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इस बार सुर्खियों में नहीं रहेगा मधेपुरा

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शरद यादव और लालू यादव एक दूजे के संवाहक बनकर राजनीति में उतार चढ़ाव दोनों ने देखे। एक दौर वह भी था जब शरद यादव और लालू यादव आमने-सामने चुनाव मैदान में होते थे तब समूचे देश की नजर इन पर टिकी रहती थी।

शरद यादव मध्य प्रदेश के जबलपुर से चलकर वा रास्ते वाया उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली होते हुए मधेपुरा बिहार में अपना राजनितिक प्रतिबद्धता जताई  और चार बार मधेपुरा का नेतृत्व किया, जब लोक सभा का चुनाव हार जाते तो राज्य सभा के लिए चुन लिए जाते। 

शरद यादव विगत वर्ष 12 जनवरी, 2023 को निधन हो जाने के बाद उनकी विराशत को आगे लें जाने के लिए (जैसा कि पुत्र शांतानु यादव (बुंदेला) बार-बार कह रहे हैं) कि पिता की विरासत को आगे बढ़ाऊंगा। शरद यादव अपने रहते अपनी पार्टी (लोकतांत्रिक) जनता दल का आरजेडी में विलय करने और  पुत्र को लालू और तेजस्वी को सौंप गए थे। शांतनु यादव उसके बाद से लगातार मधेपुरा से जुड़े रहे और शरद यादव ने जबलपुर की कर्मभूमि छोड़कर मधेपुरा को अपनाया, घर बनया।

लेकिन लालू जी और तेजस्वी ने शांतनु को मधेपुरा से आरजेडी का उम्मीदवार नही बना कर निराश किया। जैसा कि शांतनु का दर्द छलका और एक्स पर लिखा कि ” पिता का साया सिर से हट जाना जीवन का सबसे कष्टदाई क्षण होता है।”  जिस पर कई चैनलों पर इसका जिक्र भी किया गया। मेरा भी मानना है कि उत्साहित युवा का मनोबल स्वाभाविक रूप से गिरा है। 

जिसका मुझे सन्देह था आखिरकार वही हुआ। 

*रामबहोर साहू*

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