अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

जियो और जीने दो के प्रणेता, अणु शक्ति के आगे मनु शक्ति का प्रयोग करने वाले थे महावीर भगवान

Share

डॉ संध्या जैन श्रुति

जियो और जीने दो के प्रणेता, अणु शक्ति के आगे मनु शक्ति का प्रयोग करने वाले, मानव जाति एक है अखंड है, जिसमें ऊँच -नीच की कल्पना करना सत्य का गला घोंटना है, मनुष्य जन्म से नहीं कर्म से महान बनता है, आत्म शक्ति के प्रबल समर्थक भगवान महावीर जी के सिद्धांत आज भी प्रासंगिक हैं
महावीर जिस युग में हुए तब घोर जातिवाद था और भगवान महावीर जातिवाद के घोर विरोधी थे,महावीर के शासन में ना जाने कितने शूद्र और चांडाल दीक्षित हुए।


भगवान महावीर के जीवन काल के समय गणतंत्र व्यवस्था अपने विकास के चरम पर थी जैसे आज आधुनिक भारत में लोकतंत्र अपने विकास की ओर अग्रसर हो रहा है हम लोकतंत्रीय परंपराओं को आत्मसात कर रहे हैं भगवान महावीर ने भी अपने सिद्धांतो में लोकतंत्रीय आदर्शों को आश्रय दिया। लोकतंत्र के विभिन्न आदर्श स्वतंत्रता, समानता, आत्म निर्णय का अधिकार, अनुशासन, सापेक्षता, विश्वबंधुत्व, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, जागरुकता, सहयोग, प्रेम, दया, सहिष्णुता आदि को भगवान महावीर ने प्रचारित प्रसारित किया जिससे लोककल्याण की सरिता उद्भूत हुई और जनमानस जागरुक बनकर लोक कल्याण की ओर अग्रसर हुआ।
समानता के सिद्धांत के प्रतिपादक भगवान महावीर ही थे जिन्होंने स्वतंत्र आत्म शक्ति पर बल दिया था आत्मा का, आत्मा के द्वारा, आत्म कल्याण के सिद्धांत को प्रतिपादित किया था इस सिद्धांत के अनुसार जीव जंतु, प्राणी, वनस्पति सभी को अपने समान मानते थे वे कहते थे आत्म शक्ति सबमें एक बराबर है चींटी से इंसान की सब जीवों की रक्षा करना वाणी है भगवान की।
आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक और सांस्कृतिक समानता का उद्भव भगवान महावीर ने भी किया था जो मार्क्स की याद दिलाता है जिसने साम्यवाद का उद्घोष किया यह साम्यबाद आंतरिक परिवर्तन की प्रेरणा देता है। साम्यवाद साध्य व साधन दोनों की पवित्रता पर ध्यान देता है यही महावीर का सिद्धांत है जिसकी आज जरूरत है।
आत्मअनुशासन
इसका अर्थ है अपने आप पर शासन, महावीर का मानना था कि अपने शरीर, मन, वाणी और सभी इंद्रियों पर नियंत्रण रखो, अपनी आत्मा पर शासन करो संयम, तप, निग्रह के द्वारा आत्मअनुशासन रखो वध बंधन के द्वारा किसी को मत सताओ और न किसी के सताए जाने योग्य बनो, स्वेच्छा ही जनतंत्र का आधार है।
विश्व बंधुत्व-
वसुधैव कुटुंबकम के आदर्श का जितना सुंदर प्रतिपादन भगवान महावीर ने किया है उतना कदाचित ही कहीं हुआ हो संसार के प्रत्येक प्राणी यहाँ तक कि जड़ पदार्थों के प्रति भी उनके मन में दया के भाव थे वे किसी के प्रति शत्रुता का भाव नहीं रखते थे किसी से द्वेष नहीं करते थे अपने अपराध के लिए सबसे क्षमा प्रार्थी थे।
खामेभी सब्ब जीवे सव्वे जीवा खमंतु मे
मित्ती मे सव्व एसु, बैरम् मज्झं न केणई।
आधुनिक संघर्षशील युग में जब भाई भाई में, देश देश में, द्वेष और घृणा के भाव पनप रहे हैं तब भगवान महावीर का यह विश्व बंधुत्व का संदेश राष्ट्रीयता अंतर्राष्ट्रीयता एवं लोकतंत्र के लिए अत्यंत आवश्यक है लोकतंत्र की प्रगति प्रेम, सद्भाव, सहकारिता, सहानुभूति के वातावरण में ही होती है।
इसके अतिरिक्त अंधविश्वास, रुढ़िवादिता कर्मकांड का विरोध कर वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास से परीक्षण, निरीक्षण एवं स्वविवेक से प्रत्येक वस्तु को जाने, इन्हें सम्यक बनाने का उपदेश दिया अहिंसा, शांति, जागरुकता, न्याय, सत्य, संयम आदि को जीवन में उतारने का संदेश दिया। महावीर मुक्ति हेतु इन आदर्शों की पुष्टि करते थे जो लोकतंत्र में आवश्यक है इन आधारों पर हम देखें तो महावीर और लोकतंत्र एक दूसरे के पर्यायवाची बन गये हैं।
महावीर के सिद्धांत चिंतन का विषय होने चाहिए तभी वर्तमान सुख कर और सुंदर बन पाएगा।
आज का युग शांति की अन्वेषणा
कर रहा चढ़ भ्रांति के जलयान में
लक्ष्य तक वह जा सकेगा क्या कभी
बात यह आए सभी के ध्यान में।

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें