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क्रांति और समाजवाद के चितेरे महान लेखक मैक्सिम गोर्की

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मुनेश त्यागी 

    रूस के महान समाजवादी लेखक और साहित्यकार मैक्सिम गोर्की का जन्म 28 मार्च 1868 को हुआ था। वे एक गरीब परिवार से थे और गरीबी में पले बढ़े थे। उनके पिता एक बढई थे। उनका जन्म निझानी नोवागरद रूस में हुआ था, जिसे अब गोर्की के नाम से जाना जाता है। गरीबी के कारण 11 वर्ष की उम्र में गोर्की काम पर जुट गए थे और घर की आमदनी में काम बंटाने लगे थे।

      1884 में उनका परिचय मार्क्सवादी विचारधारा से हुआ और वे यहीं से क्रांतिकारी मार्क्सवादी लेखक बन गए। उन्होंने अपने देश की विस्तृत जानकारी करने के लिए 1891 में अपने देश रूस का विस्तृत दौरा किया और लोगों के जीवन के बारे में जानकारियां प्राप्त कीं। उस समय रूस की जनता का अधिकांश हिस्सा शोषण, जुल्म, अन्याय, अत्याचार, उत्पीड़न, गैर बराबरी और भेदभाव से पीड़ित था, इस सबका गोर्की और उनके लेखन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा और यहीं से वे इन सब के खिलाफ लिखने लगे।

    1892 में उन्होंने पहली कहानी लिखी, जिसका नाम था चकर भद्रा था। 1899 तक वे एक बड़े लेखक बन चुके थे, तभी उनकी मुलाकात रूस के दो महान लेखकों चेखव और टॉलस्टॉय से हुई और वे उनकी बातों, उनके विचारों और लेखन से काफी प्रभावित हुए थे। अपने सत्ता विरोधी लेखन के कारण उन्हें जार द्वारा 1901 में गिरफ्तार कर लिया गया और काले पानी की सजा दी गई। अपने प्रगतिशील लेखन के कारण गोर्की को विज्ञान अकादमी की सदस्यता दी गई, जिसे जार ने रद्द कर दिया।

     1905 में गोर्की की भेंट महान क्रांतिकारी लेनिन से हुई और वह लेनिन के विचारों से बहुत प्रभावित होते चले गए और उनके क्रांतिकारी कारवां में शामिल हो जाते हैं। 1906 गोर्की ने विश्व विख्यात उपन्यास “शत्रु” और “मां” जैसी कालजई उपन्यासों की रचना की और जनता और मजदूरों को क्रांति का सपना दिखाया और उन्हें क्रांतिकारी विचारों से अवगत कराया। विश्व विख्यात और कालजई उपन्यास मां में उन्होंने अपने पात्र पावेल और उसकी मां को क्रांतिकारी कार्यों में लगा हुआ दिखाया और अपने विचारों को उनके माध्यम से प्रकट किया और दिखाया कि कैसे एक अनपढ़ और पीड़ित महिला अपने बेटे की गिरफ्तारी के बाद, अपने बेटे के क्रांतिकारी संघर्षों के रास्ते पर चलकर, क्रांति की मशाल पकड़ लेती है और अपने बेटे की गिरफ्तारी के बाद, क्रांति के अभियान में शामिल होकर क्रांति के अभियान को जारी रखती है और मजदूर के क्रांतिकारी संघर्ष की मशाल को जलाए रखती है।

     मैक्सिम गोर्की की अन्य विश्वविख्यात और क्रांतिकारी रचनाओं में शामिल हैं,,, 1. सूरज के बच्चे, 2. तलछट, 3. मेरा बचपन, 4. लोगों के बीच, 5. मेरे विश्वविद्यालय, 6. सच्चे मनुष्यों की जीवनियां, 7. कवि का पुस्तकालय, 8. गैर जरूरी आदमी की जिंदगी, 9 पापों की स्वीकृति, 10. आखरी लोग आदि। अपनी क्रांतिकारी साहित्यिक रचनाओं और क्रांति के पक्के समर्थक होने के कारण गोर्की को सोवियत लेखक संघ का अध्यक्ष चुना गया। हमारे देश के गोर्की मुंशी प्रेमचंद, मैक्सिम गोर्की के बहुत बड़े और परम प्रशंसक थे। मुंशी प्रेमचंद और उनके लेखन पर मैक्सिम गोर्की का काफी प्रभाव पड़ा था जिसके कारण उनके लेखन में काफी पैनापन आ गया था। प्रेमचंद भारत में मैक्सिम गोर्की का दूसरा रूप ही दिखते थे। 

