जयप्रकाश नारायण
स्वाधीनता मेरे लिए कई अर्थ रखती है । पर सबसे अधिक मेरे लिए यह आत्मा की स्वाधीनता का अर्थ रखती है, विचारों की स्वाधीनता का और तब कहीं जाकर कर्म की स्वाधीनता का जहां आत्मा स्वाधीन है, चिंतन स्वतंत्र है, वहां मनुष्य स्वतंत्रता की ऐसी परिस्थितियां पैदा कर सकता है जिसमें वह अपने जीवन का हेतु पूरा कर सके।
इसलिए, मेरी दृष्टि से हमारी शिक्षण पद्धति, जीवन की हमारी अवधारणा, हमारी जीवन शैली,हमारा कर्म इन सबको आत्मा की स्वाधीनता, विचारों की स्वाधीनता से परिचालित होना चाहिए।
यह कहना करने से ज्यादा सरल है। आत्मा की स्वतंत्रता की अनुभूति तो वे ही कर सकते है जो आत्मा का मतलब जानते हों, जीवन का मतलब समझते हों,जो जानते हों कि स्वयं उनका उद्देश्य क्या है,वे किसलिए जी रहे हैं और वे कहां जाना चाहते हैं।
यह सब जब घटित हो तभी आत्मा की स्वाधीनता मात्र दार्शनिक विचार नहीं, एक सक्रिय शक्ति बन जाएगी।
मैं आध्यात्मिक स्वतंत्रता और आत्मा की स्वतंत्रता में अंतर करना चाहता हूं। मेरे लिए आत्मा की स्वतंत्रता से आशय, आध्यात्मिक स्वतंत्रता से सामान्यतः जो मतलब लिया जाता है उससे कहीं ज्यादा वृहद् कहीं ज्यादा दूरगामी और कहीं ज्यादा गहन है। आध्यात्मिक स्वतंत्रता का जिन अर्थों में प्रयोग होता है, उसमें कई दूसरी स्वतंत्रताएं छूट जाती है-आर्थिक स्वतंत्रता, राजनैतिक स्वतंत्रता, सामाजिक स्वतंत्रता आदि। लेकिन जब आत्मा स्वतंत्र है तो किसी बन्धन का कहीं अस्तित्व ही नहीं रह जाता है। स्वतंत्र आत्मा संभव है कि स्वयं अपने लिए सीमाओं का निर्धारण करे, लेकिन वह इसे भी तोड़ सकती है, इसका अतिक्रमण कर सकती है।
इसलिए मैं अपनी मुख्य बात को दुहराते हुए समाप्त करूंगा कि मेरे लिए स्वाधीनता का मतलब अनिवार्यतः आत्मा की स्वतंत्रता है, जिसे मैं सामान्यतः आध्यात्मिक स्वतंत्रता कहीं जानेवाली धारणा से अलग करता हूं। आत्मा की स्वतंत्रता, संभव है कि स्वतंत्र व्यक्ति को एक ऐसी परिस्थिति में डाल दे जहां शायद भौतिक स्वतंत्रता न हो, मतलब आवश्यकता और कामना के अनुसार जीवन जी सकने की स्वतंत्रता न हो,ये सीमाएं हो सकती हैं जो अवरोध बनी रहे। किन्तु फिर भी यदि आत्मा स्वतंत्र है तो वह इन अवरोधों को तोड़कर पार जाने का रास्ता खोज लेगी।
और इसलिए, मैं फिर कहूंगा कि स्वाधीनता का मतलब मेरे लिए आत्मा की स्वाधीनता है।