*प्रोफेसर राजकुमार जैन*
सैकड़ो बेटों की मां का दर्जा हासिल था, आंटी राजकुमारी कौल को। साठ के अंतिम दशक में किरोड़ीमल कॉलेज से बीए हिस्ट्री (ऑनर्स) में डिग्री हासिल करने के बाद मुझे रामजस कॉलेज में एम ए हिस्ट्री में दाखिला लेना पड़ा क्योंकि मुझको दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ना था। उस समय़ नियम था कि एक कॉलेज से तीन बार से अधिक सुप्रीम काउंसिलर नहीं चुना जा सकता, मैं तीनों बार चुनाव जीत चुका था तथा दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ का उपाध्यक्ष भी बन गया था। रामजस कॉलेज में दाखिला हो जाने पर कॉलेज हॉस्टल में प्रवेश लेने के लिए हॉस्टल के वार्डन प्रोफेसर बी एन कौल (ब्रिज नारायण कौल) के घर पर गया था । कौल साहब घर पर नहीं थे वहां पर उनकी पत्नी राजकुमारी कौल थी। वहां पहले से मौजूद छात्र उनको आंटी कहकर संबोधित कर रहे थे। मैंने जाकर कहा , जी में हॉस्टल में दाखिला लेने के लिए सर से मिलने आया हूं। उनका पहला वाक्य था “बेटा कौल साहब तो अभी नहीं है, तुम्हारा दाखिले का फॉर्म मैं उनको दे दूंगी”।

फार्म पर मेरा नाम पढ़कर वे बोली तुम क्या वही राजकुमार जैन हो जिसका यूनिवर्सिटी से निष्कासन (छात्र आंदोलन के करण) हुआ था, मैंने कहा जी आंटी जी। पहली बार उनको देखने और बात करने पर उनके प्रति जो आदर उमड़ा वह तमाम उम्र कायम रहा। आंटी थी ही ऐसी, उस दौर में कॉलेज हॉस्टल में मुल्क के दूर दराज के इलाकों नागालैंड, मणिपुर, असम, उड़ीसा, बंगाल इत्यादि के साथ-साथ मॉरीशस, फिजी, सूरीनाम तथा कई विदेशी छात्र भी हॉस्टल में रहते थे। उस वक्त जनसंपर्क का सीघा जरिया उपलब्ध नहीं था। विश्वविद्यालय सुनसान पहाड़ी, बोनटे के साथ बना था। मोबाइल, इंटरनेट का आविष्कार नहीं हुआ था। वार्डन के घर पर एकमात्र लैंडलाइन वाला टेलीफोन लगा रहता था। हमारे वार्डन कौल साहब फिलॉसफी डिपार्टमेंट में प्रोफेसर थे, वे सचमुच में एक फिलॉस्फर ही थे। गंभीर, सौम्य, शांत तथा हर वक्त छात्रों की देखभाल, सुख सुविधा इत्यादि की व्यवस्था में लगे रहते थे। आंटी का बाह्य व्यक्तित्व जितना आकर्षण था, उससे अधिक उनका आंतरिक रूप ममता, करुणा, दया, सेवा से भरा था। कौल साहब जब यूनिवर्सिटी व कॉलेज में शिक्षण एवं अन्य गतिविधियों में व्यस्त होते थे, तब छात्रों की समस्या का समाधान आंटी ही करती थी। वह हॉस्टल के छात्रों की देखभाल एक मां के रूप में करती थी। कोई छात्र बीमार पड़ जाए तो उसकी देखभाल, दवा तथा बीमारी में सुपाच्य भोजन का विशेष प्रबंध वही करवाती थी। कई छात्र निराशा डिप्रेशन के शिकार हो जाते थे उनको समझाना भी आंटी करती थी। श्री अटल बिहारी वाजपेई (भूतपूर्व प्रधानमंत्री भारत) जो की उनके पारिवारिक मित्र भी थे । अपनी राजनीतिक गतिविधियों से फुर्सत के समय उनके घर पर उनकी बेटियों नमिता, नम्रता से गप्प लड़ाते दुलार करते थे। मेरा विशेष परिचय अटल जी से इसलिए भी हुआ कि मैं ‘समाजवादी युवजन सभा’ का सक्रिय आंदोलनकारी होने के कारण धरने, प्रदर्शन करने तथा जेल भी जाता रहता था। मेरे सोशलिस्ट नेता मधु लिमए के राजनीतिक पत्रों को कई बार मैं उनके घर पर भी पहुंचाता था। मैं कौल साहब और आंटी का विशेष कृपा पात्र बन गया था।
आंटी विदुषी तथा बहुत ही अध्ययनशील थीं । वह जमीन पर चटाई बिछाकर, तकिया लगाकर, नाइट लैंप की रोशनी में हॉस्टल में आने वाले अंग्रेजी हिंदी के अखबारों पत्रिकाओं को पढ़ती रहती थीं। हालांकि वे राजनीति में नहीं थीं परंतु उनको राजनीतिक विचारधाराओं, आंदोलनो तथा राजनेताओं के बारे में गहरी जानकारी रहती थी। मेरे से आंटी का गहरा लगाव इसलिए भी हुआ कि मैं बहुत ही सक्रिय आंदोलनकारी था। कई बार पुलिस की मार से घायल तथा हड्डियां तुडवा चुका था। उस वक्त आंटी की ममता से बहुत राहत मिलती थी। हमारे समाजवादी साथियों का जमघट तथा दफ्तर, केंद्र बिंदु भी मेरा हॉस्टल ही होता था। आंटी के घर पर हॉस्टल के पुराने छात्र जो अब सरकारी गैर सरकारी बड़े पदों आईएफएस, आईएएस, आईपीएस से लेकर अन्य पदों पर तैनात हो जाते थे अक्सर वे मिठाई लेकर आते थे, तो आंटी हम सबको मिठाई खिलाती थी। उन दिनों के