,मुनेश त्यागी
जुमले और नारे सब के सब ही तो बता रहे हैं
कानून का शासन और पूरा संविधान खतरे में।
मस्जिदें और दरगाहें अब खुलकर कह रही हैं
गंगा जमुनी तहजीब और हिंदुस्तान खतरे में।
ना हालात बस में हैं ना ही अदालतें बस में हैं
दिख रहा है व्यवस्था का दीन ईमान खतरे में।
अदालती मनमाने फैसले चीखकर कह रहे हैं
जैसे हमारे तो पूरे के पूरे ही विधान खतरे में।
संभल के दंगों में सारी दुनिया ने देख लिया है
शांति भाईचारा सद्भाव और जी जान खतरे में।
हिंसा हत्या बलात्कार पर किसी का बस नहीं
मांओं बहनों और बेटियों का सम्मान खतरे में।
बदहाली कह रही है, खेत व खलिहान खतरे में
गरीबी बता रही मजदूर और किसान खतरे में।
सारी जनता देख रही है सत्ता के कारनामों से
लोकतंत्र गणतंत्र न्याय और संविधान खतरे में।
वो चाहते हैं बदअमनी और खूंरेजी जारी रहे
भाईचारे की बात करने वाले इंसान खतरे में।
सत्ता व पैसे की हवस ने पार कर दी हैं सारी हदें
हम देख रहे हैं अच्छे-अच्छों के ईमान खतरे में।
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