीका लोगों को लगाया गया था। दरअसल कोविशील्ड के साइड इफेक्ट को लेकर अदालत में चल रहे केस के जवाब में इसे विकसित करने वाली कंपनी एस्ट्राजेनेका ने स्वीकार किया कि कुछ मामलों में टीटीएस के लक्षण दिखे हंै। वहीं, भारत में कोरोना वैक्सीन के साइड इफेक्ट की निगरानी दो स्तरों पर की जा रही है। एक तरफ आइसीएमआर के विशेषज्ञों की टीम इसका अध्ययन करती है, तो दूसरी ओर चिकित्सा सेवाओं का महानिदेशालय (डीजीएचएस) भी जमीनी स्तर पर इसकी निगरानी करता है। डीजीएचएस की देश भर में शाखाएं हैं। आइसीएमआर और डीजीएचएस दोनों में से किसी ने भी अभी तक किसी भी कोरोना वैक्सीन के गंभीर साइड इफेक्ट के गंभीर मामलों की रिपोर्ट नहीं दी है।
एस्ट्राजेनेका ने जो दस्तावेज कोर्ट मंे पेश किए हैं उनके अनुसार, वैक्सीन के संभावित साइड इफेक्ट के कारण थ्रोम्बोसिस विद थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम नामक एक रेयर बीमारी हो सकती है। इस बीमारी में खून का थक्का जम जाता है। कंपनी ने यह भी स्पष्ट किया है कि यह रेयर रोग उन लोगों में भी हो सकता है जिन्हें टीका नहीं लगाया गया है। एस्ट्राजेनेका की कोविशील्ड वैक्सीन, जिसे ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के सहयोग से विकसित किया गया था, भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा बनाई गई है। जनवरी 2021 से अप्रैल 2024 तक, कोविन पोर्टल के आंकड़ों के अनुसार भारत दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान चला चुका है, जिसमें 1,749,417,978 से अधिक कोविशील्ड वैक्सीन की खुराकें दी जा चुकी हैं। कोरोना काल में कभी थाली बजवाई गई तो कभी ताली तो कभी रात में लाईटें बंद कर मोबाइल की लाईट जलवाई गई। इसके अलावा वैक्सीनेशन को भी खूब प्रचारित किया गया। हिन्दुस्तान में वैक्सीनेशन के कुछ महीनों बाद ही लोगों में गंभीर बीमारी, हार्ट अटैक आदि के लक्षण तेजी से सामने आने लगे थे। कभी किसी की जिम में एक्सरसाईज करते वक्त, तो कभी शादी में डांस करते हुए या कभी खाना खाते-खाते ही मौतों की कई खबरे सामने आ चुकी हैं। मरने वालों में युवाओं की तादाद भी अच्छी खासी रही है। खास बात ये रही कि इन मौतों को सरकारी तौर पर वैक्सीन के साईड इफेक्ट से नहीं जोड़ा गया बल्कि मौत के पीछे कोई और वजह ही बताई गई। सरकारी तौर पर कभी भी या अभी तक ये नहीं स्वीकार किया गया है कि ये मौते वैक्सीन के साईड इफेक्ट से हुईं हैं।
हाल ही में ब्रिटिश अदालत में एस्ट्राजेनेका को एक सामूहिक मुकदमे का सामना करना पड़ रहा है। यह पहली बार नहीं है जब ब्रिटेन की दिग्गज फार्मास्युटिकल कंपनी एस्ट्राजेनेका ने कोविड वैक्सीन से जुड़े दुष्प्रभावों की बात स्वीकार की है। ब्रिटेन की एक अदालत में कंपनी के खिलाफ 100 मिलियन पाउंड का मुकदमा चल रहा है। इन मुकदमों में कहा गया है कि उनके टीके के कारण लोगों को गंभीर चोटें आई हैं और मौतें हुई हैं। कई परिवारों ने अदालत में शिकायत दर्ज कराई है कि एस्ट्राजेनेका वैक्सीन के साइड इफेक्ट वे झेल रहे हैं। यह मुकदमा पिछले साल दो बच्चों के पिता जेमी स्कॉट ने दायर किया था, जिन्हें अप्रैल 2021 में एस्ट्राजेनेका वैक्सीन लगने के बाद थ्रोम्बोसिस विद थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम (टीटीएस) से पर्मानेंट ब्रेन इंजरी हो गई थी। स्कॉट का मामला, कई अन्य लोगों के साथ, टीटीएस के गंभीर प्रभावों को उजागर करता है, जिसके कारण रक्त के थक्के बनते हैं और प्लेटलेट की संख्या कम हो जाती है। अदालत में पेश किए गए कानूनी दस्तावेज में कंपनी ने स्वीकार करते हुए माना कि एजेड वैक्सीन, बहुत ही रेयर केस में, टीटीएस का कारण बन सकती है। वहीं, मुकदमा दायर करने वाले परिवार का कहना है कि कंपनी उनसे और इस वैक्सीन से प्रभावित होने अन्य लोगों से माफी मांगे और उन्हें मुआवजा दे।
ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका (कोविशील्ड) और जॉनसन एंड जॉनसन (जेनसेन) के टीकों से खून के थक्के जमने की रिपोर्टें मिलने के बाद कई देशों ने इसे युवाओं को न देने का फैसला किया। अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेटर और रोग नियंत्रण और प्रतिरोधक केंद्र ने जॉनसन एंड जॉनसन के टीके पर रोक लगा दी थी। दरअसल, 18 से 48 साल की उम्र की कुछेक महिलाओं के शरीर में टीके के बाद खून क थक्के जमने का मामले सामने आए थे। ब्रिटेन में भी कोविशील्ड के टीके को लेकर ऐसी ही आशंकाएं जताई गईं थीं। डेनमार्क ने तो एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन कोविशील्ड पर पूरी तरह रोक लगा दी। इसके अलावा जॉनसन एंड जॉनसन की वैक्सीन जेनसेन और इससे कथित तौर पर साईड इफेक्ट की भी जाँच की। अमेरिका में भी सुरक्षा जाँच पूरी होने तक इन दोनों टीकों और इनके उपयोग को रोक दिया गया था। जॉनसन एंड जॉनसन के टीके के उपयोग पर दक्षिण अफ्रीका में भी पाबंदी लगा दी गई थी। एस्ट्राजेनेका के बारे में पहले ही बताया गया था कि यह वहां के वैरिएंट पर ज्यादा असरदार नहीं है। दक्षिण अफ्रीका में कोविशील्ड की अधिकांश खुराक बच गई थी।
ये भी दिलचस्प बात है कि जिन देशों ने कोविशील्ड वैक्सीन की करोड़ों खुराक खरीदी थी, साईड इफेक्ट सामने आने के बाद उन देशों ने इसे लोगों को लगाने से रोक दिया। सवाल ये था कि इन बची हुई खुराकों का क्या किया जाए तो ऐसे देशों ने दूसरे गरीब देशों को ये खुराकें बेचने अथवा दान देने का तिकड़म भिड़ाया। चेक गणराज्य, एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया और एक दर्जन से ज्यादा अफ्रीकी देशों में कोविशील्ड की खुराकें बेच दी गईं। कई छोटे देशों में तो इन खुराकों को दान में दे दिया गया, इससे इन देशों को पीठ थपथपवाने का मौका भी मिल गया और अपने लोगों को खुराक के साईड इफेक्ट से बचा लिया। बतौर उदाहरण, ब्रिटेन ने 45 करोड़ खुराक खरीदी थी जिसमें से अधिकांश बच गईं। अब इन खुराकों को गरीब देशों को दान करने की बात ब्रिटेन ने कही है। चूंकि, एस्ट्राजेनेका और जॉनसन एंड जॉनसन दोनों टीकों को फ्रिज के तापमान पर ही रखा जा सकता है। इसलिए इन्हें आस पास के देशों में भेजने में कोई परेशानी भी नहीं होगी। यूरोप के रोग रोकथाम और नियंत्रक केंद्रों (ईसीडीपी) के आंकड़ों के अनुसार डेनमार्क को एस्ट्राजेनेका की दी गई करीब 2 लाख खुराक में से 50 हजार से ज्यादा खुराक अभी भी बची हुई है। अमेरिका के रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्रों के आंकड़ों के अनुसार अलबामा, अलास्का, वरमोंट और उत्तरी कैरोलिना, पश्चिमी वर्जीनिया में 25 से 35 फीसदी तक टीके बचे हुए हैं। डब्ल्यूएचओ की निगरानी में चल रही कोवैक्स नाम की अंतरराष्ट्रीय योजना के तहत दुनिया भर में वैक्सीन उपलब्ध कराई जानी है। ग्लोबल एलायंस फॉर वैक्सीन्स ऐंड इम्युनाइजेशन (जीएवीआई) और कोएलिशन फॉर एपिडेमिक प्रिपेयर्डनेस इनोवेशंस (सीईपीआई) नामक संस्थाएं भी शामिल हैं। कोवैक्स का लक्ष्य है कि इस साल के आखिर तक दो सौ करोड़ से ज्यादा वैक्सीन करीब दो सैकड़ा देशों को उपलब्ध कराई जाए। माना जा रहा है कि जो वैक्सीन बची हुई हैं उसे इस योजना के तहत बांटा जाएगा। इस योजना के तहत अमीर देशों के यहां बची हुई वैक्सीन को गरीब देशों के बीच फिर से बांटने की योजना शामिल है।
बहरहाल, जो भी हो यदि वैक्सीन या किसी भी चीज का इफेक्ट होगा तो साईड इफेक्ट भी होगा। कंपनी ने जो बात अभी अदालत में स्वीकार की उसे पहले ही बता देना था। इस मामले में विशेषज्ञ चिकित्सकों का कहना है कि जिन लोगों को कोरोना पाॅजिटीव आया था उन्हें या अन्य लोगों को भी कुछ तय वक्त के लिए खून पतला करने की दवा लेना था। जिन लोगों को कोरोना पाॅजिटीव आया था और जिन्होंने इलाज करवाया उन्हें भी डाॅक्टरों ने खून पतला करने की दवा नहीं दी लिहाजा कोविशील्ड वैक्सीन के बाद हार्ट अटैक या अन्य साईड इफेक्ट सामने आए। कुल मिलाकर, कोरोना काल और वैक्सीनेशन के वक्त भी खूब सियासत हुई थी और अब तो होना ही है। लोकसभा चुनाव बीच फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका की स्वीकारोक्ति का किस पार्टी को कितना फायदा मिलेगा या कितना नुकसान होगा ये तो वक्त बताएगा लेकिन जिन लोगों ने कोविशील्ड वैक्सीन लगवाई हैं उनके माथे पर चिंता की लकीरें तो आ ही गईं हैं।
(अधिवक्ता एवं लेखक भोपाल, मप्र)

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