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लोहिया साहित्य के वर्तमान इन्साइक्लोपीडिया थे मस्तराम कपूर

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विख्यात समाजवादी लेखक और चिंतक मस्तराम कपूर के निधन से ऐसा महसूस हो रहा है कि एक अभिभावक का साया सिर से उठ गया। लोहिया साहित्य को लेकर उनका रूझान इतना ज्यादा था कि वो मुझे इस कार्य के लिए हर मदद को तैयार थे। स्व. अध्यात्म त्रिपाठी, कृष्णनाथ जी जैसे दिग्गजों के बाद मस्तराम जी ही लोहिया साहित्य के इन्साइक्लोपीडिया के रूप में उभरे थे।
मस्तराम जी का मंगलवार अपराह्न नयी दिल्ली में निधन हो गया। वह 87 साल के थे। कपूर पिछले कुछ समय से गुर्दे के कैंसर से पीड़ित थे। उनके परिवार में उनकी पत्नी, तीन बेटियां और एक बेटा हैं। उनका अंतिम संस्कार आज दोपहर नयी दिल्ली के विद्युत शवदाह गृह में किया गया। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव, जदयू के अध्यक्ष शरद यादव, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, समाजवादी नेता महेश जी, अनामिका प्रकाशन के पंकज शर्मा, जेबीएस पब्लिकेशन के सुधीर यादव ने उनके निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया है।
समाजवादी चिंतन से संबंधित उन्होंने 100 से अधिक पुस्तकें लिखीं हैं। राम मनोहर लोहिया की जीवनी पर उनके सक्रिय सहयोग से अग्रेंजी में दस और हिंदी में नौ खंड प्रकाशित हुए। समाजवादी नेता मधु लिमये के वह काफी करीबी थे। डा. लोहिया के वैचारिक उत्तराधिकारी अध्यात्म त्रिपाठी के निधन के बाद अगर किसी ने लोहिया को पुस्तकों के माध्यम से प्रचारित करने का सच्चा प्रयास किया तो वे थे मस्तराम कपूर।
मृदुभाषी कपूर से मेरी मुलाकात पुस्तक समाजवादी अध्यात्म त्रिपाठी के सिलसिले में हुई। पहली ही मुलाकात में मैं उनका मुरीद हो गया था। राजनीतिक लागलपेट से परे कपूर साहब के साथ कई घंटे विचार-विमर्श करने का सौभाग्य मुझे मिला। साथ ही पुस्तक में लेख के रूप में उनका आशीर्वाद भी। अध्यात्म जी पर पुस्तक को लेकर कपूर साहब खासे उत्साहित थे। उन्हें सदा ही यह दर्द सालता रहा था कि लोहिया साहित्य की रचना के सिलसिले में उन्हें लोहिया के मूल साहित्य उपलब्ध नहीं हो पाये थे। जब उन्हें पता चला कि अध्यात्म जी की मूल रचनाएं मेरे पास हैं तो उन्होंने मुझसे कहा था कि उसे उसी रूप में पुस्तकों के माध्यम से लोगों के सामने लाएं। पुस्तक की रचना के दौरान मस्तराम जी का भरपूर मार्गदर्शन मिला।
अपने जीवन के अंतिम दिनों तक वह गैर कांग्रेस और गैर भाजपा तीसरी शक्ति के गठबंधन के लिए प्रयास करते रहे। मस्तराम कपूर का जन्म 1926 में हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में हुआ था।
वरिष्ठ लेखक, पत्रकार मस्तराम कपूर नहीं रहे। तब के पंजाब और आज के हिमाचल प्रदेश में जन्मे मस्तराम कपूर ने जीवनभर समाजवादी विचारधारा और साहित्य के संकलन और लेखन का काम किया। मधु लिमये के अंतिम दिनों में वे उनके सबसे भरोसेमंद सहयोगी रहे थे।
स्व मधु लिमये के बहुत सारे लेखों हिंदी अनुवाद स्व कपूर साहेब ही करते थे। अभी पिछले दिनों उन्होंने नई दिल्ली में गैर कांग्रेस गैर बीजेपी पार्टियों के नेताओं और जनांदोलनों के नेताओं का सम्मलेन बुलाया था और तीसरे मोर्चे की बात को एक अमली जामा देने की कोशिश की थी।
समाजवादी परंपरा के हर पार्टी में मौजूद नेता मस्तराम कपूर की बहुत इज्ज़त करते थे। अभी पिछले हफ्ते उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें यश भारती पुरस्कार से सम्मानित किया था। लोहिया साहित्य के सबसे बड़े लेखक के रूप में उनकी पहचान हमेशा होती रहेगी। उन्होंने लोहिया समग्र का संपादन भी किया था। उम्र के ८७ साल पार करने के बाद भी उन्होंने अभी कई किताबों के प्रकाशन की योजना बना रखी थी। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे।

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