सोनी कुमारी, वाराणसी
हमारे चेतना मिशन के शिविरों में
कई औरतें पूछ बैठती हैं कि
किसी की पत्नि होते हुए
किसी अन्य प्यार हो जाए तो
क्या करना चाहिए?
या पुराने प्यार का अनुभव
पुनः जीने के लिए सताए
तो क्या किया जाए?
मैं यही कहती हूँ कि
प्यार का भी भ्रूण हत्या कर दो
नहीं तो हर बढ़ते दिन के साथ
बढ़ता जायेगा
और उसका छूटना
ज़्यादा रूलायेगा।
लेकिन ~
ये सलाह मैं अपनी आत्मा
की हत्या कर के
सामाजिक सुविधा के
हिसाब से देती हूँ।
हमारे समाज की तरह
सोशल मिडिया पर भी लोग
विवाहित औरतों के
प्रेम को ले कर ख़ूब हमलावर हैं
और जलील करते रहते हैं।
इसमें महिलाएँ भी हैं।
विवाहित महिला का प्यार करना
मतलब चरित्रहीन होना है।
पति के सामानान्तर एक
रिश्ता रखना होता है।
यह प्यार, प्यार नहीं
उसकी देह की आग है
जबकि ये है नहीं।
प्यार हर उम्र में सिर्फ़ और सिर्फ़
आत्मा का
अपने जोड़ीदार का तलाश है।
ये जोड़ीदार एक बार मिल जाए
तो भूला नहीं जा सकता
चाहे क़ोई इस अपराध के लिए
गला काट ले।
कृष्ण जी की पत्नी रुक्मणी थीं
लेकिन तअउम्र नहीं
मिलने के बाद भी
वो प्यार राधा से करते रहे।
इससे न तो कृष्ण के चरित्र पर
दोष लगता है
न तो राधा के
न ही हम इसे रुक्मणी के साथ
अन्याय मानते हैं।
इसी तरह राधा ने भी
विवाहित होकर भी
कृष्ण को याद करना
बन्द कर दिया क्या?
नहीं न।
विवाह हमारा कर्तव्य है।
प्यार आत्मा का बन्धन होता है।
ये हमारे आत्मा पर चढ़ा
वो पक्का रङ्ग है
जिसे हम ख़ुद भी चाहें तो
रगड़- रगड़ कर भी
आत्मा को छील लें तो
भी उस रङ्ग को साफ़ करना तो दूर
हल्का भी नहीं कर पाते।
औरतें यही करती हैं।
प्यार के रङ्ग छुड़ाने में
अपने आत्मा को
घायल कर लेती हैं।
घायल आत्मा का इन्सान
सङ्कीर्ण, चिड़चिड़ा,
झगड़ालू, जलनखोर होगा ही।
फ़िर हम उसे नरक का
द्वार कह देंगें
फ्रस्टेट पत्नी के रूप में उसका
उपहास कर के
जोक्स बनायेंगे
और फाॅरवर्ड करेंगे।
मैं सोचती हूँ कि
जो प्यार जानता ही नहीं है
और इसको देह का आग
मात्र ही समझता है
ऐसे भावनाओं के कङ्गाल
लोगों से क्या उलझना।
जो जानता है वो जानता है कि
प्यार आत्मा की प्यास है
यह देह की आग नहीं है।
नहीं तो यह इतना काॅम्पलेक्स
होता ही नहीं।
देह तो विवाह में, बाज़ार में
सब जगह आसानी से उपलब्ध है।
विवाह बलात्कार लाइसेंस है.
लेकिन प्यार तो हम किसी के लिए
अपने तमाम कोशिशों के बाद भी
नहीं जगा पाते।
जिससे हो जाता है
उसे सारी कोशिशों के बाद भी
भुला नहीं पाते।
बाज़ार में पैसा खर्च कर
जैसा देह और सेक्स चाहिए
ख़रीद सकते हैं
लेकिन प्यार अपनी सारी
सम्पत्ति दे कर
ख़रीद सकते हैं क्या?
बहुत सारे पुरूषों का
भी उदाहरण मिलेगा।
जब अपनी पत्नी समेत
दसियों औरतों के साथ
सोते हुए भी
किसी एक औरत को सिर्फ़
देख लेने के लिए,
सुन लेने के लिए तड़पते रहें।
हम सब उन पुरूषों को पढ़ते हुए
उनके महान प्यार पर न्यौछावर हो जाते हैं।
जबकि क़ोई स्त्री लिख दे कि
वो अपने पति के साथ सोते समय
हर रात किसी और को
याद कर रो रही थी तो
उसे कुलटा और चरित्रहीन
कह कर गालियाँ दी जाएंगी।
क्योंकि समाजिक व्यवस्था
बनाये रखने में
औरत की उपयोगिता ज़्यादा है।
उसके स्वतन्त्र अस्तित्व को
समाज अफोर्ड नहीं कर सकता
इसलिए वो उसके स्वतन्त्रता पर
ज़्यादा हमलावर है।
मेरी आत्मा यही कहती है कि
अपने प्यार पर मत शर्मिन्दा होकर
मत अपराधबोध पालो।
प्यार तो इस मृत्युलोक
की प्राण वायु है
जहाँ हम सबसे गिविंग और
निस्वार्थ हो जाते हैं।
जिसमें देह जैसा निकृष्ट वस्तु भी
स्वार्गिक आनन्द महसूस करता है।
सच्चा प्यार आपकी प्रतिष्ठा के
लिए ख़ुद चोट खा लेगा
लेकिन आपके प्रतिष्ठा को
नुक़सान नहीं पहुँचायेगा।
सँसार में सोना से ज्यादा
पीतल से भरा हुआ है।
अधिकतर लोग सँसार में
दिखावे, आसानी और
कम रिस्क के लिए
पीतल धारण करते हैं तो
इसमें सोने का दोष नहीं।
सोना और पीतल परखना
आपका काम है।
पीतल को सोना समझ कर
ठगे जाइएगा तो
इसमें दोष सोने का नहीं है।