दिवंगत सोशलिस्ट साथी, ललित मोहन गौतम (भूतपूर्व एम एल ए दिल्ली विधानसभा), रविंद्र मनचंदा,( भारत के प्रधानमंत्री के भूतपूर्व ओएसडी ) रमाशंकर सिंह (भूतपूर्व मंत्री, मध्य प्रदेश सरकार), विजय प्रताप, (मानव अधिकारों तथा गैर सरकारी स्वयं सेवी संस्थाओं के राष्ट्रीय संयोजक,) नानक चंद (दिल्ली सरकार की संस्था के सचिव) इत्यादि को जब कभी आंटी के घर पर किसी त्योहार पर कुछ विशेष बनता तो हम सबको खाने के लिए दिया जाता। हमारे साथी कभी-कभी अटल जी से भी गुफ्तगू करते थे। आंटी पढ़ाकू और लड़ाकू छात्रों का विशेष ध्यान रखती थी। रात्रि भोजन के समय मैं अक्सर समय पर हॉस्टल नहीं पहुंच पाता था। हॉस्टल के कर्मचारी भी मेरे साथ बहुत ही स्नेह का रिश्ता रखते थे। डिनर की थाली मेरे कमरे में रख देते थे, उन्हें पता होता था कि उनके साथ कई छात्र होंगे इसलिए वह बहुत सारी रोटियां, साग सब्जी मेरी थाली में रख देते थे।
आंटी हर छात्र की शैक्षिक उपलब्धि से बेहद आनंदित होती थी। मैंने जब एमए की परीक्षा में प्रथम श्रेणी में विश्वविद्यालय में द्वितीय स्थान प्राप्त किया तो उन्होंने मुझे खत लिखा।
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प्रिय पुत्र राजकुमार,
तुम्हारा रिजल्ट अभी-अभी पता लगा कितनी खुशी हुई यह लिख नहीं सकती पर मुझे विश्वास है कि तुम समझते हो कि मुझे कितना सुख मिला और तुम पर कितना गर्व है, परमात्मा से यही प्रार्थना है कि तुम जीवन में ऐसी ही सफलता हर एक काम में पाते रहो, समय निकालकर अवश्य आना मैं तुम्हें मिठाई खिलाऊंगी- इच्छा तो यही हो रही है वहीं आकर तुम्हें बधाई दूं पर ऐसा इस समय संभव नहीं- दूसरे यह भी नहीं मालूम कि तुम होंगे कहां जहां भी हो मेरी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ है मेरे योग्य कोई भी कार्य हो तो याद रखोगे
आशीर्वाद सहित
तुम्हारी आंटी
र कौल
एमए इम्तिहान पास करते ही मैं कॉलेज में शिक्षक नियुक्त हो गया। कौल साहब का अब मैं सहकर्मी बन गया। कौल साहब का कॉलेज में बेहद सम्मान था। स्टाफ एसोसिएशन व स्टाफ काउंसिल की मीटिंगों में जब कभी वे बोलते उनके सुझाव को अंतिम मान लिया जाता था। कौल साहब के रिटायर्ड होने के बाद आंटी का परिवार अटल बिहारी वाजपेई जी के सरकारी निवास स्थान रायसिना रोड पर रहने के लिए चला गया, परंतु उनका स्नेह सदैव मुझ पर बना रहा। उनके घर पर कोई भी मांगलिक कार्य होता तो मुझे बुलाया जाता। कौल साहब की दो बेटियां नमिता- नम्रता है। छोटी
बेटी नमिता जिसको सब लोग दुलार में ‘गूनू” कहते थे तथा जिसको अटल जी ने दत्तक पुत्री बना लिया था , तथा नमिता ने ही अटल जी का दाह संस्कार किया था। वह हॉस्टल में छोटी बच्ची के रूप में चहल कदमी करती हुई घूमती थी। उसकी सगाई जब रंजन भट्टाचार्य से तय हुई तो उस अवसर पर कौल साहब ने मेरे कमरे पर नोट छोड़ा
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प्रिय जैन साहब,
गूनू की सगाई 28 फरवरी रविवार को 6 रायसिना रोड पर है। 11:30 बजे सुबह के करीब कुछ हवन इत्यादि है, फिर एक बजे लंच। कृपया अवश्य दर्शन दें।
धन्यवाद
आपका बीएन कौल
कौल साहब की बड़ी बेटी नंदिता अमेरिका में निवास करने लगी थी। उसके बेटे के भारत आगमन पर कौल साहब ने एक पार्टी का आयोजन रायसिना रोड पर किया, वहां मुझे आमंत्रित किया।
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जैन साहब,
नंदिता- मेरी बड़ी बेटी- के बेटे के भारत आगमन पर एक छोटी सी पार्टी बुधवार 16 जनवरी को सायं 6 से 8 तक 6, रायसीना रोड पर कर रहे हैं।
अवश्य आए। मैं स्वयं यह पर्चा डालकर जा रहा हूं।
बी एन कौल/
13-1-85
अटल जी के निवास पर आंटी का परिवार रह रहा था, मैं कई बार उनसे मिलने जाता था। वह हर बार शिकायत करती थी, बेटा तुम बहुत दिनों के बाद आते हो।
मुझे ऐसा लगता है आंटी के आकर्षक व्यक्तित्व, विद्ववत्ता, सौम्यता, दयालुता, देश विदेश के घटनाक्रमों की जानकारी का मित्रता के कारण श्री अटल बिहारी वाजपेई जी के व्यक्तित्व पर उदारवादी, मिलन सारिता, समन्वय, सार्वभौमिक बनने में व्यापक प्रभाव पड़ा।
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