पुष्पा गुप्ता (महमूदाबाद)
“डॉ. अम्बेडकर को संस्कृत तो आती नहीं थी. विदेशियों द्वारा तोड़-मरोड़कर किए गए अनुवाद के सहारे उन्होंने हिंदू शास्त्रों को बदनाम किया.”
ऎसा कहा जाता है हर कट्टर की ओर से.
हम हिंदी अनुवाद-सहित मनुस्मृति के दो श्लोक मूल संस्कृत में दे रहे हैं. इनका अँग्रेजी अनुवाद डॉ. अम्बेडकर ने अपनी पुस्तक ‘Who were the Shudras’ में उद्धृत किया है.
(Writings and Speeches, Vol. 7, p. 48)
शतं ब्राह्मणमाक्रश्य क्षत्रियोदण्डमर्हति। वैश्योप्यर्धशतं द्वेवा शूद्रस्तु बधमर्हति॥
पंञ्चाशद्ब्राह्मणोदण्ड्य: क्षत्रियभ्याभिशंसने। वैश्ये स्यादर्धपञ्चाशच्छूद्रे द्वादशकोदम:॥
मनुस्मृति, अध्याय-8, श्लोक 267, 268.
[ब्राह्मण को अपमानित करनेवाले क्षत्रिय का दंड सौपण है;यदि ब्राह्मण को वैश्य अपमानित करे तो दंड डेढ़ सौ या दो सौ पण है और यदि शूद्र ब्राह्मण को अपमानित करे तो उसका दंड बध (मृत्युदंड) है. ब्राह्मण यदि क्षत्रिय को अपमानित करे तो उसका दंड पचास पण है, वैश्य को अपमानित करे तो दंड पच्चीस पण है और शूद्र को अपमानित करे तो दंड बारह पण है.]
हिंदी अनुवाद को मूल संस्कृत से मिला लीजिए और डॉ. अम्बेडकर द्वारा दिए गए अंग्रेजी अनुवाद को इस अनुवाद से मिला लीजिए. बताइए, यह हिंदी अनुवाद और डॉ. अँबेडकर द्वारा उद्धृत अँग्रेजी अनुवाद कहाँ से ग़लत है ?
यह तो हांड़ी का एक चावल हुआ.
कुछ और भी परख लीजिए :
कोई हमारी परंपरा के दो बताए तो उस कमी को जाँचने-परखने और उसमें सुधार लाने की कोशिश के बजाए बतानेवाले को ही अंधा घोषित कर दीजिएगा?
कौवा कान ले गया तो पहले अपना कान तो टटोल लीजिए. ऐसी आत्ममुग्धता का इलाज तो ‘मनु महाराज’ के पास भी नहीं होगा…..
हाँ, बीहड़ जीवन और उससे भी बीहड़ जगत के बीच तालमेल बिठानेवाली कुछ अच्छी बातें तो मनुस्मृति में हैं ही।
लेकिन उसकी जो विखंडनकारी और मानव-विरोधी भावभूमि है, उसे मान लेने के बजाय आधारहीन कुतर्क देना वितंडावाद नहीं तो और क्या है ?
फ़ेसबुक/व्हाट्सप्प ने लोगों को इतना ‘स्वच्छंद’ कर दिया है कि विस्मृति के अंधकार में डूब चुके मनु महाराजय (मनुस्मृति वाले) का नाम फिर सुनाई पड़ने लगा है.
(चेतना विकास मिशन)