अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

प्रेम और ध्यान : अन्य कोई मार्ग या धर्म नहीं है!

Share

      नीलम ज्योति 

न च प्राण-संज्ञो न वै पञ्च-वायु:

न वा सप्त-धातुर्न वा पञ्च-कोष:।

न वाक्-पाणी-पादौ न चोपस्थ पायु:

चिदानंद-रूपं शिवो-हं शिवो-हं॥

      मोक्ष पाने का अधिकार सबको है, लेकिन मोक्ष जब भी घटेगा वो आपकी मर्जी से ही होगा। मन के जगत के लोग डर के कारण आगे नहीं जाते हैं कि मरना पड़ेगा। आत्मा के जगत के लोग भी डरे हुए हैं कि आत्मा का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा।

      ज्यादातर लोग मन के जगत से आगे जाते ही नहीं हैं। थोड़े लोग आत्मा के जगत में जाते हैं तो वहां जाकर ज्ञात होता है यहाँ तो आत्मा को भी मरना होगा। लोगों ने सुना होता है आत्मा अमर है। 

     हमें तथाकथित संत महात्मा और कथावाचक बताते ही है कि आत्मा अमर है और आप भी यही सीखते है और जीवन भर इसी भ्रम में रहते हैं। लेकिन यहाँ आकर ज्ञात होता है कि आत्मा की भी मौत होनी है तभी ब्रह्म हुआ जा सकता है। नदी खत्म होकर ही तो समुद्र बनती है.

लोग बैठे हैं हजार साल समाधि लगाए। बहुत से लोग एक नया ही मन विकसित कर लेते हैं, और आगे जाने से बचे रहते हैं, लेकिन मृत्यु तो फिर भी मृत्यु ही है।  जब महा प्रलय होगी तब भी सभी उसी ब्रह्म में समा जाएंगे।

     मुस्लिम संप्रदाय ये मानता है कि कयामत के दिन कोई आएगा। तो वो श्मशान (कब्रिस्तान) में रास्ता देखते हैं। सही गलत ज्यादा महत्व नहीं रखता है. आस्था ज्यादा महत्व रखती है। जिसकी जहां जैसी आस्था है,  वैसा उसका भविष्य।

   क्रिश्चियन में मृत्यु के बाद का कोई अवधारणा होती ही नहीं है। बौद्धों और जैनियों में सिर्फ निर्वाण तक का ही कांसेप्ट है| 

     धर्म का सिर्फ एक ही अर्थ होता है पूर्ण होना, आप किसी भी मार्ग से चले जाइए। मोक्ष, ब्रह्म, धर्म, सत्य, पूर्ण चेतन, सत, चित, आनंद ये धर्म के ही नाम हैं। लेकिन इस जगत में इतनी ज्यादा होंच पोंच हो गई है कि सबका घाल मेल हो गया है| जिसको जो जहां से अच्छा लगा उठा लिया। सबको मिलाकर कॉकटेल बना दिया गया है।  अब समझ ही नहीं आता है क्या सही है। ढेर सारी पद्धतियाँ पैदा हो गईं हैं।

     वास्तव में ब्रह्म में विलीन होना ही हर मनुष्य का वास्तविक लक्ष्य है। वहां से जब आप चले थे तो हिन्दू, मुसलमान होकर नहीं चले थे। आप वहां से जिस भी कारण से आत्मा के जगत फिर मन के जगत में आ गए हो। यहाँ से फिर ब्रह्म में विलीन होने के दो ही मार्ग हैं प्रेम और ध्यान.

    लेकिन यहाँ जितने महात्मा आए हर किसी ने अपना ही एक मार्ग बना दिया। अब भी एक ईश्वर है दूसरे तुम हो । इसके अलावा सारा प्रपंच मनुष्य का ही रचा हुआ है। मन फिरा फिरा फिरे जगत में. ये कैसा नाता रे.

Add comment

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें