अग्नि आलोक
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देखो आसमान की ओर / लाओ जीवन में आजादी / अंजान बचपन / मैं हूँ एक सजग नारी

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देखो आसमान की ओर


राजनंदिनी कुमारी
मुजफ्फरपुर, बिहार

देखो आसमान की ओर,
हुआ सवेरा निकला सूरज,
घर के बाहर तुम देखो,
कैसी ये हरियाली है छाई,
पेड़-पौधे भी लगते भाई-भाई,
हवा भी बहती है आई,
फूलों संग है मंडराई,
देखो आसमान की ओर,
सूरज निकला हमारी ओर,
देखो ज़रा इन्हें गौर से,
सूरज के प्रकाश से,
कैसे जीवन है लहलहाई,
जैसे सफ़ेद चादर हो बिछाई,
है उजियारी इतनी सारी,
आंख हमारी खुल न पाई।।

लाओ जीवन में आजादी

दीपिका कुमारी बामणिया
जैसलमेर, राजस्थान

नस्लों पर मरना छोड़ो,
दिल से बन जाओ भारतवासी,
बातों की बातें छोड़ो,
लेखनी से लाओ आजादी,
बीत चुकी बातों को छोड़ो,
जीवन में अपनाओं आजादी,
ताले खोलो, पिंजरे तोड़ो,
पंछी को दो उड़ने की आजादी,
जात-पात की बात को छोड़ो,
रूढ़िवादियों से लो आजादी,
धर्म-भाषा पर लड़ना छोड़ो,
नफरतों से लो आजादी,
नदियों का बंटवारा छोड़ो,
बांधों से अब लो आजादी,
धरती के टुकड़ों को छोड़ो,
आसमां पर लो आजादी,
मजहब पर मरना छोड़ो,
रंगों से लो आजादी,
राजमहलों में मुकुट को छोड़ो,
फकीरों से लो आजादी,
कमियां निकालने की आदत छोड़ो,
खुशियों की लो आजादी।।

अंजान बचपन

सविता देवी
कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश

छोटी सी मीना घर में सबकी जान थी,
सारा दिन चहकती रहती, हर दुख से अंजान थी,
खेलने जाती बच्चों संग निराली उसकी शान थी,
एक दिन खेल रही थी अकेले घर के दालान में,
पड़ोस का भईया आया और उससे बोला,
आज एक नया खेल खेलने जाएंगे खेत खलियान में,
नया खेल सोचकर मीना ख़ुशी ख़ुशी चल दी खलियान में,
नए खेल का बोलकर उसने, मीना को गलत तरीके से छुआ,
पर मासूम मीना को पता नहीं चला, वह इससे अंजान थी,
क्यूंकी उसके परिवार और स्कूल वालों ने,
नहीं दिया था उसे इन बातों का ज्ञान कभी,
जब वह थोड़ी बड़ी हुई, तो उसे एहसास हुआ,
उस दिन भईया ने कैसे मुझे गलत तरीके से छुआ था,
घर में बताने की कोशिश भी करती, तो कौन यकीन करता,
अब चुप रहती, किसी से कुछ न कहती,
बस रहने लगी उदास और परेशान भी,
आओ मिलकर सभी को बताएं, गुड टच और बैड टच,
ताकि अब हर मीना हो जाए सजग और समझे यह ज्ञान भी।।

मैं हूँ एक सजग नारी

अंजली भारती
मुजफ्फरपुर, बिहार

जानते हो मेरी पहचान क्या है?
मैं हूं आज की एक सजग नारी,
मगर दुनिया कहती मुझे बेचारी,
चाहती मुझे चारदीवारी में बंद रखना,
कहती है सुबह उठो रसोई को जाओ,
बात-बात पर सबकी ताने सुन जाओ,
मर्दों की गलतियों पर भी सजा मैं पाऊं,
दुनिया के लिए ना जाने क्यों मैं बोझ सा लगूं,
अच्छे पहनावे के साथ भी,
लोगों की गंदी निगाहें पाऊं,
मगर अब मैं किसी से डरती नहीं,
किसी के पांव तले दबती नहीं,
जानते हो मेरी पहचान क्या है?
मैं हूं आज की एक सजग नारी।।

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