,,मुनेश त्यागी
आजकल माफियाओं को खत्म करने की बात हो रही है। बहुत वर्षों से हम देख रहे हैं कि समाज में गुंडों, अपराधियों और माफिया प्रवृत्ति के लोगों को राजनीतिक ताकतों द्वारा बढ़ावा दिया जाता रहा है। हमने अपने छात्र जीवन में देखा था कि कुछ गुंडे और बदमाश छात्रों में अपना भय और आतंक बनाए रखने के लिए हत्या और अपराधों का सहारा लेते थे। वे अपने इस अपराध और जातिवादी दबदबे की दुनिया को बढ़ाने और बनाए रखने के लिए, मासूम छात्रों का इस्तेमाल करते थे।
हमने उनमें जाति आधार पर संघर्ष होते भी देखें हैं और यह भी देखा है कि जब उन पर पुलिस अपना शिकंजा कसती थी तो वे राजनीतिक दलों का सहारा लेते थे और उस समय छात्र यूनियनों में भी इस तरह के अपराधी हत्यारे और गुंडे किस्म के लोग होते थे।
लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिक नेतृत्व का निर्णय सर्वोपरि होता है। कई राजनीतिक दल शासन प्रशासन को पुलिस को अपराधियों और माफियाओं के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करने से रोकते हैं और ये राजनीतिक दल अपनी सत्ता और धार्मिक व जातिवादी वर्चस्व को बनाए रखने के लिए अपराधियों और हत्यारों को शरण देते हैं, उनको पालते पोसते हैं, उनका संरक्षण करते हैं और फिर देखते ही देखते ये अपराधी और हत्यारे, माफिया में तब्दील हो जाते हैं।
माफिया को राजनीतिक संरक्षण मिलते ही उसकी महत्वाकांक्षा और उपलब्धियों को पर लग जाते हैं। वह किसी को भी खरीद सकता है या किसी भी प्रतिरोध को बलपूर्वक रौंदता हुआ आगे बढ़ सकता है। हमने देखा है कि राजनीतिक संरक्षण मिलते ही ये अपराधी, हत्यारे और माफिया कानून कायदों को ठेंगे पर रखते हैं, अकूत संपत्ति इकट्ठे कर लेते हैं, जमीनों पर कब्जे करते हैं, लोगों को डराते धमकाते हैं। जेलों में रहकर भी इन माफियाओं का और उनके छुटभइयों का यह आतंकवादी साम्राज्य चलता रहता है, उनका दबदबा बरकरार रहता है। बल्कि यह भी देखा गया है की जेल के अंदर से यह माफिया ज्यादा प्रभावी ढंग से अपने साम्राज्य का विस्तार करते रहते हैं।
यहां पर यह कहना भी उचित होगा कि अपराध की दुनिया ऐसी भूल भुलैया की तरह है जिसमें एक बार प्रवेश करने के बाद बाहर निकलने के रास्ते बहुत मुश्किल से मिलते हैं और अपराधी एक बार उस में घुसने के बाद इस तिलिस्मी सम्मोहन से बाहर नहीं आता। हमने मजदूर आंदोलन में भी देखा है कि बहुत सारे कारखानेदार और पूंजीपति, श्रम कानूनों का पालन नहीं करते, मजदूरों को उनकी बुनियादी हक उपलब्ध नहीं कराते और मजदूरों को दबाए रखने के लिए वे अपने-अपने माफिया यानी बाउंसर गुंडे और अपराधी रखने लगते हैं, जिनका काम मजदूरों के साथ गाली गलौज करना, यूनियन बनाने वाले नेताओं के साथ मारपीट करना, गाली गलौज देना और अपना हक अधिकार मांगने वाले मजदूरों के साथ आपराधिक घटनाएं भी करते हैं और कई बार मजदूर यूनियन के नेताओं और मजदूरों को, झूठे केसों में फंसा कर जेल में भी भिजवा देते हैं।