    भारत की जनता अपनी आजादी की लड़ाई लड़ रही थी, अंग्रेजी साम्राज्यवाद और उनकी लूट और गुलामी का विरोध कर रही थी तो अंग्रेजों ने गोर्की के महान और कालजई उपन्यास मां का पठन पाठन और उध्दरण को एक अपराध घोषित कर दिया था और भारत में मां उपन्यास को पढ़ने पर प्रतिबंध लगा दिया था। सच में कोई भी लुटेरा, शोषक और अन्यायी शासक, सच्ची साहित्यिक रचनाओं से बहुत खौफजदा हो जाता है, उससे डरने लगता है। मां उपन्यास को भारत में पढ़ने से प्रतिबंधित किया जाना भी ऐसी घृणित कोशिश थी।

      यहीं पर इत्तेफाक देखिए कि जब प्रेमचंद ने अपना उपन्यास “सोजे वतन” लिखा और इसमें देशप्रेम और आजादी की बात की, तो अंग्रेज लुटेरे इससे भी डर गए और खौफ ज्यादा हो गए और सोजे वतन उपन्यास को उन्होंने प्रतिबंधित कर दिया। महान गोर्की ने अपने जीवन में मानवतावादी विरोधी विचारधारा फासीवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी और उसके खिलाफ और उसके विनाश करने के लिए अपनी कलम चलाई और उसके यूएसएसआर में खात्मे में अपनी सबसे बड़ी भूमिका निभाई।

    मैक्सिम गोर्की साहित्य में समाजवादी यथार्थवाद के संस्थापक थे, क्रांति और समाजवादी व्यवस्था के समर्थक और विचारों के चितेरे थे। यूएसएसआर में क्रांति के कारवां को आगे बढ़ाने में, साहित्य के माध्यम से मैक्सिम गोरकी ने बहुत मदद की थी। उनका मानना था कि हमें साहित्य में क्रांति और समाजवादी विचारों का समावेश करना चाहिए और जनता को इनसे अवगत कराना चाहिए और उसे सामंतवाद और पूंजीवाद के प्रभाव और वैचारिक दुष्चक्र से बाहर निकालना चाहिए, तभी एक बेहतर और मानवीय समाज और साहित्य की रचना की जा सकती है।

     हमारे निजी जीवन और विचारों पर सबसे पहले क्रांतिकारी प्रभाव मैक्सिम गोर्की के उपन्यास “मां” का सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ा था। इसे पढ़कर ही हम अपने जीवन के आरंभ से क्रांतिकारी समाजवादी विचारधारा के प्रबल समर्थक हो गए थे और आज तक भी उसी धारा में शामिल हैं। हमने अपनी पत्नी को आज तक का अकेला उपहार मैक्सिम गोरकी की “मां” भेंट की थी। हमारी बेटी भी आजकल मां उपन्यास को पढ रही है और क्रांतिकारी आंदोलन में हमारा साथ दे रही है।

     सच में मैक्सिम गोर्की की रचनाओं ने बहुत सारे लोगों को क्रांतिकारी और क्रांतिकारी साहित्यिक बनाया है, बहुत से लेखकों और कवियों  की साहित्यिक रचनाओं को क्रांति की ओर मोड़ा है और क्रांति के पक्ष में जोडा है। पूरी दुनिया का मजदूर वर्ग गोर्की के लेखन से, उनकी लेखनी की समाजवादी दिशा से कभी भी उऋण नहीं हो सकता। पूरी मानवता हमेशा मैक्सिम गोर्की की ऋणी रहेगी और साहित्य में दिए गए मैक्सिम गोर्की के योगदान को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता। सच में वे सदा अमर रहेंगे और क्रांतिकारी दुनिया और लेखक उन्हें सदैव याद रखेंगे।

      आज जिस तरह से शोषक सत्ताएं, जनता के असली साहित्यकारों, लेखकों और कवियों पर हमले कर रही है, उनकी लेखनी को खरीद रही है और कुंद कर रही हैं, ऐसे माहौल में मैक्सिमम गौर्की लेखकों और साहित्यकारों के बड़े मददगार बन सकते हैं और मैक्सिम गौर्की के साहित्य से सीख कर समाज में एकता, समता, समानता और भारत के संविधान के पक्षधर बने  रह सकते हैं और साहित्य के असली मशाल वाहक बने रह सकते हैं।

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