बाद में इनमें से कई अपराधी राजनीतिक संरक्षण में चले जाते हैं और फिर राजनीतिक पार्टियां, अपनी सत्ता और दबदबे को बरकरार रखने के लिए इन माफियाओं का, अपराधियों का इस्तेमाल करती हैं और जनता को धमकाने के लिए,उसको डराने के लिए, इनका जमकर प्रयोग करती है जिस कारण बहुत सारे लोग अपने हक अधिकार की लड़ाई को भी आगे नहीं बढ़ा पाते क्योंकि उनको भी डराया धमकाया जाता है और कई बार तो उनकी हत्या भी कर दी जाती है।
ऐतिहासिक रूप से देखें तो अपराध और माफिया की दुनिया पहले सामंती समाज में मौजूद थी और अब पूंजीवादी समाज में मौजूद है। अतीक के मामले को ही लिया जाए तो उत्तर प्रदेश की अधिकांश पूंजीवादी पार्टियां उसको समर्थन देती रही हैं, उसका इस्तेमाल करती रही है, उससे लोगों को डराती धमकाती रही हैं और इन तमाम राजनीतिक पार्टियों ने उसके खिलाफ, उसकी गुंडागर्दी के खिलाफ, उसकी हत्या और अपहरण के खिलाफ और उसके द्वारा जमीन हथियाने के खिलाफ, कोई प्रभावी कानूनी कार्रवाई नहीं की और इस प्रकार वह एक बहुत बड़ा माफिया बन गया। इसी माफिया गिरी और राजनीतिक संरक्षण का लाभ उठाकर, वह देश का संसद और विधानसभाओं का सदस्य भी बन बैठा।
आज हम देख रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में अनेकों अनेक माफिया, अपराधी और हत्यारे मौजूद हैं। जिनके ऊपर 50 से लेकर 106 तक केस लगे हुए हैं, मगर सरकार इनके खिलाफ कोई प्रभावी कानूनी कार्यवाही नहीं कर रही है और अब तो स्थिति इतनी खराब हो गई है कि धर्म के आधार पर, जाति के आधार पर, इस तरह के माफियाओं को तरजीह दी जा रही है और उनका विनाश और खात्मा करने की कोई प्रभावी कार्यवाही नहीं की जा रही है।
देश के कई भागों में इस तरह के अपराधी माफिया और हत्यारे काम कर रहे हैं और वे राजनीतिक संरक्षण के द्वारा अपनी माफियागिरी को, अपने अपराध को आगे बढ़ा रहे हैं। अगर समाज को इन माफियाओं से, हत्यारों से और अपराधियों से निजात पानी है तो समाज के लोगों को, राजनीतिक दलों पर प्रभाव डालकर माफिया और अपराधियों के आतंक को खत्म करवाना होगा। इसके लिए उन्हें किसानों के, मजदूरों के, नौजवानों के, छात्रों के, महिलाओं के, मजबूत और सशक्त संगठन बनाने होंगे और उन्हें इस जन विरोधी माहौल को और इन जनविरोधी नीतियों को बदलने के लिए पूरी की पूरी जनता को रोटी कपड़ा मकान शिक्षा स्वास्थ्य न्याय रोजगार के लिए एकजुट संघर्ष के मैदान में उतारना होगा।
यहीं पर जातियों और धर्म के आधार पर बने अपराधियों, माफियाओं के आतंक को खत्म करना होगा। इसके लिए राजनीतिक दलों, न्यायपालिका और शासन प्रशासन को एकजुट होकर, माफियागिरी के खिलाफ प्रभावी कानूनी कार्यवाहियां करनी होंगी और अधिकांश राजनीतिक दलों को इन अपराधियों और माफियाओं को राजनीतिक संरक्षण देने और पालने पोसने से बचना होगा। इसी के साथ साथ यह भी जरूरी है कि इन तमाम अपराधियों और माफियाओं को जल्दी से जल्दी प्रभावी कानूनी कार्यवाही करके, जेल की सींकचों के पीछे भेजना होगा और इन्हें आजन्म कारावास की सजा से दिलानी होगी।
जिस दिन हमारे देश और सामाजिक संगठन, राजनीतिक दल और राज्यों का, शासन प्रशासन और स्वतंत्र न्यायपालिका एकजुट होकर, माफियागिरी और अपराध को खत्म करने का निर्णय ले लेगा, तभी जाकर देश, समाज और प्रदेश के लोगों को, अपराधियों और माफियाओं के आतंक से मुक्ति मिल सकती है।